5 महीने की एक बेटी है मेरी, दिल्ली में कोई काम नहीं… बाइक टैक्सी पर रोक के बाद छलका दर्द h3>
न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की एक अवकाशकालीन पीठ ने दोनों एग्रीगेटर को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा उनकी याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध करने की स्वतंत्रता प्रदान की। दिल्ली उच्च न्यायालय के 26 मई के आदेश पर रोक लगाने वाली पीठ ने दिल्ली सरकार के वकील की यह दलील भी दर्ज की कि अंतिम नीति को जुलाई के अंत से पहले अधिसूचित किया जाएगा।
राय ने फोन पर बताया कि मैं दिल्ली सरकार की कार्रवाई के बाद आजमगढ़ वापस आ गया था। हालांकि मैं उच्च न्यायालय के फैसले के बाद वापस दिल्ली आने की योजना बना रहा था लेकिन यह बुरी खबर है। मैंने कुछ गहने गिरवी रखकर विशेष रूप से एक दोपहिया वाहन खरीदा था लेकिन वर्तमान स्थिति में अब मुझे एक चार पहिया वाहन खरीदने और इसे व्यावसायिक रूप से चलाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
वहीं पांच महीने की एक बेटी के पिता ज्ञानेश ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश में अपने गृह नगर वापस जाएंगे क्योंकि दिल्ली में उनके लिए कोई काम नहीं होगा।
उन्होंने कहा मैं पिछले ढाई साल से बाइक-टैक्सी के माध्यम से अच्छी कमाई कर रहा था। हालांकि अब, अगर वे फिर से हम पर प्रतिबंध लगाएंगे, तो इससे ग्राहकों और हमें भी नुकसान होगा। मेरी पत्नी और परिवार हमारे गृह नगर रहते हैं और मैं उन्हें पैसे भेजता हूं। हालांकि अब अगर आय का यह स्रोत समाप्त हो जाता है, तो मैं घर वापस जाऊंगा और कुछ करूंगा।
गाजियाबाद के रहने वाले मोहम्मद आमिर (23) ने कहा कि अदालत के नवीनतम आदेश से कई लोगों का रोजगार प्रभावित होगा। वहीं दिल्ली ऑटो रिक्शा संघ के महासचिव राजेंद्र सोनी ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह सही समय पर आया है। उन्होंने कहा, इन बाइक-टैक्सी को निजी नंबरप्लेट होने के बावजूद कारोबार में लगाया गया है। इसने बड़ी संख्या में ऑटोरिक्शा चालकों का रोजगार छीन गया और सरकार को नुकसान पहुंचा क्योंकि उन्हें कोई कर नहीं देना पड़ता था। हम मांग करते हैं कि सड़कों पर बाइक-टैक्सी चलती पाये जाने पर एग्रीगेटर्स पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाना चाहिए।