Bihar Politics: विपक्षी एकता में बिखराव? पटना की बैठक से दूर रहेंगे KCR, बीजेपी-कांग्रेस दोनों से बनाई दूरी h3>
पटना: विपक्षी एकता को लेकर पटना (Patna Opposition Meeting) में होने वाली बैठक से पहले ही नीतीश कुमार की इस प्लानिंग को तगड़ा झटका लगा है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की पार्टी ने इस बैठक से दूर रहने का फैसला किया है। जानकारी के मुताबिक, तेलंगाना के सीएम और भारत राष्ट्र समिति (BRS) के संस्थापक केसीआर (KCR) 23 जून को पटना में विपक्षी बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे। केसीआर ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने फैसले के बारे में जानकारी भी दे दी है। उन्होंने इस बैठक में शामिल होने पर असमर्थता जताई है।
इसलिए नीतीश की बैठक से दूर रहेंगे केसीआर
सूत्रों के मुताबिक, केसीआर विपक्ष की ऐसी किसी भी पहल का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं, जिसमें कांग्रेस को जगह मिले। बीआरएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने इकोनॉमिक टाइम्स से बातचीत में बताया कि केसीआर ने हमेशा गैर-कांग्रेसी और गैर-बीजेपी मोर्चे की बात की है। यह बैठक उस मूल सिद्धांत के खिलाफ है जिसके लिए वह खड़े हैं। यही वजह है कि वो कांग्रेस के साथ मंच साझा करते हुए नहीं नजर नहीं आना चाहते हैं।
गैर कांग्रेस-गैर बीजेपी मंच की करते रहे हैं वकालत
भारतीय राष्ट्र समिति की ओर से बताया गया कि विपक्ष की बैठक से दूर रहने का फैसला सोच-समझकर लिया गया फैसला है। दरअसल, कांग्रेस तेलंगाना में केसीआर की पार्टी बीआरएस की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टी है। केसीआर की पार्टी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 88 सीटें जीती थीं, वहीं कांग्रेस दूसरे स्थान पर थी लेकिन दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी जिसने 19 सीटें जीती थीं। ऐसे में तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी के साथ मंच साझा करना चुनावी साल में मतदाताओं के बीच गलत संदेश जा सकता है।
बीजेपी से ‘सीधी लड़ाई’ नहीं चाहते केसीआर
केंद्रीय जांच एजेंसियां केसीआर की बेटी कविता कलवकुंतला को लगातार समन जारी कर रही हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री सीधे तौर पर केंद्र की बीजेपी सरकार को निशाने पर नहीं लेना चाहते। साथ ही, केसीआर ने विपक्षी गठबंधन बनाने और खुद को मुख्य रणनीतिकार के रूप में स्थापित करने के लिए कई प्रयासों की अगुवाई की है। नीतीश कुमार की ओर से बुलाई गई इस बैठक में शामिल होने का मतलब उस जगह को छोड़ने जैसा होगा।
पहले भी केसीआर कर चुके हैं विपक्षी एकता की कवायद
2019 के संसदीय चुनावों से पहले ही केसीआर और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक विपक्षी मोर्चा बनाने के लिए एक साथ आए थे। हालांकि, उस समय उन्होंने जनवरी 2019 में सिर्फ एक रैली की थी। जिसमें कई विपक्षी दलों की उपस्थिति हुई थी। लेकिन उस कवायद को खास कामयाबी नहीं मिली। बीजेपी की ताकत के आगे विपक्षी एकता की कवायद उस तरह से सफल नहीं हो सकी थी।
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इसलिए नीतीश की बैठक से दूर रहेंगे केसीआर
सूत्रों के मुताबिक, केसीआर विपक्ष की ऐसी किसी भी पहल का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं, जिसमें कांग्रेस को जगह मिले। बीआरएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने इकोनॉमिक टाइम्स से बातचीत में बताया कि केसीआर ने हमेशा गैर-कांग्रेसी और गैर-बीजेपी मोर्चे की बात की है। यह बैठक उस मूल सिद्धांत के खिलाफ है जिसके लिए वह खड़े हैं। यही वजह है कि वो कांग्रेस के साथ मंच साझा करते हुए नहीं नजर नहीं आना चाहते हैं।
गैर कांग्रेस-गैर बीजेपी मंच की करते रहे हैं वकालत
भारतीय राष्ट्र समिति की ओर से बताया गया कि विपक्ष की बैठक से दूर रहने का फैसला सोच-समझकर लिया गया फैसला है। दरअसल, कांग्रेस तेलंगाना में केसीआर की पार्टी बीआरएस की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पार्टी है। केसीआर की पार्टी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 88 सीटें जीती थीं, वहीं कांग्रेस दूसरे स्थान पर थी लेकिन दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी जिसने 19 सीटें जीती थीं। ऐसे में तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी के साथ मंच साझा करना चुनावी साल में मतदाताओं के बीच गलत संदेश जा सकता है।
बीजेपी से ‘सीधी लड़ाई’ नहीं चाहते केसीआर
केंद्रीय जांच एजेंसियां केसीआर की बेटी कविता कलवकुंतला को लगातार समन जारी कर रही हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री सीधे तौर पर केंद्र की बीजेपी सरकार को निशाने पर नहीं लेना चाहते। साथ ही, केसीआर ने विपक्षी गठबंधन बनाने और खुद को मुख्य रणनीतिकार के रूप में स्थापित करने के लिए कई प्रयासों की अगुवाई की है। नीतीश कुमार की ओर से बुलाई गई इस बैठक में शामिल होने का मतलब उस जगह को छोड़ने जैसा होगा।
पहले भी केसीआर कर चुके हैं विपक्षी एकता की कवायद
2019 के संसदीय चुनावों से पहले ही केसीआर और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक विपक्षी मोर्चा बनाने के लिए एक साथ आए थे। हालांकि, उस समय उन्होंने जनवरी 2019 में सिर्फ एक रैली की थी। जिसमें कई विपक्षी दलों की उपस्थिति हुई थी। लेकिन उस कवायद को खास कामयाबी नहीं मिली। बीजेपी की ताकत के आगे विपक्षी एकता की कवायद उस तरह से सफल नहीं हो सकी थी।