केजरीवाल ने आखिर दिखा दी अपनी ‘नई’ पावर, सचिव मोरे को खुद आगे बढ़ानी पड़ी अपनी विदाई की फाइल h3>
पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के चंद घंटों के बाद ही मंत्री ने प्रशासनिक फेरबदल के लिए सर्विसेज विभाग के सचिव को एक फाइल पुटअप करने का निर्देश दिया था। पहला तबादला भी सेक्रेटरी (सर्विसेज) यानी आशीष मोरे का ही होना था। उनसे कहा गया था कि वह एक फाइल तैयार करके यह बताएं कि उनकी जगह किन अधिकारियों को सर्विसेज विभाग के सचिव के पद पर नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन मंत्री के आदेश के बावजूद मोरे ने कोई फाइल तैयार करके नहीं भेजी। आरोप है कि आदेश का पालन करने के बजाय मैसेज का जवाब नहीं दिया। नोट भी रिसीव नहीं किया। ऑफिस नहीं आए।
इस बीच मोरे की तरफ से मंत्री को भिजवाए गए एक नोट में कहा गया कि जब तक गृह मंत्रालय इस बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं करता है, तब तक वो मंत्री के आदेश का पालन नहीं कर सकेंगे। वहीं सरकार का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का आदेश तुरंत प्रभाव से लागू हो जाता है और सभी के लिए उसका पालन बाध्यकारी होता है।
दिल्ली सरकार का बयान
उधर, दिल्ली सरकार की तरफ से जारी बयान में कहा गया था कि गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि सेवा विभाग अब दिल्ली सरकार के अधीन होगा। उसी दिन 3 बजे से सेवा सचिव आशीष मोरे गायब थे। वह बिना किसी को बताए, बिना इजाजत लिए या बिना छुट्टी का आवेदन दिए अचानक कार्यालय से चले गए। इसके बाद से उनका फोन स्विच ऑफ आ रहा था। जब किसी को उनके घर भेजा गया, तो उनकी पत्नी बाहर आईं और कहा कि वह नहीं जानती कि उनके पति कहां हैं।
सौरभ भारद्वाज
मोरे को 24 घंटे के भीतर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था कि अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित रहने पर क्यों न उनके खिलाफ अनुशानात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए। 13 मई को जारी कारण बताओ नोटिस में दिल्ली सर्विसेज विभाग के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा था, ‘मोरे पोस्ट पर बने रहने के लिए गैरकानूनी तरीके आजमाने की कोशिश कर रहे हैं और उनका मकसद पोस्ट पर बने रहना है।’ हालांकि अचानक सोमवार दोपहर में मोरे ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने के लिए तैयार हैं।
राय में भी दिखा विरोधाभास
इस बीच यह जानकारी भी सामने आई कि मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन के संबंध में कानून विभाग के प्रमुख सचिव और दिल्ली सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल (सिविल) से कानूनी राय भी मांगी थी। सर्विसेज विभाग के मंत्री को इसका जवाब देते हुए कानून मंत्री कैलाश गहलोत ने फाइल नोटिंग में स्पष्ट रूप से लिखा है कि इस मुद्दे पर कानून विभाग के प्रमुख सचिव की राय ठोस कानूनी राय कम और एक व्यावहारिक सलाह ज्यादा नजर आ रही है। साथ ही उनकी राय में कई प्रकार के विरोधाभास भी साफ दिखाई दे रहे हैं।