दिल्ली की धरना प्रदर्शन वाली जगह तो देखी होगी, आज पढ़िए उस जंतर-मंतर के नाम की रोचक कहानी

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दिल्ली की धरना प्रदर्शन वाली जगह तो देखी होगी, आज पढ़िए उस जंतर-मंतर के नाम की रोचक कहानी

दिल्ली की धरना प्रदर्शन वाली जगह तो देखी होगी, आज पढ़िए उस जंतर-मंतर के नाम की रोचक कहानी

History of Jantar Mantar Delhi: आपने दिल्ली के कनॉट प्लेस के बारे में जरूर सुना होगा। अगर आप दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं, तो कभी न कभी यहां घूमने भी गए होंगे। जंतर-मंतर पर तमाम लोग और संगठन धरना और विरोध प्रदर्शन करते हैं। प्रदर्शनों के लिए ये जगह काफी मशहूर है। दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस के बीच बने स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना जंतर-मंतर राजधानी के फेमस पर्यटन स्थलों में से एक है। अगर आप कभी यहां गए होंगे, तो आपके मन में इसके नाम को लेकर सवाल जरूर आया होगा। कभी सोचा है कि इस जगह का नाम जंतर-मंतर क्यों पड़ा। आज हम इसके नाम की कहानी बता रहे हैं।

कैसे नाम पड़ गया जंतर-मंतर?

इंटरनेट पर कोरा वेबसाइट पर सुरेश चंद्र मिश्रा नाम के यूजर ने जंतर-मंतर की कहानी बताई है। मिश्रा बताते हैं कि जंतर मंतर का निर्माण महाराजा जयसिंह द्वितीय ने 1724 में करवाया था। उन्होंने देशभर में ऐसी पांच वेधशालाएं बनाई थीं, जिनमें से तीन को जंतर-मंतर कहा जाता है। ‘जंतर’ शब्द संस्कृत के ‘यंत्र’ से वहीं ‘मंतर’ शब्द ‘मंत्र’ से आया है। लेकिन आम बोलचाल में इसका नाम जंतर-मंतर पड़ गया।

धूप की मदद से देख सकते हैं सटीक समय

धूप की मदद से देख सकते हैं सटीक समय

जंतर-मंतर में बनी वेधशाला उस वक्त की एडवांस टेक्नोलॉजी पर आधारित है। यहां के यंत्र बताते हैं कि ये दुनिया में अपने किस्म की सबसे पुरानी वेधशाला है। वेधशाला में पत्थर और चूने से बने चार अलग-अलग यंत्र हैं। उनमें सबसे शानदार यंत्र है समर्थ यंत्र या ‘परम यंत्र जो देखा जाए तो एक समान-घंटोंवाली धूप-घड़ी है। यह जयसिंह की सबसे अहम रचना थी। इसमें पत्थर और चूने से बना एक विशाल त्रिकोण है जिसकी ऊंचाई 21.3 मीटर, तला 34.6 मीटर और चौड़ाई 3.2 मीटर है। इस त्रिकोण का 39 मीटर लंबा कर्ण पृथ्वी की धुरी के समांतर है और इसका सिरा उत्तरी-ध्रुव की तरफ है। इस त्रिकोण के दोनों तरफ क्वाड्रंट, या समय मापने का यंत्र है, जिसमें घंटे, मिनट और सेकंड के लिए निशान लगे हुए हैं और जब त्रिकोण की परछाई इस यंत्र पर पड़ती है, तब समय का पता लगाया जा सकता है।

ग्रह नक्षत्रों की स्थिति का भी लगाया जा सकता है पता

ग्रह नक्षत्रों की स्थिति का भी लगाया जा सकता है पता

सदियों से साधारण धूप-घड़ियों का इस्तेमाल होता चला आ रहा था, मगर जयसिंह ने समय मापने की इस धूप-घड़ी से एक ऐसा उपकरण तैयार किया जिसके जरिए एक तो भूमध्य रेखा से उत्तर या दक्षिण की तरफ किसी भी ग्रह की कोणीय दूरी का ठीक-ठीक पता लगाया जा सकता था। और दूसरा, आकाश के पिंड कहां-कहां मौजूद है, उनका भी ठीक-ठीक पता लगाया जा सकता था।

क्यों बनाई वेधशाला?

क्यों बनाई वेधशाला?

जयसिंह द्वारा बनाए गए इन यंत्रों की मदद से सही-सही पंचांग और नक्षत्रों के चार्ट बनना शुरु हुए। इन यंत्रों की मदद से न सिर्फ टाइम का पता किया जा सकता है, बल्कि ग्रह नक्षत्रों की सटीक स्थिति का पता लगाया जा सकता है। जयसिंह इस बात को जानते थे कि भारत में पंचांग और नक्षत्रों के चार्ट सही और सटीक जानकारी नहीं दे पा रहे हैं। इसलिए उन्होंने खगोल-विज्ञान का अध्ययन करनेवालों के लिए ऐसा यंत्र बनाया, जिससे तारों और ग्रहों को देख सकें।

कौन सा यंत्र क्या काम करता है?

कौन सा यंत्र क्या काम करता है?

जंतर मंतर पर चार यंत्र हैं, जिनका अलग-अलग काम है। समर्थ यंत्र एकदम सही समय बताने वाली धूप घड़ी थी। जब सूरज की परछाईं इस यंत्र पर पड़ती थी, तो इस पर बने घंटे, मिनट और सेकंड के निशान से सटीक वक्त का पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा जयप्रकाश यंत्र खोखले अर्धगोलक से बना है जिस पर निशान लगे हुए हैं। उसके एक किनारे से दूसरे किनारे तक दो तारें आर-पार जाती हैं। राम यंत्र के अंदर खड़े होकर एक व्यक्‍ति तारे की स्थिति को यंत्र पर बने निशान या खिड़की के किनारे के साथ मिला सकता था। मिश्र यंत्र बताता था कि अलग-अलग शहरों में कब दोपहर होती थी।

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