राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में ये तिकड़ी बिगाड़ेगी गणित

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राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में ये तिकड़ी बिगाड़ेगी गणित

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में ये तिकड़ी बिगाड़ेगी गणित


Rajasthan Politics : राजस्थान में कुछ महीने बाद ही विधानसभा चुनाव हैं। चुनाव में एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की सरकार की परिपाटी रही है। कांग्रेस अपने काम के दम पर फिर से सत्ता हासिल करने का दावा कर रही है। लेकिन चुनावी बिसात पर सचिन पायलट, अरविंद केजरीवाल और हनुमान बेनीवाल की चाल दोनों बड़ी पार्टियों का खेल बिगाड़ सकती है।

 

हाइलाइट्स

  • राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले सियासत गरमाई
  • प्रदेश में रहा है एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की सरकार का रिवाज
  • लेकिन सचिन पायलट, अरविंद केजरीवाल और हनुमान बेनीवाल बिगाड़ सकते हैं चुनावी गणित
  • इस तिकड़ी की चाल दोनों बड़ी पार्टियों का बिगाड़ सकती खेल
जयपुर: राजस्थान में इस साल होने वाले चुनाव कांग्रेस और बीजेपी के लिए आसान नहीं होंगे। दोनों बड़े राजनीतिक दल हैं। लिहाजा दोनों ही दलों में आपसी गुटबाजी चरम पर है। बीजेपी जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने जा रही है। वहीं कांग्रेस गहलोत सरकार की योजनाओं के बूते चुनाव जीतने की कोशिश करेगी। पीएम मोदी का नाम और गहलोत की योजनाएं भले ही देशभर में अनूठी हो लेकिन चुनाव में और भी कई फैक्टर काम करेंगे। विधानसभा चुनावों का समीकरण तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार बनता बिगड़ता है। इन चुनावों में स्थानीय मुद्दे ज्यादा असरदार होते हैं। कांग्रेस नेता सचिन पायलट, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल, आप के अरविन्द केजरीवाल विधानसभा चुनावों बीजेपी और कांग्रेस के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकते हैं। ‘तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा’ को भले ही अंधविश्वास माना जाता है लेकिन राजस्थान की राजनीति में ये तिकड़ी आगे आने वाले दिनों में उथल-पुथल मचाने का मादा रखती है। साथ ही एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी का दखल भी सियासत में भूचाल लाने वाला है।

कांग्रेस से नाराज चल रहे है सचिन पायलट

पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट अपनी पार्टी से नाराज चल रहे हैं। वैसे वे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराज हैं लेकिन उनकी बातों की सुनवाई नहीं करने से वे आलाकमान से भी नाराज हो गए हैं। यही कारण है कि पायलट 11 अप्रेल को जयपुर के शहीद स्मारक पर अपनी ही पार्टी के खिलाफ अनशन करेंगे। कांग्रेसी विधायक और मंत्री पार्टी के खिलाफ नहीं हैं लेकिन सचिन पायलट द्वारा उठाए गए मुद्दों का समर्थन कर रहे हैं। प्रदेश में अशोक गहलोत कांग्रेस के स्वयंभू नेता हैं। वे किसी नेता को अपने समकक्ष होने ही नहीं देना चाहते। मूल मुद्दों के आधार पर जो नेता गहलोत के खिलाफ जाते हैं, उन्हें राजनैतिक षड़यंत्र के जरिए निबटा दिया जाता है। इस बार सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटाई है। अगर कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व ने कोई सुनवाई नहीं की तो पायलट कांग्रेस से बाहर का रास्ता चुनते हुए चुनाव मैदान में आ सकते हैं। ऐसा करने से कांग्रेस को नुकसान होना तय है।
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हनुमान बेनीवाल पूरी तैयारी से ठोकेंगे ताल

राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक हनुमान बेनीवाल पूरी तैयारी के साथ विधानसभा चुनाव में उतरेंगे। पिछले चुनावों में बेनीवाल की पार्टी के 3 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। दो सीटों पर बेनीवाल की पार्टी के प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे और अन्य सीटों पर भी अच्छे वोट हासिल किए। बेनीवाल प्रभाव वाले नेताओं को टिकट देते हैं। खासतौर पर उन नेताओं पर फोकस रहता है बड़े जनाधार वाले होने के बावजूद बीजेपी और कांग्रेस उन्हें टिकट नहीं देती। ऐसे नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने से बेनीवाल चुनावी समीकरण बदल देते हैं। इस बार भी बेनीवाल पूरी मजबूती के साथ विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।
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आम आदमी पार्टी भी आजमाएगी भाग्य

दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने के बाद आम आदमी पार्टी का कोन्फिडेंस सातवें आसमान पर है। आप ने गुजरात में भी चुनाव लड़ा और 5 सीटों पर जीत दर्ज की। अब राजस्थान विधानसभा चुनावों में भी आम आदमी पार्टी अपने प्रत्याशी चुनाव में उतारेगी। पिछले दिनों आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने जयपुर में तिरंगा यात्रा निकाली। इस दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी साथ थे। आम आदमी पार्टी ने सचिन पायलट को पार्टी में शामिल होने का ऑफर दिया है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी राजस्थान विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकती है।

असदुद्दीन ओवैसी कई जिलों में कर चुके जनसभाएं

एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में चुनावी समीकरण बिगाड़ने वाले हैं। पिछले दिनों ओवैसी ने पार्टी की स्टेट कॉर्डिनेटर की नियुक्ति की। प्रदेश के 9 जिलों की एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर जनसभाएं कर चुके हैं। अल्पसंख्यकों बाहुल्य सीटों पर ओवैसी की पार्टी काफी मजबूत स्थिति में रह सकती हैं। ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी चुनाव जीते या नहीं जीते लेकिन दूसरे प्रत्याशियों का हार तय कर देंगे। ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए आसान नहीं होंगे।
रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़

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