Eknath Shinde: हिंदुत्व का नया नेता और उद्धव पर निशाना साधने के लिए अयोध्या से धनुष-बाण पूजकर लाएंगे शिंदे
अब इसी सांकेतिक चिह्न को लेकर पूरे महाराष्ट्र में राजनीतिक हलचल करने की योजना बनाई जा रही है। अयोध्या से पूजन करके लाया गया ‘धनुष बाण’ राज्यभर में धूमाने की रणनीति तैयार की जा रही है।
बीजेपी क्यों दूर रहेगी
शिंदे की धनुष बाण यात्राएं महाराष्ट्र में निकलती हैं, तो बीजेपी की सहायता के बिना इसे अंजाम तक पहुंचाना आसान नहीं होगा। शिंदे का वर्चस्व मुख्य तौर पर ठाणे और रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग के तटीय इलाकों में फैला हुआ है। उनके साथ शिवेसेना छोड़कर गए 40 विधायक हालांकि राज्यभर में फैले हुए हैं, मगर इसमें एक जिले भर में मजबूत वर्चस्व रखने वाला कोई चेहरा नहीं है। बीजेपी के नेताओं को यह महसूस हो रहा है कि सरकार गिरने के बाद उद्धव कमजोर तो हुए हैं, मगर उन्हें सहानुभूति भी मिल रही है। इसलिए हाल में उद्धव के खिलाफ बीजेपी नेताओं की बयानबाजी हल्की पड़ गई है।
नेताओं के अनुसार, इसके लिए जरूरत पड़ने पर पुराने शिवसैनिक केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की सेवाएं ली जा रही हैं। बीजेपी इस बार भी ‘धनुष बाण यात्रा’ पर दूर से नजर बनाए रखने की रणनीति पर कायम रह सकती है।
सावरकर का मुद्दा
बीजेपी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के विनायक दामोदर सावरकर के खिलाफ दिए गए बयान को कसकर भुनाया है। महाराष्ट्र के स्वाधीनता सेनानी के अपमान को लेकर राज्यभर में सावरकर गौरव यात्राएं निकाली गईं। निशाना कांग्रेस पर तो था ही, मगर उससे ज्यादा उद्धव ठाकरे को घेरने की कोशिश दिखाई दी। उनके पिता बालासाहेब ठाकरे के ‘ज्वलंत’ हिंदुत्व को याद करते हुए कांग्रेस के नेताओं के सामने ‘कमजोर पड़ चुके’ उद्धव के हिंदुत्व को खुलकर चुनौती दी गई। तीन दलों के विपक्षी गठजोड़- महाविकास आघाडी के ‘चाणक्य’ शरद पवार ने इसे ताड़ लिया और कांग्रेस नेताओं को इससे हो रहे नुकसान को लेकर चेताना। फिर वही हुआ जिसकी उम्मीद थी, उद्धव ने सभाओं मे कांग्रेस को खुलकर चेतावनी दी। कांग्रेस के दिए विपक्षी भोज के बहिष्कार किया। कांग्रेस मान गई और मुद्दा पिघलकर रह गया।
निशाने पर उद्धव
बीजेपी राज्य में कांग्रेस और एनसीपी की ताकत से परिचित है, मगर उद्धव ठाकरे के साथ छोड़ने की वजह से हुए नुकसान का आकलन नहीं कर पा रही है। शिंदे-फडणवीस सरकार के सत्ता में आने के बाद हुए विधानसभा उपचुनावों में बीजेपी को झटके लगे हैं। मुंबई की अंधेरी सीट के उपचुनाव में एकएक उम्मीदवार हटाकर शिवसेना को यह चुनाव गिफ्ट कर देना पड़ा। पुणे की दो सीटों पर हुए उपचुनाव में 20 वर्ष कस्बा पेठ का पुराना गढ़ हार गई और चिंचवड सीट शिवसेना (उद्धव) के बागी उम्मीदवार के 40 हजार काटने पर मुश्किल से बचा पाई। तीन दलों के गठबंधन में उद्धव का चेहरा ‘शांत-सयंमी’ और आवश्यकता पड़ने पर हर त्याग करने को तैयार ‘प्राकृतिक नेता’ के तौर पर उबर रहा है। शिंदे ही ऐसा शस्त्र है, जो उद्धव और उनकी पार्टी को अंदर से कमजोर कर सकता है, कर भी रहा है।
शिंदे का प्रोजेक्शन
मुख्यमंत्री बनने के बाद एकनाथ शिंदे की छवि सबको साथ लेकर चलने वाले संवेदनशील नेता के तौर पर बनी है। मगर उनसे भी पहले शिवसेना तोड़कर निकले छगन भुजबल, नारायण राणे या राज ठाकरे की तरह आक्रामक और धारदार मैदानी शिवसैनिक वक्ता के तौर वे पहचान नहीं बना पाए हैं। मुख्यमंत्री रहने के बाद उनके अधीन उपमुख्यमंत्री बनाए गए फडणवीस अक्सर शिंदे को आगे करके खुद पीछे हो जाते हैं। यह तो सामने नजर आ रहा है, मगर मंत्रिमंडल के फैसलों पर शिंदे की छाप उबरती जान नहीं पड़ है। फडणवीस ही कहीं न कहीं, पूरे कामकाज संचालित कर रहे हैं, यही इमेज बनती रही है। शिंदे को हिंदुत्व के नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करके इसकी भरपाई हो सकेगी। राज ठाकरे चाहकर भी अयोध्या की यात्रा नहीं कर पाए थे, मगर वहीं साधु-संतों से घिरे शिंदे की तस्वीर शायद कहीं बड़ी दिखाई दे।
क्या है इसका मकसद
– शिंदे के सामने उद्धव के ‘हिंदुत्व’ को कमजोर साबित करना
– लोकसभा चुनाव से पहले ठाकरे के छूटने से हुए नुकसान की पूर्ति
– शिवसेना के आपसी लड़ाई दिखा बीजेपी बदनामी से दूर रहना चाहेगी
– धनुष बाण यात्रा से राज्यभर में माहौल बनाने में सहायता मिलेगी