Success Story: हरियाणा में ऐसे मिल रही है पराली से निजात, किसानों की आमदनी भी बढ़ी

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Success Story: हरियाणा में ऐसे मिल रही है पराली से निजात, किसानों की आमदनी भी बढ़ी

Success Story: हरियाणा में ऐसे मिल रही है पराली से निजात, किसानों की आमदनी भी बढ़ी


करनाल: कहते हैं यदि मन लगा कर काम किया जाए तो सफलता अवश्य मिलती है। पंजाब और हरियाणा में पराली की समस्या से आप भी परिचित होंगे। ऐसी खूब खबर पढ़ी होगी कि किसान धान या गेहूं की फसल काटने के बाद पराली को खेतों में ही जला दिए। इससे पर्यावरण तो खराब होता ही है, पूरे दिल्ली एनसीआर पर धुंध छा जाता है। हरियाणा सरकार के साथ मिल कर इस समस्या का निदान निकाला डेलॉयट ने। इसी साल हरियाणा सरकार ने डेलॉयट की मदद से ‘क्रॉप रेसिड्यू मैनेजमेंट’ यानी फसल अवशेष प्रबंधन (CRM) पर पायलट क्लाइमेट लीडरशिप प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक पूरा भी कर लिया। इससे क्षेत्र में पराली जलाने की घटनाओं में कमी लाने और वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी लाने में मदद मिली।

इस साल 69 फीसदी कम जले पराली

पूरे हरियाणा में करनाल जिला धान की खेती के लिए विख्यात है। साथ ही वहां कुछ गांव ऐसे हैं, जहां पराली जलाने की घटना भी खूब होती है। इसलिए हरियाणा सरकार ने क्रॉप रेसिड्यू मैनेजमेंट प्रोजेक्ट का पायलट परीक्षण यहीं से किया। करनाल जिले के रेड जोन यानी संवेदनशील गांवों के नाम से पुकारे जाने वाले इस गांव में इस साल यह पायलट प्रोजेक्ट शरू हुआ। देखा गया कि इस साल वहां पराली जलाने की घटनाओं में 69 फीसदी तक की कमी आई है।

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कैसे संभव हुआ यह

डेलॉयट इंडिया (Deloitte India) के पार्टनर और सस्टेनेबिलिटी लीडर विराल ठक्कर बताते हैं “फसल चक्रों के बीच खेतों में आग लगाना पूरे उत्तर भारत की एक बड़ी समस्या है। इसका पर्यावरण पर खासा असर पड़ता है। साथ ही इंसानों को इसकी एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। पराली जलाने की कई वजहों में से एक है, सही समय पर सुपर सीडर्स और बेलर्स जैसे पराली हटाने के उपकरणों की उपलब्धता की कमी। इससे छोटे और कमजोर किसान सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसीलिए, डेलॉयट ने एक सुविधाजनक और टिकाऊ इकोसिस्टम उपलब्ध कराकर इस पहल को समर्थन दिया। जिससे उपकरणों की उपलब्धता की कमी को दूर करने में मदद मिली।

किसानों को उपलब्ध कराई जा रही है मशीनरी

किसानों की मशीनरी की उपलब्धता की कमी के समाधान के लिए हरियाणा स्टेट सीएसआर ट्रस्ट और डेलॉयट मिल कर करनाल जिले में क्रॉप रेसिड्यू मैनेजमेंट उपकरण के 15 सेट उपलब्ध करा रही है। इनमें ट्रैक्टर, स्लैशर, हे रेक्स, बेलर्स, ट्रॉली और लकी सीडर्स शामिल हैं। ठक्कर बताते हैं कि राज्य के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने एक पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से किसानों/ एफपीओ/ उद्यमियों का चयन किया।

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मोबाइल ऐप भी डेवलप किया गया

किसानों को मशीनरी उपलब्ध कराने के साथ साथ डेलॉयट ने एक बहुभाषी मोबाइल एप्लीकेशन ‘कृषि यंत्र साथी’ भी डेवलप किया। इसमें स्थानीय किसानों, विभिन्न कस्टम हायरिंग सेंटर्स (CHC) और किसान उत्पादक संगठनों (FPO) सहित सभी संबंधित स्टेकहोल्डर्स को शामिल किया गया। अब मान लिया जाए कि किसी किसान के पास मशीनरी नहीं है और किसी किसान के पास मशीनरी फालतू पड़ा है। तो दोनों किसान ऐप के जरिए इसका उपयोग कर सकते हैं। इससे मशीनरी के कुशलतापूर्वक और तेजी से आवंटन में तो सहायता मिली ही, पराली को तेजी से खेत से हटाने में भी मदद मिली।

क्या हुआ पराली का?

पराली नहीं जलाना पड़े, इसके लिए इंडियन आयल ने पराली से एथनॉल बनाने का प्लांट हरियाणा में लगाया है। किसानों का करना सिर्फ इतना होता है कि वह खेतों से पराली काट कर प्लांट तक पहुंचा दे। इसी तरह एनटीपीसी ने पराली का उपयोग पावर प्लांट में करना शुरू किया है। वहां किसान पराली पहुंचाते हैं तो उन्हें सीजन में ढाई से तीन रुपये प्रति किलो का दाम मिल जाता है। आॅफ सीजन में तो उन्हें प्रति किलो सात से आठ रुपये का भी दाम मिल जाता है। इस तरह से जो पराली पहले मुफ्त में जला देते थे, उसके बदले उन्हें दाम मिलने लगा। मतलब कि उनकी आमदनी बढ़ गई।

अब आठ और जिले होंगे कवर

हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक नरहरि बांगड़ के मुताबिक अब इस मॉडल का सफलतापूर्वक परीक्षण हो चुका है। इसे अब सरकार राज्य के 8 और जिलों में लागू करेगी। अब फतेहाबाद, सिरसा, जींद, कैथल, कुरुक्षेत्र, अंबाला, यमुना नगर, और करनाल के अन्य गांवों को कवर करने की योजना है। उल्लेखनीय है कि हरियाणा में लगभग 90 फीसदी आग की घटनाओं के लिए ये जिले ही जिम्मेदार हैं।

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