Brajesh Pathak: तुम विद्या कसम खाओ… डिप्टी सीएम बृजेश पाठक का अखिलेश को जवाब भी सुन लीजिए
अपने भाषण के शुरू में ब्रजेश पाठक ने अखिलेश के आरोपों का जवाब देते हुए कहा, मैंने सुना था कि जब राजा का राजपाट चला जाता है तो कुछ लोग डिस्टर्ब हो जाते हैं। पाठक ने अखिलेश के भाषण को ‘झूठ का पुलिंदा कहा’। मौजूदा समाजवादी नेताओं की राम मनोहर लोहिया, जनेश्वर मिश्र जैसे नेताओं से तुलना करते हुए सपा नेताओं को महज ‘ठेकेदार’ कह दिया।
इससे पहले अपने भाषण में अखिलेश ने सत्तारूढ़ भाजपा सरकार पर तंज कसते हुए कहा था, ‘आंखों पर सियासत का असर देख रहे हैं, किस ओर लगी आग किधर देख रहे हैं।’ जब इसके जवाब में उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने शेर दाग दिया, मुझे पतझड़ों की कहानियां सुना सुनाकर न उदास कर, नए मौसमों का पता बता, जो गुजर गया वो गुजर गया।’
अखिलेश और चाचा शिवपाल यादव के संबंधों पर चोट करते हुए ब्रजेश पाठक बोले, चाचा बैठे हैं, चाचा के कलेजे से पूछिए। हमने सुना था कि समाजवाद का मतलब है कि एक रोटी है तो सब बांटकर खा लें। लेकिन यह नहीं सुना था कि चाचा का ही पत्ता साफ। मैं इनकी पीड़ा समझता हूं। फिर अखिलेश की फिरकी लेते हुए उप मुख्यमंत्री बोले, मैं नेता विरोधी दल की बात कहना चाहता हूं, बेचारे सज्जन आदमी हैं, लेकिन आसपास के लोग उन्हें गुमराह किए हुए हैं। पीछे से लोग उन्हें इतना कागज पकड़ा रहे थे कि जितने उन्होंने आजतक न देखे होंगे।
स्कूलों को तबेला बना रखा था, ठेके पर नकल कराई जाती थी। समाजवादी पार्टी ने यह काम किया है। लोकसेवा आयोग का नाम बदलकर एक विशेष जाति पर रख दिया गया था क्योंकि चुने हुए लोगों की सूची में जाति विशेष के लोग होते थे।
समाजवादी पार्टी की विचारधारा को अवसरवादी बताते हुए ब्रजेश पाठक ने कहा, राज्य सभा में जब महिला आरक्षण बिल आया तो समाजवादी सदस्यों ने विरोध किया। एससी/एसटी आरक्षण बिल पर सपा मेंबर ने प्रतियां फाडकर वेल में कूद गए, राज्यसभा में। ये न महिलाओं के हैं न ओबीसी के हैं। जो बैठे हैं सब ठगे गए, छोटी बिरादरी वाले। सब कुछ बस एक ही घर में है सब।’
लखनऊ की एक घटना का जिक्र करते हुए ब्रजेश पाठक बोले, इनकी कानून व्यवस्था की बात सुनें। उस समय हम सांसद थे लखनऊ के हजरतगंज में लोहिया वाहिनी के लोग एक सीओ को बोनट पर टांगकर एसपी के घर में घुस गए थे। उसमें एफआईआर तक नहीं हुई आज तक। खाओ विद्या की कसम, कि नहीं हुआ था। हम विद्याथी मानते हैं खुदको। लो कागज उठाओ खाओ विद्या की कसम।’ अंत में कहा दिल में जलन, ‘आंखों में तल्खी, चेहरे पर नकाब लिए फिरते हैं, जिनके बही खाते बिगडे़ पडे़ हैं वे मेरा हिसाब लिए फिरते हैं।’