विरोध और बगावत के अंतर को समझें… जामिया हिंसा मामले में कोर्ट ने दी जांच एजेंसियों को नसीहत
जज ने जांच एजेंसी की खूब खिंचाई
अडिशनल सेशन जज अरुल वर्मा ने जांच एजेंसी की खूब खिंचाई की। अदालत ने कहा कि वह असल अपराधियों को पकड़ने में असफल रही। उन्हें निश्चित रूप से ‘बलि का बकरा’ बना दिया गया। मामले की चार्जशीट पर असंतोष व्यक्त करते हुए अदालत ने कहा कि पुलिस ने विरोध करने वाली भीड़ में से कुछ लोगों को आरोपी और अन्य को पुलिस गवाह के रूप में पेश करने के लिए मनमाने ढंग से चुना है। अदालत ने कहा कि ‘चेरी पिकिंग’ निष्पक्षता के सिद्धांत के लिए हानिकारक है। अदालत ने देखा कि बिना किसी प्रत्यक्ष गुनाह के, सिर्फ विरोध प्रदर्शन की जगह पर मौजूद रहने से उन्हें आरोपी नहीं माना जा सकता। जज ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने उनके खिलाफ लापरवाही से काम लिया। इमाम व अन्य को मामले से बरी करते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे व्यक्तियों को लंबे समय तक चलने वाले मुकदमे की कठिनाई से गुजरने देना हमारे देश की आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए अच्छा नहीं है। जांच एजेंसियों को आगे सतर्क रहने की सलाह देते हुए अदालत ने कहा कि उनके लिए विरोध और बगावत के बीच के अंतर समझना जरूरी है। बगावत को निर्विवाद रूप से खत्म करना होगा। पर विरोध को स्थान और मंच दोनों मिलना चाहिए।
इन आरोपियों को किया गया बरी
शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तन्हा, सफूरा जरगर के अलावा मो. अबुजर, उमैर अहमद, मो. शोएब, महमूद अनवर, मो. कासिम, मो. बिलाल नदीम, शहजर रजा खान और चंदा यादव को आरोपमुक्त किया गया। हालांकि, कोर्ट ने मोहम्मद इलियास के खिलाफ दंगे के आरोप तय किए हैं।
कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी को दोहराया
आरोपों पर सुनाए गए आदेश में अदालत ने अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े मुलभूत अधिकार की महत्ता भी दोहराई। अदालत ने कहा कि विरोध करने वाले नागरिकों की आजादी में इतने हल्के कारणों के लिए दखल नहीं दिया जाना चाहिए था। यह असहमति और कुछ नहीं बल्कि अनुच्छेद-19 में निहित भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी के अमूल्य मौलिक अधिकार का ही एक रूप है, जो उसमें निहित प्रतिबंधों के अधीन है। अदालत ने कहा यह एक अधिकार है जिसे बरकरार रखने की हमने शपथ ली है।
जांच एजेंसियों को टेक्नोलॉजी का करना चाहिए था इस्तेमाल
अदालत ने यह भी कहा कि मौजूदा मामले में जांच एजेंसियों को टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को शामिल करना चाहिए था या विश्वसनीय खुफिया जानकारी जमा करनी चाहिए थी। तभी उसे आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ न्यायिक प्रणाली के तहत कार्यवाही शुरू करनी चाहिए था। वरना, ऐसे लोगों के खिलाफ ऐसे गलत तरीके से चार्जशीट दायर करने से बचना चाहिए जिनकी भूमिका केवल एक प्रोटेस्ट का हिस्सा बनने तक ही सीमित थी।
‘एक केस में चार बार चार्जशीट दायर करना असाधारण’
पुलिस ने मौजूदा मामले में एक चार्जशीट और तीन सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर कीं। इसे असाधारण मानते हुए अदालत ने कहा कि इनमें वास्तव में कुछ भी नया नहीं है। ऐसे चार्जशीट पर चार्जशीट दाखिल करना बंद होना चाहिए, वरना इससे अभियोजन नहीं, उसकी आड़ में कुछ और होता हुआ नजर आएगा और यह आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों को रौंदने की कोशिश जैसा होगा। आरोपों से आजाद किए गए व्यक्तियों के बारे में अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे प्रथम दृष्टया यह कहा जा सके कि आरोपी किसी दंगाई भीड़ का हिस्सा थे। इसमें कोई भी आरोपी कोई हथियार नहीं दिखा रहा था या कोई पत्थर आदि नहीं फेंक रहा था।
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मामला दिसंबर, 2019 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा की घटनाओं से जुड़ा है। एफआईआर में कथित रूप से दंगा करने और गैरकानूनी रूप से जमा होने का आरोप है। हालांकि, इमाम अभी भी 2020 के नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली दंगों के संबंध में दर्ज दूसरे मामले में हिरासत में हैं।