बिहार के इस जिले में एसपी पर भारी IO! क्या सरकार की मेहरबानी बचा रही अररिया के इस ‘धोखेबाज-धमकीबाज’ अफसर को? h3>
अररिया: अररिया नगर थाना में तीन साल पहले धोखाधड़ी और धमकी दिए जाने के मामले को लेकर 12 दिसम्बर 2019 को दर्ज शिकायत कांड संख्या 1083/19 में सरकारी ऑफिसर और पीजीआरओ विनोद कुमार की जमानत याचिका को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने शुक्रवार को खारिज कर दिया। पीजीआरओ विनोद कुमार ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश पीयूष कमल दीक्षित के कोर्ट में बेल के लिए पेटिशन डाला था,जिसे सुनवाई के दौरान कोर्ट ने रिजेक्ट कर दिया। अररिया नगर थाना में प्राथमिकी कांड संख्या-1083/19 भादवि की धारा 406,420,467,468,471,472,120(बी) के तहत दर्ज किया गया था। एक साल पहले ही डीएसपी और एसपी दोनों ने केस को अपने जांच रिपोर्ट में सही करार दिया था। बावजूद इसके पुलिस ने आरोपी अधिकारी के गिरेबां में हाथ डालने की जहमत नहीं उठा पाई।जबकि डीएसपी और एसपी दोनों ने जांच में मामले को सही पाते हुए आरोपी की गिरफ्तारी का आदेश दिया था।
SP-DSP पर भारी IO!
नगर थाना पुलिस और केस के अनुसंधानकर्ता ने गिरफ्तारी नहीं कर लगातार अधिकारी को रियायत दी। अब जब जिला और सत्र न्यायाधीश के पास से भी जमानत याचिका खारिज हो चुकी है तो भी नगर थाना पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है। पूरा मामला कुछ यूं है कि सिलीगुड़ी की एजेंसी जीएंडडी ट्रेडर्स के प्रोपराइटर शेखर जालान के शिकायत पर तत्कालीन जिला योजना पदाधिकारी और वर्तमान में जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी विनोद कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी। पीड़ित ने विधायक और सांसद मद से स्कूलों और कॉलेजों में जिम सेट आपूर्ति किये जाने का टेंडर लिया था। भुगतान के लिए बार-बार जाने के बावजूद एक दिन जिला योजना पदाधिकारी के आदेश पर शेखर जालान को नगर थाना के हाजत में बंद कर दिया गया था।बाद में शेखर जालान ने एसपी धूरत सायली से इसकी शिकायत की। जिसके बाद तत्कालीन एसपी के निर्देश पर नगर थानाध्यक्ष ने शेखर जालान के उसी आवेदन पर एफआईआर दर्ज किया। इसे बाद में जांच में डीएसपी और एसपी ने भी सही पाते हुए ट्रू कर दिया। बावजूद इसके नगर थाना पुलिस गिरफ्तारी की जहमत नहीं उठा पाई।
बिहार सरकार पर भी सवाल
विनोद कुमार 2019 से ही जिले में पदस्थापित हैं। अब देखिए कि जिला योजना पदाधिकारी के बाद केस दर्ज होने के दो साल बाद भी बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रोन्नति देते हुए उन्हें एडीएम रैंक का अधिकारी बना दिया। यहां तक कि अररिया में 19 मई 2019 को जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के रूप में उन्हें पदस्थापित कर दिया गया। अधिकारियों की गिरफ्तारी को लेकर यह प्रावधान है कि एसपी कार्यालय से जिला अधिकारी को प्रस्ताव भेजा जाता है। प्रस्ताव पर डीएम की स्वीकृति मिलने के बाद ही आरोपी की गिरफ्तारी होती है। लेकिन मामले में एसपी के जांच में सही पाये जाने के बावजूद एसपी कार्यालय से प्रस्ताव डीएम के पास भेजा ही नहीं गया। लोकल थाने और IO यानि ऑफिसर इंजार्ज की ओर से अभियोजन को लेकर स्वीकृति के लिए पत्राचार नहीं किया जाना,सवालों के घेरे में है। इ
आखिर इस अफसर पर थाना और सरकार क्यों मेहरबान?
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल नगर थाना पुलिस और केस के अनुसंधानकर्ता को लेकर है कि एसपी और डीएसपी के जांच में सही पाये जाने और गिरफतारी के आदेश के बावजूद अब तक विभाग से या सरकार के अभियोजन से स्वीकृति क्यों नहीं ली गई। सरकार पर भी सवाल हैं कि ऐसे दागी अधिकारी को सस्पेंड करने के बजाए उल्टे प्रमोशन दे दिया गया।
रिपोर्ट- राहुल कुमार ठाकुर
बिहार की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Delhi News
नगर थाना पुलिस और केस के अनुसंधानकर्ता ने गिरफ्तारी नहीं कर लगातार अधिकारी को रियायत दी। अब जब जिला और सत्र न्यायाधीश के पास से भी जमानत याचिका खारिज हो चुकी है तो भी नगर थाना पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है। पूरा मामला कुछ यूं है कि सिलीगुड़ी की एजेंसी जीएंडडी ट्रेडर्स के प्रोपराइटर शेखर जालान के शिकायत पर तत्कालीन जिला योजना पदाधिकारी और वर्तमान में जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी विनोद कुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी। पीड़ित ने विधायक और सांसद मद से स्कूलों और कॉलेजों में जिम सेट आपूर्ति किये जाने का टेंडर लिया था। भुगतान के लिए बार-बार जाने के बावजूद एक दिन जिला योजना पदाधिकारी के आदेश पर शेखर जालान को नगर थाना के हाजत में बंद कर दिया गया था।बाद में शेखर जालान ने एसपी धूरत सायली से इसकी शिकायत की। जिसके बाद तत्कालीन एसपी के निर्देश पर नगर थानाध्यक्ष ने शेखर जालान के उसी आवेदन पर एफआईआर दर्ज किया। इसे बाद में जांच में डीएसपी और एसपी ने भी सही पाते हुए ट्रू कर दिया। बावजूद इसके नगर थाना पुलिस गिरफ्तारी की जहमत नहीं उठा पाई।
बिहार सरकार पर भी सवाल
विनोद कुमार 2019 से ही जिले में पदस्थापित हैं। अब देखिए कि जिला योजना पदाधिकारी के बाद केस दर्ज होने के दो साल बाद भी बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रोन्नति देते हुए उन्हें एडीएम रैंक का अधिकारी बना दिया। यहां तक कि अररिया में 19 मई 2019 को जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के रूप में उन्हें पदस्थापित कर दिया गया। अधिकारियों की गिरफ्तारी को लेकर यह प्रावधान है कि एसपी कार्यालय से जिला अधिकारी को प्रस्ताव भेजा जाता है। प्रस्ताव पर डीएम की स्वीकृति मिलने के बाद ही आरोपी की गिरफ्तारी होती है। लेकिन मामले में एसपी के जांच में सही पाये जाने के बावजूद एसपी कार्यालय से प्रस्ताव डीएम के पास भेजा ही नहीं गया। लोकल थाने और IO यानि ऑफिसर इंजार्ज की ओर से अभियोजन को लेकर स्वीकृति के लिए पत्राचार नहीं किया जाना,सवालों के घेरे में है। इ
आखिर इस अफसर पर थाना और सरकार क्यों मेहरबान?
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल नगर थाना पुलिस और केस के अनुसंधानकर्ता को लेकर है कि एसपी और डीएसपी के जांच में सही पाये जाने और गिरफतारी के आदेश के बावजूद अब तक विभाग से या सरकार के अभियोजन से स्वीकृति क्यों नहीं ली गई। सरकार पर भी सवाल हैं कि ऐसे दागी अधिकारी को सस्पेंड करने के बजाए उल्टे प्रमोशन दे दिया गया।
रिपोर्ट- राहुल कुमार ठाकुर