न जिंदगी भर दवा, न दोबारा ऑपरेशन.. दिल्ली में ओजाकी तकनीक से पहली बार वॉल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी h3>
नई दिल्ली: हार्ट के मरीज के ही पेरीकार्डियम और हार्ट के बाहरी कवर से वॉल्व बनाकर मरीज में वॉल्व रिप्लेसमेंट करने में डॉक्टरों को सफलता मिली है। जीबी पंत अस्पताल के डॉक्टरों ने यह सफल सर्जरी की है। अस्पताल के कार्डिएक और कार्डिएक सर्जरी विभाग ने मिलकर यह सर्जरी की। बड़ी बात यह है कि अब तक वॉल्व रिप्लेसमेंट में मैकेनिकल और बायो प्रोस्थेटिक वॉल्व लगाए जाते रहे हैं। दोनों में कई प्रकार की खामियां हैं और यह काफी महंगे भी पड़ते हैं। लेकिन इस प्रोसीजर न मरीज को जिंदगी भर दवा खानी पड़ती है और न दोबारा सर्जरी का डर रहता है। इसके अलावा रिएक्शन का खतरा भी नहीं रहता है। साथ ही एक पैसा भी नहीं लगता है। अस्पताल इस प्रोसीजर के जरिए 7 और सर्जरी करने की तैयारी में जुटा हुआ है। डॉक्टर का दावा है कि पीजीआई चंडीगढ़ के बाद दिल्ली सरकार के जीबी पंत अस्पताल देश का दूसरा सरकारी अस्पताल है, जहां पर इस तकनीक से सर्जरी की गई है।
अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर युसूफ जमाल ने बताया कि आमतौर पर दो प्रकार के वॉल्व इस्तेमाल होते हैं। एक मैकेनिकल, यह सस्ता होता है और चलता भी ज्यादा है, लेकिन इसमें मरीज को जिंदगी भर ब्लड थिनर की दवा खानी पड़ती है। अधिकतर मरीज इसी तकनीक से इलाज कराते हैं। दूसरा प्रोसीजर बायो प्रोस्थेटिक है। इसमें पिग का टिशू निकाल कर वॉल्व बनाया जाता है। यह काफी महंगा होता है। इसमें 80 हजार से लेकर 3 लाख रुपये तक का खर्च आता है। लेकिन इस वॉल्व की लाइफ 10 साल के आसपास होती है, यानी दोबारा सर्जरी करनी पड़ सकती है।
तीसरा है ओजाकी प्रोसीजर। जापान के प्रोफेसर आजाकी ने इसका इस्तेमाल किया था। इसी तकनीक पर जीबी पंत के कार्डियक सर्जरी विभाग के एचओडी डॉक्टर प्रो. एम. ए. गिलानी की अगुवाई में दो मरीजों की सर्जरी की गई। उनके साथ डॉक्टर एस. ई. नकवी, एनेस्थीसिया एक्सपर्ट प्रो. विष्णु दत्त शामिल रहे। जबकि इसका फॉलोअप डॉक्टर जमाल और डॉक्टर विशाल कर रहे हैं।
डॉक्टर का कहना है कि इस प्रोसीजर में मरीज के हार्ट का पैरीकार्डियम लिया जाता है और हार्ट के बाहरी कवर को मिलाकर वॉल्व तैयार किया जाता है। इसका फायदा यह होता है कि वॉल्व मरीज के शरीर का ही हिस्सा है, तो उसे रिजेक्ट नहीं करता है। इसलिए ब्लड थिनर की दवा नहीं खानी पड़ती। बाहरी मेटल नहीं होने की वजह से संक्रमण का खतरा कम होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि लाखों का खर्च नहीं होता है। फ्री में सर्जरी हो जाती है। वॉल्व का पैसा बिल्कुल नहीं लगता, क्योंकि वह मरीज के शरीर का ही हिस्सा होता है। डॉक्टर जमाल ने कहा कि दोनों मरीज ठीक हैं। हम 7 और मरीजों की इस तकनीक से सर्जरी करने की तैयारी कर रहे हैं।
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तीसरा है ओजाकी प्रोसीजर। जापान के प्रोफेसर आजाकी ने इसका इस्तेमाल किया था। इसी तकनीक पर जीबी पंत के कार्डियक सर्जरी विभाग के एचओडी डॉक्टर प्रो. एम. ए. गिलानी की अगुवाई में दो मरीजों की सर्जरी की गई। उनके साथ डॉक्टर एस. ई. नकवी, एनेस्थीसिया एक्सपर्ट प्रो. विष्णु दत्त शामिल रहे। जबकि इसका फॉलोअप डॉक्टर जमाल और डॉक्टर विशाल कर रहे हैं।
डॉक्टर का कहना है कि इस प्रोसीजर में मरीज के हार्ट का पैरीकार्डियम लिया जाता है और हार्ट के बाहरी कवर को मिलाकर वॉल्व तैयार किया जाता है। इसका फायदा यह होता है कि वॉल्व मरीज के शरीर का ही हिस्सा है, तो उसे रिजेक्ट नहीं करता है। इसलिए ब्लड थिनर की दवा नहीं खानी पड़ती। बाहरी मेटल नहीं होने की वजह से संक्रमण का खतरा कम होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि लाखों का खर्च नहीं होता है। फ्री में सर्जरी हो जाती है। वॉल्व का पैसा बिल्कुल नहीं लगता, क्योंकि वह मरीज के शरीर का ही हिस्सा होता है। डॉक्टर जमाल ने कहा कि दोनों मरीज ठीक हैं। हम 7 और मरीजों की इस तकनीक से सर्जरी करने की तैयारी कर रहे हैं।