अस्पतालों की जांच में मिला लापरवाही का मर्ज | Merge of negligence found in investigation of hospitals | Patrika News h3>
7 अस्पतालों की होगी गहन जांच डॉक्टरों की टीम ने जिले के उन अस्पतालों की भी रिपोर्ट दी, जिनमें फायर सेफ्टी से लेकर भवन सम्बंधी कई और खामियां उजागर हुईं। इसके बाद कलेक्टर ने शीतलछाया अस्पताल, जीवन ज्योति अस्पताल, डॉ. एसएम बोस अस्पताल, नर्मदा हॉस्पिटल, शिव सागर अस्पताल, मुस्कान हेल्थ केयर व समर्थ श्री अस्पताल की नगर निगम व इलेक्ट्रीक ऑडिट टीम से जांच कराने का निर्देश दिया। नगर निगम क्षेत्र के अस्पतालों के निरीक्षण के लिए फायर व इलेक्ट्रिकल ऑडिट टीम को निर्देशित किया गया कि चिन्हित अस्पतालों का निरीक्षण बारीकी से करें। दस दिन बाद फिर से अस्पतालों का निरीक्षण करें। देखें की जो कमियां पहले पाई गई थीं, उन्हें दूर किया गया या नहीं?
जबलपुर @ पत्रिका. मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रतिदिन पांच सौ से ज्यादा मरीज आते हैं। मरीज सामान्य रोगों से लेकर आंख, कान, गला, श्वसन, हृदय, किडनी के गम्भीर रोगों के इलाज के लिए इस अस्पताल पर निर्भर हैं। इस सबके बीच अस्पताल में बार-बार आग लगने की घटनाओं से यहां की फायर सेफ्टी को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। मंगलवार को ‘पत्रिका’ ने पड़ताल की तो पता लगा कि मेडिकल अस्पताल के पुराने भवनों में अभी भी 10 प्रतिशत वायरिंग पुरानी है। ज्यादा लोड के कारण शॉर्ट सर्किट होता है।
मेडिकल के मुख्य भवन में ओपीडी से लेकर एक्स रे डिपार्टमेंट, बच्चा वार्ड और कई जगह पर पुरानी वायरिंग है। बिजली विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वार्डों व अस्पताल परिसर में 90 प्रतिशत वायरिंग बदली जा चुकी है। सोमवार को बच्चा वार्ड के स्विच बोर्ड में आग लगने की घटना के पहले ऑक्सीजन प्लांट के सामने बिजली के पोल में लगे दो ओपन एल्युमीनियम वायर अपस में टकराने से आग लगी थी। अस्पताल परिसर में ओपन एल्युमीनियम वायर का होना भी आग लगने का बड़ा कारण है। ओपन एल्युमीनियम वायर बदलने का काम शुरू हो गया है। पीजी हॉस्टल से रैन बसेरा के बीच पांच सौ मीटर में ओपन एल्युमीनियम वायर के स्थान पर आर्म्ड केबल लगाई जा रही है। मौजूदा एल्युमीनियम के खुले तार लगभग 20 साल पुराने हैं।
नजर नहीं आता ग्राउंड प्लान मेडिकल अस्पताल कई एकड़ में फैला है। अस्पताल में प्रवेश के पांच द्वार भी हैं। इसके बावजूद अग्नि दुर्घटना जैसी आपात स्थिति में अस्पताल का कोई ग्राउंड प्लान नजर नहीं आता है। जिससे की सुगमता से एम्बुलेंस, दमकल वाहनों को अस्पताल से संबंधित सेक्शन तक पहुंचाया जा सके या मरीजों को बाहर निकाला जा सके। सोमवार को भी बच्चा वार्ड में आग लगने की घटना के दौरान इसकी बानगी देखने को मिली।
मेडिकल अस्पताल के ज्यादातर भवन और वार्डों में पुरानी वायरिंग बदली जा चुकी है, जहां पुराने वायर बचे हैं उन्हें भी बदला जा रहा है। इसके साथ ही पोल में लगे एल्युमीनियम के पुराने वायर जिनके कारण स्पार्किंग की स्थिति बनती थी उन्हें भी बदला जा रहा है।
बी. चंद्रशेखर, सम्भागायुक्त
7 अस्पतालों की होगी गहन जांच डॉक्टरों की टीम ने जिले के उन अस्पतालों की भी रिपोर्ट दी, जिनमें फायर सेफ्टी से लेकर भवन सम्बंधी कई और खामियां उजागर हुईं। इसके बाद कलेक्टर ने शीतलछाया अस्पताल, जीवन ज्योति अस्पताल, डॉ. एसएम बोस अस्पताल, नर्मदा हॉस्पिटल, शिव सागर अस्पताल, मुस्कान हेल्थ केयर व समर्थ श्री अस्पताल की नगर निगम व इलेक्ट्रीक ऑडिट टीम से जांच कराने का निर्देश दिया। नगर निगम क्षेत्र के अस्पतालों के निरीक्षण के लिए फायर व इलेक्ट्रिकल ऑडिट टीम को निर्देशित किया गया कि चिन्हित अस्पतालों का निरीक्षण बारीकी से करें। दस दिन बाद फिर से अस्पतालों का निरीक्षण करें। देखें की जो कमियां पहले पाई गई थीं, उन्हें दूर किया गया या नहीं?
जबलपुर @ पत्रिका. मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रतिदिन पांच सौ से ज्यादा मरीज आते हैं। मरीज सामान्य रोगों से लेकर आंख, कान, गला, श्वसन, हृदय, किडनी के गम्भीर रोगों के इलाज के लिए इस अस्पताल पर निर्भर हैं। इस सबके बीच अस्पताल में बार-बार आग लगने की घटनाओं से यहां की फायर सेफ्टी को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। मंगलवार को ‘पत्रिका’ ने पड़ताल की तो पता लगा कि मेडिकल अस्पताल के पुराने भवनों में अभी भी 10 प्रतिशत वायरिंग पुरानी है। ज्यादा लोड के कारण शॉर्ट सर्किट होता है।
मेडिकल के मुख्य भवन में ओपीडी से लेकर एक्स रे डिपार्टमेंट, बच्चा वार्ड और कई जगह पर पुरानी वायरिंग है। बिजली विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वार्डों व अस्पताल परिसर में 90 प्रतिशत वायरिंग बदली जा चुकी है। सोमवार को बच्चा वार्ड के स्विच बोर्ड में आग लगने की घटना के पहले ऑक्सीजन प्लांट के सामने बिजली के पोल में लगे दो ओपन एल्युमीनियम वायर अपस में टकराने से आग लगी थी। अस्पताल परिसर में ओपन एल्युमीनियम वायर का होना भी आग लगने का बड़ा कारण है। ओपन एल्युमीनियम वायर बदलने का काम शुरू हो गया है। पीजी हॉस्टल से रैन बसेरा के बीच पांच सौ मीटर में ओपन एल्युमीनियम वायर के स्थान पर आर्म्ड केबल लगाई जा रही है। मौजूदा एल्युमीनियम के खुले तार लगभग 20 साल पुराने हैं।
नजर नहीं आता ग्राउंड प्लान मेडिकल अस्पताल कई एकड़ में फैला है। अस्पताल में प्रवेश के पांच द्वार भी हैं। इसके बावजूद अग्नि दुर्घटना जैसी आपात स्थिति में अस्पताल का कोई ग्राउंड प्लान नजर नहीं आता है। जिससे की सुगमता से एम्बुलेंस, दमकल वाहनों को अस्पताल से संबंधित सेक्शन तक पहुंचाया जा सके या मरीजों को बाहर निकाला जा सके। सोमवार को भी बच्चा वार्ड में आग लगने की घटना के दौरान इसकी बानगी देखने को मिली।
मेडिकल अस्पताल के ज्यादातर भवन और वार्डों में पुरानी वायरिंग बदली जा चुकी है, जहां पुराने वायर बचे हैं उन्हें भी बदला जा रहा है। इसके साथ ही पोल में लगे एल्युमीनियम के पुराने वायर जिनके कारण स्पार्किंग की स्थिति बनती थी उन्हें भी बदला जा रहा है।