President Election: राष्ट्रपति भवन में क्यों नहीं रहना चाहते थे भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी h3>
नई दिल्लीः नीलम संजीव रेड्डी भारत के छठे राष्ट्रपति बने। उनका कार्यकाल 25 जुलाई 1977 से 25 जुलाई 1982 तक रहा। जब उनका देश का राष्ट्रपति बनना तय हो गया तो उन्होंने इच्छा जताई कि वे राष्ट्रपति भवन से इतर किसी छोटे आवास में रहना चाहेंगे। वे इस तरह की इच्छा जताने वाले अब तक के एक मात्र राष्ट्रपति रहे। कहते हैं कि नीलम संजीव रेड्डी को समझाया गया कि सुरक्षा और अन्य कारणों के चलते यह संभव नहीं होगा कि उनके लिए राष्ट्रपति भवन के स्थान पर कहीं अन्य रहने की व्यवस्था की जाए। उन्होंने यह तर्क मानते हुए 340 कमरों वाले भव्य राष्ट्रपति भवन में ही रहने का फैसला लिया, लेकिन वे राष्ट्रपति भवन के कुछ कमरों को ही यूज करते थे। सन 1977 के आम चुनाव में जब इंदिरा गांधी की हार हुई, उस समय नवगठित जनता पार्टी ने नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनाया।
भाई वीर सिंह सदन में नीलम संजीव रेड्डी
गोल मार्केट एरिया में एक सड़क भाई वीर सिंह मार्ग कहलाती है। पहले इसका नाम होता था बेयर्ड रोड। पुराने नाम को अब भी पूरी तरह से दिल्ली भूली नहीं है। भाई वीर सिंह पंजाबी के कवि थे। उनके उपन्यासों में 17वीं शताब्दी के गुरु गोविंद सिंह के जीवन पर आधारित उपन्यास कलगीधर चमतहार (1935) और सिख धर्म के संस्थापक की जीवन कथा गुरु नानक चमतहार, दो संस्करण (1936, गुरु नानक की कथाएं) शामिल हैं। उनकी 1957 में मृत्यु के बाद राजधानी में भाई वीर सिंह सदन स्थापित हुआ। राजधानी में भाई वीर सिंह साहित्य सदन की स्थापना 1958 में हो गई थी। भाई वीर सिंह साहित्य सदन की इमारत का शिलान्यास रखा गया 2 मार्च 1972 को। सदन की इमारत को बनने में छह साल लगे थे और इसका उद्घाटन किया था तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने 1978 में। दिल्ली में सदन की इमारत को बनाने का श्रेय़ जाता है पूर्व विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह, केंद्रीय मंत्री जी.एस. ढिल्लन, सुरजीत सिंह मजीठिया, बहादुर उज्जवल सिंह, डॉ. इंदरजीत सिंह जैसी विभूतियों को।
राष्ट्रपति भवन के बाद कहां रहे नीलम संजीव रेड्डी
नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति पद से रिटायर होने के बाद अपने गृह प्रदेश आंध्र प्रदेश चल गए थे। वे राज्य के अंनतपुर शहर में रहने लगे थे। वे जमीनी व्यक्ति थे। उन्हें लुटियंस दिल्ली के बंगले में रहने से बेहतर लगा कि वे अपने लोगों के साथ रहें। वे पक्के गांधीवादी थे। उनका जीवन सादगी की मिसाल था। नीलम संजीव रेड्डी अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा गरीबों को दे देते थे। उनकी पत्नी नागा रत्नम्मा भी बहुत सीधी-सरल महिला थीं। उनसे राष्ट्रपति भवन में कोई भी मिल सकता था। वे दिल्ली छोड़ने के बाद यहां नहीं आते थे। वे अपने प्रदेश में ही रचनात्मक कार्यों में लग रहते थे। उनका 1 जून 1996 को निधन हो गया था।
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भाई वीर सिंह सदन में नीलम संजीव रेड्डी
गोल मार्केट एरिया में एक सड़क भाई वीर सिंह मार्ग कहलाती है। पहले इसका नाम होता था बेयर्ड रोड। पुराने नाम को अब भी पूरी तरह से दिल्ली भूली नहीं है। भाई वीर सिंह पंजाबी के कवि थे। उनके उपन्यासों में 17वीं शताब्दी के गुरु गोविंद सिंह के जीवन पर आधारित उपन्यास कलगीधर चमतहार (1935) और सिख धर्म के संस्थापक की जीवन कथा गुरु नानक चमतहार, दो संस्करण (1936, गुरु नानक की कथाएं) शामिल हैं। उनकी 1957 में मृत्यु के बाद राजधानी में भाई वीर सिंह सदन स्थापित हुआ। राजधानी में भाई वीर सिंह साहित्य सदन की स्थापना 1958 में हो गई थी। भाई वीर सिंह साहित्य सदन की इमारत का शिलान्यास रखा गया 2 मार्च 1972 को। सदन की इमारत को बनने में छह साल लगे थे और इसका उद्घाटन किया था तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने 1978 में। दिल्ली में सदन की इमारत को बनाने का श्रेय़ जाता है पूर्व विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह, केंद्रीय मंत्री जी.एस. ढिल्लन, सुरजीत सिंह मजीठिया, बहादुर उज्जवल सिंह, डॉ. इंदरजीत सिंह जैसी विभूतियों को।
राष्ट्रपति भवन के बाद कहां रहे नीलम संजीव रेड्डी
नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति पद से रिटायर होने के बाद अपने गृह प्रदेश आंध्र प्रदेश चल गए थे। वे राज्य के अंनतपुर शहर में रहने लगे थे। वे जमीनी व्यक्ति थे। उन्हें लुटियंस दिल्ली के बंगले में रहने से बेहतर लगा कि वे अपने लोगों के साथ रहें। वे पक्के गांधीवादी थे। उनका जीवन सादगी की मिसाल था। नीलम संजीव रेड्डी अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा गरीबों को दे देते थे। उनकी पत्नी नागा रत्नम्मा भी बहुत सीधी-सरल महिला थीं। उनसे राष्ट्रपति भवन में कोई भी मिल सकता था। वे दिल्ली छोड़ने के बाद यहां नहीं आते थे। वे अपने प्रदेश में ही रचनात्मक कार्यों में लग रहते थे। उनका 1 जून 1996 को निधन हो गया था।