समाजवादी किले की हर दीवार पर थी भगवा मोर्चेबंदी, रामपुर-आजमगढ़ में यूं ही नहीं जीती BJP, पूरी रणनीति समझिए

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समाजवादी किले की हर दीवार पर थी भगवा मोर्चेबंदी, रामपुर-आजमगढ़ में यूं ही नहीं जीती BJP, पूरी रणनीति समझिए

समाजवादी किले की हर दीवार पर थी भगवा मोर्चेबंदी, रामपुर-आजमगढ़ में यूं ही नहीं जीती BJP, पूरी रणनीति समझिए

लखनऊ: भाजपा के रणनीतिक कौशल ने विपक्ष के दो और गढ़ आजमगढ़-रामपुर ढहा दिए। इसके लिए पार्टी ने समाजवादी किले की हर दीवार पर मोर्चेबंदी की थी। भाजपा ने अपने वोटरों को सहेजने के साथ विपक्षी मतदाताओं को भेदने की रणनीति पर भी काम किया। यही वजह है कि रामपुर में 50% से अधिक मुस्लिम, आजमगढ़ में 40% एम-वाई वोटर होने के बाद भी भाजपा दोनों सीटें अपने पाले में करने में कामयाब रही।

आजमगढ़ में भाजपा ने सिर्फ एक बार 2009 में सपा से आए रमाकांत यादव के भरोसे ही जीत हासिल की थी। वहीं, रामपुर में भाजपा को 1991, 1998 और 2014 में तब जीत मिली थी, जब त्रिकोणीय मुकाबला था। इसके लिए जीत की व्यूह रचना तैयार की गई। सपा मुखिया जहां दोनों सीटों पर नहीं गए, वहीं भाजपा की ओर से सीएम योगी, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह समेत सरकार के ढेर सारे मंत्री और संगठन के पदाधिकारी मोर्चा संभाले हुए थे। आजमगढ़ में मंत्री सूर्य प्रताप शाही और रामपुर में सुरेश खन्ना के साथ संगठन के पदाधिकारी प्रभारी बनाए गए।
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बूथ मैनेजमेंट से लेकर कास्ट मैनेजमेंट पर फोकस
2019 से भाजपा ने अपराजेय विपक्षी किलों को भेदने की रणनीति पर जिस कौशल के काम शुरू किया था, वह इस बार उपचुनाव में भी काम आई। यादव और मुस्लिम बहुल आजमगढ़ में एक बार फिर से पूर्वांचल के चर्चित भोजपुरी सिने-स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ और रामपुर से मुस्लिमों के बाद दूसरी बड़ी आबादी वाले पिछड़ों में से लोध जाति के घनश्याम लोधी को चुनाव मैदान में उतारा गया। बूथ मैनेजमेंट पर भी विशेष काम हुआ।

चुनाव घोषित होते ही भाजपा ने आजमगढ़ और रामपुर में एक-एक कमजोर बूथ को छांटकर उस पर मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को जिम्मेदारी दी। वह नियमित तौर पर उनके साथ बैठकें करते रहे। हर मतदाता तक पहुंच मंत्री खुद समझाते रहे कि सपा के प्रतिनिधि होने की वजह से आजमगढ़ और रामपुर को हासिल किया हुआ? विकास कितना हुआ? मतदान के दिन तक भाजपा इन वोटरों को समझाकर अपने पाले में करने में सफल रही।

पार्टी ने हर जाति के मंत्रियों को उनकी बिरादरी में ही बात कर समझाने को लगाया था। खासतौर पर यादव, मौर्य, लोधी, जाटव, पासी और पिछड़ा और दलित वर्ग के अन्य मतों को अपने पाले में लाने पर फोकस किया गया। इसका फायदा पार्टी को हुआ। चूंकि घनश्याम लोधी खुद आजम के करीबी रह चुके थे, इस वजह से वह उनकी रणनीति को समझते थे। वह मुस्लिमों के एक तबके के बीच आजम खां के बारे में यह समझाने में सफल रहे कि सरकार रहने पर उन्होंने मुस्लिमों पर भी जुल्म किए हैं। आजमगढ़ में भी यह बात वोटरों के बीच समझाई गई कि मुलायम-अखिलेश के प्रतिनिधि रहने के बावजूद यहां कोई विकास नहीं हुआ।

हिंदुत्व समेत कोर अजेंडे को भुनाया
भाजपा ने हिंदुत्व समेत कानून-व्यवस्था को बेहतर बताने वाले कोर अजेंडे को भी वोटरों के बीच भुनाया। सीएम योगी ने आजमगढ़ में आर्यमगढ़ का मुद्दा उठाकर हिंदुत्व की धार तेज की तो रामपुर में गरीब मुस्लिमों के घर ढहाने वाले आजम खां को माफिया बताकर योगी ने ‘ब्रैंड योगी’ को भी मजबूत किया। बुलडोजर और माफिया पर हमले जारी रहे।
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आजम खान के जेल में रहने की छवि को भी ‘भ्रष्ट’ और आपराधिक पृष्ठभूमि का बताकर भी मतदाताओं को अपने पाले में करने की कोशिश की गई। डिप्टी सीएम केशव मौर्य भी राम-राज्य बनाम अब्दुल्ला राज का मुद्दा उठाकर हिंदुत्व के मुद्दे को वोटर्स के दिल तक पहुंचाने में सफल रहे।

लाभार्थी को बनाया वोटर
भाजपा ने इस बार भी लाभार्थियों को वोट में तब्दील करने पर काम किया। इसके लिए बाकायदा विधायकों-सांसदों के साथ मं‌त्रियों की एक टीम लाभार्थियों को राशन, किसान सम्मान निधि, आयुष्मान कार्ड के फायदे बताकर उनके मन को भेदने में जुटी रही। यह टीम हर विधानसभावार दोनों लोकसभा सीटों पर गांव-गांव पर काम कर रही थी।
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अब मैनपुरी-रायबरेली पर फोकस
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा चुनाव दर चुनाव और मजबूत ही होती गई है। सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी 2019 में 64 जीतने वाली भाजपा ने उपचुनाव में विपक्ष का एक और किला ढहाया है। ऐसे में 2024 के चुनाव के लिए पार्टी का विश्वास और माहौल और मजबूत होगा। उपचुनाव के बाद अब भाजपा सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की मैनपुरी और सोनिया गांधी की रायबरेली लोकसभा सीट पर फोकस करेगी। इसके लिए बूथ स्तर पर काम शुरू करने की रणनीति बन गई है।

दरअसल, 2019 में भाजपा ने राहुल गांधी की अमेठी के साथ सपा के गढ़ कन्नौज और बदायूं को भी जीत लिया था। कन्नौज से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल और बदायूं से चचेरे भाई धमेंद्र यादव चुनाव जीतते आए थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने 2017 में हारी हुई 85 सीटों पर नई रणनीति के साथ काम किया था। इसमें पार्टी ने 69 सीटों पर प्रत्याशी बदलकर 19 सीटें जीत ली थीं तो 16 सीटों पर 2017 वाले प्रत्याशियों को ही लड़ाया और चार सीटें इनमें से भी जीत लीं यानी 85 सीटों में 23 जीतने में पार्टी सफल रही थी।

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