Maharashtra Political Crisis: 10वीं अनुसूची के पैरा 4 में छिपा है उद्धव ठाकरे की उम्मीद और शिंदे की मुश्किल

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Maharashtra Political Crisis: 10वीं अनुसूची के पैरा 4 में छिपा है उद्धव ठाकरे की उम्मीद और शिंदे की मुश्किल

Maharashtra Political Crisis: 10वीं अनुसूची के पैरा 4 में छिपा है उद्धव ठाकरे की उम्मीद और शिंदे की मुश्किल

मुंबई: महाराष्‍ट्र की उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) सरकार पर छाया संकट किसी पहेली की तरह सुलझने के करीब नहीं है। राज्य में विपक्षी राजनेताओं के साथ-साथ गुवाहाटी में रेडिसन ब्लू होटल के बाहर खड़े टीवी एंकरों के लिए असंतुष्टों की कतार दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। लेकिन इस सारे ड्रामे में ज्यादातर राजनेताओं और मीडिया ने मिलकर दलबदल विरोधी कानून को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है, जिससे काफी भ्रम पैदा हुआ है। हर कोई 37 नंबर को ऐसे टटोलता रहता है मानो कोई जादू हो। चर्चा यह है कि अगर एकनाथ शिंदे का विद्रोही गुट कम से कम 37 विधायकों का समर्थन जो पार्टी के 55 विधायकों का दो-तिहाई है, जुटा लेता है तो वे अयोग्यता से बच सकते हैं।

ऐसे में दल-बदल के मूल कानून यानी संविधान की 10वीं अनुसूची की बारी आती है। इसको बारीकी से पढ़ने से पता चलता है कि ऐसे न‍ियम हैं जिन्हें ज्‍यादातर लोग अपने उत्साह में आसानी से भूल गए हैं। इसलिए हमारा ध्यान दल-बदल पर कानून के इन प्रमुख न‍ियमों की ओर द‍िलाना जरूरी है जो क‍ि 1985 में लागू हुआ था। 10वीं अनुसूची के तहत, यदि किसी दल से संबंधित विधान सभा का कोई सदस्य अपनी मर्जी से पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है या सदन में उस पार्टी की ओर से जारी किए गए व्हिप के खिलाफ वोट देता है, तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है। लेकिन कानून ने दो अपवादों का भी ज‍िक्र है, जिसके तहत एक सदस्य अयोग्यता से बच सकता था।

आयाराम-गयाराम संस्कृति
एक अपवाद मूल राजनीतिक दल में बंटवारे के संबंध में है, जिसके परिणामस्वरूप एक तिहाई विधायक बाहर चले जाएं और एक अलग गुट बना लिया हो। ऐसी स्थिति में वह गुट अयोग्य होने के लिए जवाबदेह नहीं होगा। लेकिन चूंकि राजनेताओं की ओर से इस अपवाद का बहुत दुरुपयोग किया गया था (आयाराम-गयाराम संस्कृति याद रखें), इसे बाद में संसद की ओर से एक संशोधन के जर‍िए हटा दिया गया था। यहां तक कि बंटवारे के लिए पहली शर्त कि यह मूल राजनीतिक दल में होना है, को भी नजरअंदाज कर दिया गया और केवल विधायिका विंग में बंटवारे की गणना की गई।

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दूसरे अपवाद में छ‍िपी कहानी
दूसरा अपवाद विलय के संबंध में है। इसके तहत, यदि कोई राजनीतिक दल किसी दूसरे राजनीतिक दल में विलय करता है और उसके दो तिहाई विधायक ऐसे विलय के लिए सहमत होते हैं, तो वे अयोग्य नहीं होंगे। यह एक अपवाद है जिसका पिछले आठ सालों के दौरान हुए दलबदल के सभी मामलों में दुरुपयोग किया गया है। जैसा कि बंटवारे के मामले में हुआ था। यहां भी सदस्य केवल संख्या का ही ध्यान रखते हैं। उन्होंने इस धारणा पर काम करना शुरू कर दिया कि कानून के तहत उन्हें दो-तिहाई संख्या हासिल करने और अपनी पार्टी से बाहर निकलने की जरूरत है। ऐसे सभी मामलों में, दलबदल के मामलों का निर्धारण करने वाले अध्यक्षों ने स्पष्ट कारणों से उनका समर्थन किया है। जैसे ही हुआ, वे सभी विधायक सीधे सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गए।

10वीं अनुसूची का पैरा 4 क्‍या कहता है?

हालांकि, 10वीं अनुसूची का पैरा 4 जिसमें यह अपवाद है, एक बात स्पष्ट करता है। विलय को मूल राजनीतिक दल में तभी माना जाएगा जब कम से कम दो तिहाई विधायक ऐसे विलय के लिए सहमत हों। कानून इस बात पर भी स्पष्ट है कि विलय पहले दो मूल राजनीतिक दलों के बीच होना है। यदि ऐसा कोई विलय नहीं होता है, तो अपवाद लागू नहीं होता है।

बागी व‍िधायकों की कहां ट‍िकी उम्‍मीद

हालांकि, गिरीश चोडनकर बनाम माननीय अध्यक्ष गोवा विधान सभा में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले में, यह माना गया था कि एक विधायक दल के दो-तिहाई सदस्यों का किसी अन्य दल के साथ विलय को मूल राजनीतिक दलों का विलय माना जाएगा। यह फैसला 10वीं अनुसूची के अनुसार सही संवैधानिक स्थिति को नहीं दर्शाता है। फिर भी, निर्णय इस फैक्‍ट पर भी जोर देता है कि अयोग्यता से बचने के लिए विधायक दल के दो-तिहाई सदस्यों को किसी अन्य पार्टी के साथ विलय करना पड़ता है।

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महाराष्‍ट्र में बन रही स्‍थ‍ित‍ि
दलबदल विरोधी कानून के कानूनी प्रावधानों के इस एनाल‍िस‍िस से दो बातें साफ हो जाती हैं। एक, दो-तिहाई सदस्यों के साथ भी श‍िवसेना के विद्रोहियों का टूटा हुआ गुट एक स्वतंत्र गुट या पार्टी के रूप में कार्य नहीं कर सकता है। दो, यदि बीजेपी या किसी अन्य पार्टी में विलय नहीं होता है, तो अयोग्यता से छूट लागू नहीं होती है और सभी अयोग्य घोषित हो सकते हैं।

दल-बदल कानून के मुख्‍य प्‍वाइंट को भूले
10वीं अनुसूची का मुख्‍य प्‍वाइंट निर्वाचित होने के बाद अपनी पार्टी छोड़ने वाले को अयोग्य घोषित करना है। यह एक सदस्य हो सकता है या यह सभी सदस्य हो सकते हैं। बेशक, यह विलय के अपवाद के अधीन है। दरअसल दलबदल विरोधी कानून दलबदल की सुविधा के लिए नहीं बल्कि इसे खत्म करने के लिए बनाया गया था। यह एक प्रमुख फैक्‍ट है जिसे विधायक और राजनीतिक गुट पूरी तरह से भूल गया है। महाराष्ट्र की घटनाएं हमें एक बार फिर यही सबक सिखाती हैं।

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