यहां भी है विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्थल, क्या आप इनके बारे में जानते हैं | buddhist heritage sites of madhya pradesh | Patrika News h3>
आइए जानते हैं मध्यप्रदेश के प्रमुख बौद्ध स्थलों के बारे में…।
सांची स्तूप, जिसे अंग्रेजों ने तलाशा
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 46 किमी. की दूरी पर स्थित 3 स्तूप हैं, जिन्हें देश के सबसे संरक्षित स्तूपों में से एक माना जाता है। स्तूप पवित्र बौद्ध स्थल होते हैं, जिन्हें चैत्य भी कहा जाता है। इन स्तूपों का उपयोग अवशेषों को रखने के लिए किया जाता है। 483 ईसा पूर्व में जब भगवान बुद्ध ने अपना ध्येय त्यागा, तो राजा महाराजा आपस में झगड़ने लगे। सांची के इन स्तूपों का निर्माण सम्राट अशोक की पत्नि महादेवी सक्यकुमारी ने कराया था, जो विदिशा (बैसनगर) के एक व्यापारी की बेटी थीं। सांची उनका जन्मस्थान एवं उनके विवाह स्थल से संबंधित है। यह स्तूप तीसरी शताब्दी ईसा. पूर्व से 12वी शताब्दी ईसा. पूर्व के बताए जाते हैं। इस स्तूप में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के अवशेषों को रखा गया था। साथ ही इसके सम्मान में स्मारक को दिए गए ऊंचे सम्मान रूपी एक छत्र था।
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200 साल पहले ब्रिटिश नागरिक ने खोजा था यह इलाका, अब दुनियाभर से आते हैं लाखों पर्यटक
सातवाहन काल के राजा सतकर्णी के काल में बनाये गए इस स्तूप को काफी सुंदर रंगों से सजाया गया है। इसकी लंबाई लगभग 16.4 मीटर जबकि इसका व्यास 36.5 मीटर है। हालांकि 1818 में एक ब्रिटिश अधिकारी जनरल टेलर ने इन स्तूपों की खोज की थी, इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन मार्शल को इसके पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी। और सन् 1912-1919 के बीच इस संरचना को पुन: खड़ा कर दिया गया। इस स्तूप का निर्माण बौद्ध शिक्षाओं और बौद्ध अध्ययन को सिखाने के लिए किया गया था। सांची स्तूप के निकट आशोक स्तंभ पाया गया है, जिसमें सारनाथ की तरह चार शेर शामिल हैं। साथ ही यहां ब्राम्ही लिपि के कुछ शिलालेख भी पाए गए हैं। सांची के बौद्ध स्तूप की अद्भुत वास्तुकला को देखते हुए इसे 1989 में यूनेस्को ने अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया।
सतधारा एक प्रमुख बौद्ध स्थल
सांची स्तूप से 9 किमी. की दूरी पर स्थित सतधारा एक प्रमुख बौद्ध स्थल है। यहां मौर्य और गुप्त से संबंधित तस्वीरों को चट्टान पर उकेरा गया है। दिलचस्प बात यह है, यहां स्तूप संख्या 2 में सारिपुत्र और महामौगलायन के अवशेष के कुछ ताबूत मिले थे, जिन्हें महात्मा बुद्ध का शिष्य बताया जाता है।
मुरेलखुर्द तकरीबन 37 स्तूपों की बस्ती
इसे भोजपुर स्तूप के नाम से भी जाना जाता है। यह सांची से लगभग 11 किमी. की दूरी पर स्थित है। मुरेलखुर्द 37 स्तूपों और 2 बौद्ध मंदिरों की बस्ती है। इन बौद्ध मंदिरों में एक महात्मा बुद्ध की आकृति में पाया गया है। इन चैत्यों की खोज 19वी. सदी में मेजर कनिंघम नाम के एक ब्रिटिश ने की थी। इन स्तूपों में बौद्ध शिक्षकों और वरिष्ठ शिष्यों के अवशेषों के ताबूत सजाए गए हैं।
अंधेर 6 स्तूपों की बस्ती
रायसेन जिले के सांची से 19 किमी की दूरी पर स्थित अंधेर एक खूबसूरत साइट है, जहां से शानदार मुरेलखुर्दों को देखा जा सकता है। यह एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित 6 स्तूपों का खूबसूरत समूह है। अन्य बौद्ध स्थलों की तरह यहां भी कुछ ताबूत मिले थे, लेकिन सभी खाली पाए गए थे।
सोनारी के स्तूप, यहां मिले अवशेषों को लंदन ले जाया गया
सांची से लगभग 25 किमी. की दूरी पर स्थित सोनारी के बौद्ध स्तूप अचंम्भित कर देते हैं, ये 2 बड़े और 5 छोटे स्तूपों का एक समूह है। इसकी खोज 1850 में एक ब्रिटिश नागरिक ने की थी। यहां कुछ अवशेष पाए गए थे, जिन्हें दो बक्सों में लाया गया था। लेकिन इनकी भव्यता को देख इन्हें लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में स्थापित किया गया था।
सारू मारू जहां अशोक कुछ समय के लिए ठहरे थे
सारू मारू बौद्ध गुफाओं और स्तूपों के साथ एक मठवासी परिसर है, जो राजधानी भोपाल से लगभग 80 किमी. की दूरी पर स्थित है। इसे भीमबैठिका रॉक शेल्टर के नाम से जाना जाता है, जो रॉक पेंटिंग और गुफाओं के लिए मशहूर है। यहां चट्टानों पर खूबसूरत नक्काशी को देखा जा सकता है। यहां की मुख्य गुफा में सम्राट अशोक के शिलालेख हैं, जिनमें उनके दौरे का विवरण दिया गया है, इससे पता चलता है, वे अपनी पत्नी के साथ इस स्थान पर कुछ समय के लिए रुके थे।
देवरकोठार व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र
रीवा जिले में स्थित देवरकोठार बौद्ध स्थापत्य एवं कला की एक सुंदर कृति समझा जाता है। यहां 4 से अधिक अवशेष मिले थे, जिन्हें साइट पर देखा जा सकता है। सबसे अहम खोज एक उत्कीर्ण स्तंभ था, जिसमें आचार्य धर्मदेव और उनके तीन छात्रों उत्तरमित्र, भद्र और उपस्क के नाम का उल्लेख किया गया था, जिनके बारे में ऐसी धारणा है कि वे यहां रुके थे, जबकि आसपास का क्षेत्र रॉक पेंटिंग्स के जरिए पुराने समय की कई कहानियां बयां करता है। टेराकोटा खिलौने, कान के स्टड, मोतियों जैसी साइट से जो चीजें मिलीं, उससे पता चलता है कि प्राचीनकाल में देवरकोठार व्यापार का सक्रिय केंद्र रहा होगा।
आइए जानते हैं मध्यप्रदेश के प्रमुख बौद्ध स्थलों के बारे में…।
सांची स्तूप, जिसे अंग्रेजों ने तलाशा
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 46 किमी. की दूरी पर स्थित 3 स्तूप हैं, जिन्हें देश के सबसे संरक्षित स्तूपों में से एक माना जाता है। स्तूप पवित्र बौद्ध स्थल होते हैं, जिन्हें चैत्य भी कहा जाता है। इन स्तूपों का उपयोग अवशेषों को रखने के लिए किया जाता है। 483 ईसा पूर्व में जब भगवान बुद्ध ने अपना ध्येय त्यागा, तो राजा महाराजा आपस में झगड़ने लगे। सांची के इन स्तूपों का निर्माण सम्राट अशोक की पत्नि महादेवी सक्यकुमारी ने कराया था, जो विदिशा (बैसनगर) के एक व्यापारी की बेटी थीं। सांची उनका जन्मस्थान एवं उनके विवाह स्थल से संबंधित है। यह स्तूप तीसरी शताब्दी ईसा. पूर्व से 12वी शताब्दी ईसा. पूर्व के बताए जाते हैं। इस स्तूप में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के अवशेषों को रखा गया था। साथ ही इसके सम्मान में स्मारक को दिए गए ऊंचे सम्मान रूपी एक छत्र था।
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200 साल पहले ब्रिटिश नागरिक ने खोजा था यह इलाका, अब दुनियाभर से आते हैं लाखों पर्यटक
सातवाहन काल के राजा सतकर्णी के काल में बनाये गए इस स्तूप को काफी सुंदर रंगों से सजाया गया है। इसकी लंबाई लगभग 16.4 मीटर जबकि इसका व्यास 36.5 मीटर है। हालांकि 1818 में एक ब्रिटिश अधिकारी जनरल टेलर ने इन स्तूपों की खोज की थी, इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन मार्शल को इसके पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी। और सन् 1912-1919 के बीच इस संरचना को पुन: खड़ा कर दिया गया। इस स्तूप का निर्माण बौद्ध शिक्षाओं और बौद्ध अध्ययन को सिखाने के लिए किया गया था। सांची स्तूप के निकट आशोक स्तंभ पाया गया है, जिसमें सारनाथ की तरह चार शेर शामिल हैं। साथ ही यहां ब्राम्ही लिपि के कुछ शिलालेख भी पाए गए हैं। सांची के बौद्ध स्तूप की अद्भुत वास्तुकला को देखते हुए इसे 1989 में यूनेस्को ने अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया।
सतधारा एक प्रमुख बौद्ध स्थल
सांची स्तूप से 9 किमी. की दूरी पर स्थित सतधारा एक प्रमुख बौद्ध स्थल है। यहां मौर्य और गुप्त से संबंधित तस्वीरों को चट्टान पर उकेरा गया है। दिलचस्प बात यह है, यहां स्तूप संख्या 2 में सारिपुत्र और महामौगलायन के अवशेष के कुछ ताबूत मिले थे, जिन्हें महात्मा बुद्ध का शिष्य बताया जाता है।
मुरेलखुर्द तकरीबन 37 स्तूपों की बस्ती
इसे भोजपुर स्तूप के नाम से भी जाना जाता है। यह सांची से लगभग 11 किमी. की दूरी पर स्थित है। मुरेलखुर्द 37 स्तूपों और 2 बौद्ध मंदिरों की बस्ती है। इन बौद्ध मंदिरों में एक महात्मा बुद्ध की आकृति में पाया गया है। इन चैत्यों की खोज 19वी. सदी में मेजर कनिंघम नाम के एक ब्रिटिश ने की थी। इन स्तूपों में बौद्ध शिक्षकों और वरिष्ठ शिष्यों के अवशेषों के ताबूत सजाए गए हैं।
अंधेर 6 स्तूपों की बस्ती
रायसेन जिले के सांची से 19 किमी की दूरी पर स्थित अंधेर एक खूबसूरत साइट है, जहां से शानदार मुरेलखुर्दों को देखा जा सकता है। यह एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित 6 स्तूपों का खूबसूरत समूह है। अन्य बौद्ध स्थलों की तरह यहां भी कुछ ताबूत मिले थे, लेकिन सभी खाली पाए गए थे।
सोनारी के स्तूप, यहां मिले अवशेषों को लंदन ले जाया गया
सांची से लगभग 25 किमी. की दूरी पर स्थित सोनारी के बौद्ध स्तूप अचंम्भित कर देते हैं, ये 2 बड़े और 5 छोटे स्तूपों का एक समूह है। इसकी खोज 1850 में एक ब्रिटिश नागरिक ने की थी। यहां कुछ अवशेष पाए गए थे, जिन्हें दो बक्सों में लाया गया था। लेकिन इनकी भव्यता को देख इन्हें लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय में स्थापित किया गया था।
सारू मारू जहां अशोक कुछ समय के लिए ठहरे थे
सारू मारू बौद्ध गुफाओं और स्तूपों के साथ एक मठवासी परिसर है, जो राजधानी भोपाल से लगभग 80 किमी. की दूरी पर स्थित है। इसे भीमबैठिका रॉक शेल्टर के नाम से जाना जाता है, जो रॉक पेंटिंग और गुफाओं के लिए मशहूर है। यहां चट्टानों पर खूबसूरत नक्काशी को देखा जा सकता है। यहां की मुख्य गुफा में सम्राट अशोक के शिलालेख हैं, जिनमें उनके दौरे का विवरण दिया गया है, इससे पता चलता है, वे अपनी पत्नी के साथ इस स्थान पर कुछ समय के लिए रुके थे।
देवरकोठार व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र
रीवा जिले में स्थित देवरकोठार बौद्ध स्थापत्य एवं कला की एक सुंदर कृति समझा जाता है। यहां 4 से अधिक अवशेष मिले थे, जिन्हें साइट पर देखा जा सकता है। सबसे अहम खोज एक उत्कीर्ण स्तंभ था, जिसमें आचार्य धर्मदेव और उनके तीन छात्रों उत्तरमित्र, भद्र और उपस्क के नाम का उल्लेख किया गया था, जिनके बारे में ऐसी धारणा है कि वे यहां रुके थे, जबकि आसपास का क्षेत्र रॉक पेंटिंग्स के जरिए पुराने समय की कई कहानियां बयां करता है। टेराकोटा खिलौने, कान के स्टड, मोतियों जैसी साइट से जो चीजें मिलीं, उससे पता चलता है कि प्राचीनकाल में देवरकोठार व्यापार का सक्रिय केंद्र रहा होगा।