कहते है की इतिहास खुद को दोहराता रहता है। वह किसी न किसी रुप में खुद को दोहराता है। युद्र से लेकर सामाजिक बदलाव में इतिहास नें हमेशा ही खुद को अलग-अलग समय पर दोहराया है। बात अगर राजनीती में इतिहास की करवट की करें तो आजकल राजनीतिक इतिहास खुद को मध्यप्रदेश की सियासत में दोहरा रहा है। आपको बता दे की मध्यप्रदेश में कांगेस नें जीत दर्ज की है। वहीं पिछले 15 सालों से मध्यप्रदेश की सियासत पर काबिज भारतीय जनता पार्टी की विदाई हुई। कांग्रेस की तरफ़ से कमलनाथ मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। पहले ये कयास लगाए जा रहे थे की ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बनेंगे।
अब हम उस इतिहास की बात करेंगे, जिसनें आज खुद को दोहराया है।
साल 1993 में कुछ इसी तरह से कांग्रेस नें मध्यप्रदेश में बीजेपी को हराकर सत्ता अपने नाम की थी। जब उस वक्त माधव राव सिंधिया के मुख्यमंत्री बनने की संभावना थी। लेकिन वे बन नहीं पाए उनकी जगह दिग्विजय सिंह को मध्यप्रेदश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। हाल ही में भी मध्यप्रदेश में कुछ ऐसा ही हुआ कांग्रेस की जीत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुख्यमंत्री बनने की संभावना थी लेकिन उनकी जगह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया है। दोनों ही परिस्थिति में सिंधिंया परिवार को मुख्यमंत्री की गद्दी से निराशा ही हाथ लगी।
दिग्विजय सिंह उस समय प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष थे. 1993 नवंबर में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस को अप्रत्याशित रूप से जीत हासिल हुई. इस जीत के बाद मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में श्यामा चरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया और सुभाष यादव जैसे नेता शामिल हो गए. मजेदार बात यह है कि दिग्विजय सिंह उस समय सांसद थे और विधानसभा चुनाव नहीं लड़े थे.
कहा तो यह भी जाता है कि माधवराव को रोकने के लिए अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह ने स्वांग रचा था. हालांकि इसका कोई प्रमाण नहीं है. राजनीतिक विश्लेषक गौरी शंकर राजहंस बताते हैं कि दिग्विजय को श्यामा चरण शुक्ल राजनीति में लेकर आए और अर्जुन सिंह ने उन्हें पहली बार मंत्री बनाया और दोनों के साथ डिब्बा खुला तो दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बन गए.
भारी कशमकश के बीच विधायक दल की बैठक शुरू हुई जिसमें मुख्यमंत्री का चुनाव होना था. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक एनके सिंह की मानें तो अर्जुन सिंह ने पिछड़ा वर्ग से मुख्यमंत्री बनने की वकालत करते हुए सुभाष यादव का नाम आगे बढ़ा दिया. बैठक में सुभाष के नाम पर सहमति न बनते देख अर्जुन सिंह ने अपनी हार मान ली और भाषण खत्म कर बाहर चले गए.
इस दौरान माधव राव सिंधिया दिल्ली में हेलीकॉप्टर के साथ फोन आने का इंतजार कर रहे थे. उनसे कहा गया था कि जैसे ही खबर दी जाए तत्काल भोपाल आ जाइएगा. श्यामाचरण और सुभाष यादव के मुख्यमंत्री न बनने पर अर्जुन सिंह अपने विधायकों का समर्थन माधवराव को दे देंगे. बैठक में जोर आजमाइश जारी थी. केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर वहां प्रणब मुखर्जी, सुशील कुमार शिंदे और जनार्दन पुजारी मौजूद थे.
विवाद बढ़ा तो प्रणब मुखर्जी ने गुप्त मतदान कराया जिसमें 174 में से 56 विधायकों ने श्यामाचरण के पक्ष में राय जताई. जबकि 100 से ज्यादा विधायकों ने दिग्विजय के पक्ष में मतदान किया था. नतीजा आने के बाद कमलनाथ दौड़ते हुए उस कक्ष की तरफ भागे, जहां पूरे भवन का एक मात्र टेलीफोन चालू था. कमलनाथ ने वहां से दिल्ली किसी को फोन किया. दिल्ली से तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने फोन पर प्रणब मुखर्जी से कहा कि विधायकों ने जिसके पक्ष में सबसे ज्यादा मतदान किया है, उसे मुख्यमंत्री बना दिया जाए. इस पूरे नाटकीय घटनाक्रम के बाद दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बन गए और माधवराव फोन का इंतजार ही करते रहे.