Chintan Shivir: 6 ग्रुप, 70-70 की टीमें, 3 दिन.. कांग्रेस की चिंतन शिविर में होता है क्या है जानिए अंदर की कहानी

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Chintan Shivir: 6 ग्रुप, 70-70 की टीमें, 3 दिन.. कांग्रेस की चिंतन शिविर में होता है क्या है जानिए अंदर की कहानी

Chintan Shivir: 6 ग्रुप, 70-70 की टीमें, 3 दिन.. कांग्रेस की चिंतन शिविर में होता है क्या है जानिए अंदर की कहानी

उदयपुर: झीलों के शहर उदयपुर में कांग्रेस का चिंतन शिविर शुरू हो चुका है। इस शिविर के लिए कांग्रेस के 430 नेता पहुंचे हैं। कांग्रेस पार्टी इस बैठक की तैयारी काफी समय पहले से कर रही है। 15 मई तक चलने वाली इस बैठक में अलग-अलग कमेटियां लगातार मंथन करेगी और फिर शिविर के अंतिम दिन सभी कमिटी कांग्रेस अध्यक्ष को प्रस्ताव सौंपेंगे। आइए समझते हैं कि कांग्रेस चिंतन शिविर की बैठक में कब क्या होगा…

कुछ ऐसा होगा कार्यक्रम

कार्यक्रम की शुरुआत 13 मई को दो बजे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी करेंगी। उसके बाद चिंतिन शिविर के लिए विभिन्न मुद्दों पर बनी छह कमिटियों की बैठक होगी। ये बैठक अलग-अलग बंद कमरों में होगी। इन 6 कमिटियों में राजनीतिक प्रस्ताव, आर्थिक प्रस्ताव, किसानों के मुद्दे, सामाजिक न्याय, संगठन की मजबूती, युवा सशक्तिकरण जैसी थीमों पर चर्चा होगी।

14 मई को चलेगा मंथन का बड़ा दौर

चिंतन शिविर में 14 मई को पूरे दिन छहों कमिटियों का अपना-अपना मंथन चलेगा। बैठकों के आधार पर सभी कमिटियां अपनी रिपोर्ट तैयार करेंगी। आखिरी दिन सुबह 6 कमिटियों के संयोजक अपने-अपने प्रस्तावों पर आधारित रिपोर्ट कांग्रेस अध्यक्ष को सौपेंगे। उसके बाद इन प्रस्ताव पर कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक में मुहर लगेगी। CWC के बाद समापन सत्र में इन प्रस्तावों को अपनाने का ऐलान होगा।

15 मई को राहुल का भाषण
चिंतन शिविर के अंतिम दिन दोपहर में राहुल गांधी का संबोधन होगा, राहुल के बाद सोनिया गांधी का समापन भाषण होगा। सोनिया चिंतन शिविर में लिए गए प्रस्तावों पर आधारित नव संकल्पों का संदेश देंगी।

एक परिवार एक टिकट पर लगेगी मुहर?

सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस के इन प्रस्तावों में कुछ अहम फैसले हो सकते हैं, जिसमें एक परिवार, एक टिकट, कांग्रेस संगठन के भीतर महिलाओं, एससी, एसटी
और अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की सीमा 20 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी से तक करने, आगामी चुनावों में विपक्षी दलों के साथ तालमेल को लेकर अहम फैसले निकल सकते हैं।

चौथा चिंतन शिविर, क्या बदल पाएगा कुछ?
देश की इस सबसे पुरानी पार्टी का यह चौथा चिंतन शिविर है। पंचमढ़ी में 1998 में पहला चिंतन शिविर आयोजित किया गया था, शिमला में 2003, जयपुर में 2013 और अब उदयपुर में इस तरह की बैठक आयोजित हो रही है। तीसरी बैठक के बाद कांग्रेस लगातार पिछड़ती गई। 2003 में शिमला चिंतन शिविर के बाद कांग्रेस को केंद्र में सत्ता मिली थी। वापसी की राह खोज रही कांग्रेस के लिए यह संजीवनी की तरह थी। इसके बाद 2014 तक कांग्रेस केंद्र की सत्ता में काबिज रही। पर 2014 के आम चुनाव में उसे केंद्र की सत्ता से हाथ धोना पड़ा। इसे राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा।

50 खास नेताओं को बुलावा

कांग्रेस चिंतन शिविर के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 50 ऐसे नेताओं क आमंत्रण दिया है जो किसी भी पद पर नहीं हैं। लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर कांग्रेस के पास इस वक्त 100 सांसद भी नहीं है। यानी कांग्रेस अध्यक्ष अब हर वो रणनीति आजमाना चाहती हैं जो पार्टी को बेहतर कर सके।

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सफर

1952 364 सीटें
1957 371 सीटें
1962 361 सीटें
1967 281 सीटें, इंदिरा गांधी का युग शुरू
1971 352 सीटें
1977 153 सीटें
1980 351 सीटें
1984 415 सीटें
1989 97 सीटें
1991 244 सीटें, नरसिंह राव ने अल्पमत की सरकार चलाई
1996 140 सीटें
1998 140 सीटें
1999 114 सीटें
2004 145 सीटें, कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए-1 की शुरुआत
2009 206 सीटें के साथ कांग्रेस की दोबारा वापसी
2014 44 सीटों पर सिमटी कांग्रेस, सबसे कम लोकसभा सीट
2019 52 सीटें

जी-23 नेता भी हो रहे हैं शामिल
कांग्रेस के चौथे चिंतन शिविर में बागी जी-23 नेताओं को भी निमंत्रण भेजा गया है। हालांकि, इस बैठक में कपिल सिब्बल हिस्सा नहीं ले रहे हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस के 23 बागी नेताओं ने पार्टी में बदलाव की मांग करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी के बाद पार्टी में काफी बवाल हुआ था।

राज्यों की चुनौती के लिए बनेगी रणनीति
2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। दोनों ही जगह बीजेपी की सरकार है। इसके अलावा 2023 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सरकार बचाने का दबाव होगा।

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