Cineमाँ | Mother’s Day 2022: Hindi Cine-ma | Patrika News h3>
मां तुझे सलाम…
मदर्स डे (Mother’s Day) के मौके पर याद करते हैं हिंदी सिनेमा की उन फिल्मों, किरदारों और कलाकारों को, जिन्होंने परदे पर ‘मां’ को अमर कर दिया। फिल्मों के शुरुआती दौर से अब तक ‘मां’ के किरदार का सफर काफी खास रहा है। कभी मां को समर्पित, कभी सकारात्मक, कभी संघर्षशील, तो कभी दोस्ताना रूप में सिल्वर स्क्रीन पर प्रजेंट किया गया है। किरदार का अंदाज चाहे जो भी रहा हो, इन ऑनस्क्रीन मांओं ने हमेशा अपनी अलग छाप छोड़ी है। कई बार तो फिल्मों में ‘मां’ के किरदार ने ही सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। फिल्म मेकर्स ने मां के अर्थ को काफी बेहतर तरीके से परदे पर उतारने की कोशिश की है।
महबूब खान के निर्देशन में बनी फिल्म ‘मदर इंडिया’ में नरगिस (Nargis) ने एक लाचार मां की भूमिका निभाई थी, जो अपने बच्चों के लिए दुनिया से लड़ती है। इस फिल्म में मां का किरदार बड़ा ही दुख भरा था, जिसे देख हर किसी की आंखों में आंसू आ गए थे। अंत में वह अपने ही बेटे को गोली मार देती है क्योंकि वह नैतिक रूप से गलत था। यह हिंदी सिनेमा के झकझोर देने वाले पलों में से एक है। नरगिस ने बेहद संजीदगी और सशक्त अंदाज में यह किरदार परदे पर जीया, जिससे यह ‘अमर’ हो गया। इस किरदार के सभी तरह के शेड्स को नरगिस ने बेहतरीन ढंग से निभाया। यही वजह है कि यह किरदार आज भी मिसाल के तौर पर पेश किया जाता है। इस फिल्म के लिए उनको फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड भी मिला।
हिंदी सिनेमा का इतिहास, जिसने मां के किरदारों को जो जगह दी है, वह निरूपा रॉय (Nirupa Roy) के बिना अधूरा है। 70 और 80 के दशक में लगभग हर ऑल्टर्नेट मूवी में निरूपा रॉय को मां के रूप में देखा गया। वह उस बलिदानी मां का चेहरा बनीं, जिसने जुल्म सहा है और जीवन में उसका एकमात्र मकसद अपने बच्चों की खुशी है। उन्हें अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) की स्क्रीन-मॉम के रूप में भी याद किया जाता है। ‘दीवार’ (Deewaar) के अलावा ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘सुहाग’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘खून पसीना’, ‘इंकलाब’, ‘गिरफ्तार’, ‘मर्द’, ‘गंगा जमुना सरस्वती’ जैसी बहुत-सी फिल्मों में उन्होंने ‘मां’ की भूमिका को शिद्दत से पेश किया। उनका इमोशन और दर्द रुपहले परदे पर इतना असली लगता था कि दर्शक भी उन्हें देख अपने आंसू नहीं रोक पाते थे।
दीना पाठक (Dina Pathak) को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की लवेबल मां कहा जा सकता है। 70 और 80 के अधिकतर हल्के-फुल्के कॉमेडी फैमिली ड्रामा में हमने उन्हें डार्लिंग मॉम की भूमिका निभाते हुए देखा। उन्होंने बहुत-सी फिल्मों में मां के किरदार निभाए हैं। ‘कोशिश’, ‘आप की कसम’, ‘किताब’, ‘दो लड़के दोनों कड़के’, ‘खूबसूरत’, ‘थोड़ी सी बेवफाई’, ‘विजेता’, ‘वो सात दिन’, ‘रक्त बंधन’, ‘झूठी’, ‘फूल’, ‘ईना मीना डीका’, ‘सबसे बड़ा खिलाड़ी’, ‘मेरे सपनों की रानी’, ‘देवदास’ आदि फिल्मों में उन्होंने मदर या ग्रैंड मदर के किरदार प्ले किए हैं। वह सख्त लेकिन प्यारी मां रहीं।
राखी (Rakhee) ने बतौर लीड एक्ट्रेस इंडस्ट्री में अलग पहचान बनाई थी। वह अपने दौर के तकरीबन सभी प्रमुख अभिनेताओं के अपोजिट नजर आईं। जब उन्होंने मदर के रोल करने शुरू किए तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि उनका निभाया एक किरदार अविस्मरणीय बन जाएगा। यह फिल्म थी ‘करण अर्जुन’ (Karan Arjun)। इसमें वह सलमान खान और शाहरुख खान की मां बनी थीं। फिल्म में उनका संवाद ‘मेरे करण अर्जुन आएंगे’ आज भी लोगों की स्मृति में है। इसने उन्हें बदला लेने वाली और आशावादी मां के रूप में चित्रित किया। फिल्म ‘राम लखन’ में भी इस आशावादी मां को देखा, जिसे यकीन है कि उसके बच्चे दुश्मनों से बदला जरूर लेंगे। इसके अलावा उन्होंने ‘शक्ति’, ‘जीवन एक संघर्ष’, ‘खलनायक’, ‘अनाड़ी’, ‘बाजीगर’, ‘सोल्जर’, ‘एक रिश्ता’ जैसी फिल्मों में मां की भूमिका अदा की। ‘राम लखन’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी नवाजा गया। राखी एक ऐसी एक्ट्रेस हैं, जो बतौर हीरोइन जितनी सफल रहीं, उतना ही मां के रोल में भी लोगों ने उनको पसंद किया है।
नब्बे के दशक की क्लासिक और हिट फिल्मों को याद करें तो कई फिल्मों में रीमा लागू (Reema Lagoo) को मां के तौर पर पाएंगे। रीमा लागू अपने चेहरे से काफी शांतिप्रिय लगती थीं और अपनी इस खासियत को उन्होंने परदे पर मां के रूप में बेहद खूबसूरती के साथ प्रजेंट किया। फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ और ‘हम आपके हैं कौन’ में उन्होंने जिस तरह सपोर्टिंग मां का किरदार निभाया, वह आज भी सिने लवर्स के दिल में रचा-बसा है। उनके चेहरे की शालीनता और किरदार की समझ ने उन्हें एक अलग कैटेगरी की मां के रूप में पहचान दिलाई। दूसरी ओर, फिल्म ‘वास्तव’ में संजय दत्त की मां के तौर पर वह खासी सशक्त दिखाई दीं। ‘जुड़वां’, ‘झूठ बोले कौवा काटे’, ‘कुछ कुछ होता है’, ‘हम साथ साथ हैं’, ‘जिस देश में गंगा रहता है’, ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को सराहा गया। उनका विनम्र स्वभाव, मधुर मुस्कान और खामोशी से आंसू बहाना, 90 के दशक के युग को गौरवान्वित करने के लिए हमेशा खास रहेगा।
अपने कॅरियर के शुरुआती दौर में लीड एक्ट्रेस के तौर पर नजर आईं कामिनी कौशल (Kamini Kaushal) ने बाद की कई फिल्मों में मां के किरदार अदा किए। प्यार भरे लहजे में बोलने के कारण वह इंडस्ट्री की स्वीट ऑनस्क्रीन मदर्स में शुमार रहीं। अपने कॅरियर में उन्होंने बहुत-सी फिल्मों में मनोज कुमार की मां की भूमिका निभाई। फिल्म ‘शहीद’ में ‘भगत सिंह’ की मां के रोल में नजर आईं। इसके बाद ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘शोर’, ‘संन्यासी’ सरीखी फिल्मों में मां के तौर दिखाई दीं।
हिंदी सिनेमा में फरीदा जलाल (Farida Jalal) की अपने क्यूट फेस के कारण एक अलग ही पहचान रही है। यही कारण है कि जब उन्होंने स्क्रीन पर मां की भूमिका निभाना शुरू किया तो वह क्यूटेस्ट मां के तौर पर उभर कर सामने आईं। रोने-धोने, परेशान रहने वाली मां से इतर उन्होंने हंसमुख, बबली, स्वीट और समझदार ‘मां’ को भी सिनेमाई कैनवास पर उकेरा। ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘दिल तो पागल है’, ‘कुछ कुछ होता है’ जैसी फिल्मों के जरिए उन्होंने टिपिकल मां की इमेज को तोड़ा। ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में ‘सिमरन’ की मां के किरदार के लिए उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस अवॉर्ड भी मिला। इसके अलावा ‘लाडला’, ‘जुदाई’, ‘सलाखें’, ‘जवानी जानेमन’ जैसी फिल्मों में भी वह मां के रूप में नजर आईं। फिल्मों के अलावा टीवी की दुनिया में भी वह क्यूट मदर और दादी मां के किरदार में नजर आई हैं। फरीदा ने जब-जब मां का रोल किया, वे अधिकतर फिल्मों में ‘कूल मॉम’ के रूप में नजर आईं। उनके लहजे और व्यक्तित्व में ही एक ऐसी मधुरता है कि जब भी वे स्क्रीन पर नजर आती हैं, पॉजिटिव फीलिंग आती है।
फिल्मों के शुरुआती दौर में दुर्गा खोटे (Durga Khote) ने अपनी एक्टिंग से सभी का दिल जीता था। हिंदी, मराठी सिनेमा के अलावा उन्होंने थिएटर में भी काफी योगदान दिया। उन्होंने अपने कॅरियर में बाद के वर्षों में मां के किरदार भी किए। फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में सलीम की मां के किरदार को काफी खूबसूरती से उकेरा। फिल्म ‘बावर्ची’ में ‘बड़ी मां’ का किरदार आज भी लोगों को याद है। ‘कर्ज’ में निभाई मां की भूमिका भी उल्लेखनीय है।
जब किरण खेर (Kirron Kher) ने मां की भूमिका निभाना शुरू किया तो इसे भी काफी ग्रेसफुल तरीके से परदे पर पेश किया। ‘देवदास’ की पारंपरिक बंगाली मां, ‘दोस्ताना’, ‘खूबसूरत’ व ‘टोटल सियापा’ की हाई-ऑक्टेन पंजाबी मां और ‘ओम शांति ओम’ की जूनियर आर्टिस्ट की मां, हर किरदार में वह ध्यान खींचने में सफल रहीं। इसके अलावा उन्होंने ‘हम तुम’, ‘वीर जारा’, ‘रंग दे बसंती’, ‘कभी अलविदा ना कहना’ सरीखी फिल्मों में मां के किरदार को अलग रूप में प्रस्तुत किया।
अरुणा ईरानी (Aruna Irani) ने शुरुआती दौर में डिफरेंट रोल करने के बाद कई फिल्मों में मां की भूमिका निभाई। फिल्म ‘बेटा’ में अनिल कपूर की स्टेप मॉम के रूप में उन्होंने उम्दा अभिनय किया। उन्होंने बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीता। ‘दूध का कर्ज’, ‘राजा बाबू’, ‘सुहाग’ जैसी फिल्मों में उनके द्वारा निभाए मां के किरदार भी आई कैचिंग रहे।
फिल्मों में मां के किरदार में स्मिता जयकर (Smita Jaykar) काफी जंचती हैं। फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ में बेटी और पति के बीच झूलती मां के कैरेक्टर को उन्होंने काफी खूबसूरती से निभाया। नए जमाने के बच्चों को समझने वाली मां की भूमिका में उन्हें ऑडियंस ने खासा पसंद किया। उन्होंने ‘हम आपके दिल में रहते हैं’, ‘सरफरोश’, ‘देवदास’, ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’, ‘तेरे नाल लव हो गया’ व ‘अकीरा’ में भी ‘मां’ को जीया और अपनी प्रतिभा साबित की।
जया बच्चन (Jaya Bachchan) ने ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘कल हो ना हो’, ‘फिजा’, ‘लागा चुनरी में दाग’ जैसी फिल्मों में मां के रूप में उल्लेखनीय कार्य किया।
रत्ना पाठक शाह (Ratna Pathak Shah) वर्ष 2000 के बाद की पसंदीदा ऑनस्क्रीन माताओं में से एक हैं। ‘जाने तू या जाने ना’, ‘खूबसूरत’, ‘गोलमाल 3’, ‘एक मैं और एक तू’, ‘कपूर एंड संस’, ‘मुबारकां’ और ‘थप्पड़’ में मॉम के अवतार में नजर आई हैं।
सुप्रिया पाठक (Supriya Pathak) एक ऐसी एक्ट्रेस हैं, जो अपने किरदार के अनुसार खुद को ढाल लेती हैं। उन्होंने कई फिल्मों में मां के अलग-अलग अंदाज को पेश किया है। ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला’ में उन्होंने मजबूत मां के किरदार को जोरदार ढंग से निभाया। इसके लिए उन्होंने फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीता। ‘ऑल इज वेल’, ‘किस किस को प्यार करूं’, ‘जय मम्मी दी’, ‘द बिग बुल’, ‘मिमी’ और ‘रश्मि रॉकेट’ में भी वह अलग अंदाज में नजर आईं।
नए जमाने की अदाकारा शेफाली शाह (Shefali Shah) कुछ अलग सोच रखती हैं। 2005 में फिल्म ‘वक्त: द रेस अगेंस्ट टाइम’ में शेफाली ने अक्षय कुमार की मां की भूमिका निभाई, जो उनसे करीब पांच साल बड़े हैं। किरदार को अहमियत देने वाली शेफाली ने फिल्म ‘दिल धड़कने दो’ (2015) में प्रियंका चोपड़ा और रणवीर सिंह की मां की भूमिका अदा की। फिल्म में वह नए जमाने की मां के रूप में नजर आईं, जो स्मार्ट, ब्यूटीफुल और स्टाइलिश है। शेफाली ने मॉडर्न मां के किरदार को लेकर इंडस्ट्री में नई इमेज कायम की है।
सीमा पाहवा (Seema Pahwa) ‘दम लगा के हईशा’ में ‘संध्या’ की मां, ‘बरेली की बर्फी’ में ‘बिट्टी’ की मां और ‘शुभ मंगल सावधान’ में ‘सुगंधा’ की मां थीं। उन्होंने इन भूमिकाओं को एक नए जमाने की मां के रूप में परिभाषित किया।
श्रीदेवी (Sridevi) ने ‘मां’ की भूमिका को नया रंग दिया। उन्होंने ‘मॉम’ में मां का अविस्मरणीय पात्र अदा किया। इसमें एक मां का अपने बच्चे के लिए इमोशन और फिर उसकी बेटी का रेप करने वालों के लिए गुस्सा दिखा।
फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में तन्वी आजमी (Tanvi Azmi) ने भी सबका ध्यान आकर्षित किया। बाजीराव की मां के रूप में उन्होंने अपने अभिनय से फिल्म को और दमदार बना दिया। कैरेक्टर में घुसने के लिए उन्होंने अपना सिर तक मुंडवा लिया। ‘त्रिभंग’ में भी प्रभावशाली भूमिका रही।
लीला चिटनिस (आवारा, गंगा जमुना, गाइड), सुलोचना (सरस्वतीचंद्र, फरार, रोटी कपड़ा और मकान), अचला सचदेव (शागिर्द, मेरा नाम जोकर, अंदाज, अनामिका), सुषमा सेठ (प्रेम रोग, दीवाना, शिकारी), लीला मिश्रा (राम और श्याम, महबूबा, खुशबू), ललिता पवार (दाग, जंगली, हम दोनों), शशिकला (क्रांति, ज्योति, झंकार बीट्स), नूतन (नाम, मेरी जंग), वहीदा रहमान (ओम जय जगदीश, रंग दे बसंती), रेखा (दिल है तुम्हारा, कोई मिल गया, कृष), डिंपल कपाड़िया (दबंग, पटियाला हाउस, कॉकटेल), मौसमी चटर्जी (करीब, आ अब लौट चलें, जिंदगी रॉक्स), शर्मिला टैगोर (धड़कन, ब्रेक के बाद), शबाना आजमी (तहजीब, सॉरी भाई!, जज्बा, नीरजा), जया प्रदा (मां), हेमा मालिनी (हिमालय पुत्र, बागबां, बाबुल, बुड्ढ़ा… होगा तेरा बाप, शिमला मिर्च), अमृता सिंह (2 स्टेट्स, फ्लाइंग जट, हीरोपंती 2), टिस्का चोपड़ा (तारे जमीं पर), पूनम ढिल्लों (रमैया वस्तावैया, जय मम्मी दी), स्वरा भास्कर (निल बटे सन्नाटा), पद्मिनी कोल्हापुरे (बोलो राम, फटा पोस्टर निकला हीरो), तब्बू (हैदर, जवानी जानेमन), डॉली अहलूवालिया (विकी डोनर, बेल बॉटम), मेहर विज (बजरंगी भाईजान, सीक्रेट सुपरस्टार), कृति सनोन (मिमी), काजोल (हेलिकॉप्टर ईला, त्रिभंग), नीना गुप्ता (बधाई हो, वीरे दी वेडिंग, पंगा, शुभ मंगल ज्यादा सावधान), शीबा चड्ढा (रईस, बधाई हो, जीरो, जबरिया जोड़ी, पगलैट, बधाई दो) आदि कई नाम हैं, जो ‘बॉलीवुड मॉम’ के छोटे-बड़े रोल अदा कर चुकी हैं। बहरहाल, मां सिर्फ एक शब्द नहीं, एहसास है। वो एहसास… जिसकी आवाज और जिक्र ही हमें खुद को सबसे मजबूत इंसान होने की अनुभूति कराता है। जिसके पास मां है, उसके पास सबकुछ है।
मां तुझे सलाम…
मदर्स डे (Mother’s Day) के मौके पर याद करते हैं हिंदी सिनेमा की उन फिल्मों, किरदारों और कलाकारों को, जिन्होंने परदे पर ‘मां’ को अमर कर दिया। फिल्मों के शुरुआती दौर से अब तक ‘मां’ के किरदार का सफर काफी खास रहा है। कभी मां को समर्पित, कभी सकारात्मक, कभी संघर्षशील, तो कभी दोस्ताना रूप में सिल्वर स्क्रीन पर प्रजेंट किया गया है। किरदार का अंदाज चाहे जो भी रहा हो, इन ऑनस्क्रीन मांओं ने हमेशा अपनी अलग छाप छोड़ी है। कई बार तो फिल्मों में ‘मां’ के किरदार ने ही सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। फिल्म मेकर्स ने मां के अर्थ को काफी बेहतर तरीके से परदे पर उतारने की कोशिश की है।
महबूब खान के निर्देशन में बनी फिल्म ‘मदर इंडिया’ में नरगिस (Nargis) ने एक लाचार मां की भूमिका निभाई थी, जो अपने बच्चों के लिए दुनिया से लड़ती है। इस फिल्म में मां का किरदार बड़ा ही दुख भरा था, जिसे देख हर किसी की आंखों में आंसू आ गए थे। अंत में वह अपने ही बेटे को गोली मार देती है क्योंकि वह नैतिक रूप से गलत था। यह हिंदी सिनेमा के झकझोर देने वाले पलों में से एक है। नरगिस ने बेहद संजीदगी और सशक्त अंदाज में यह किरदार परदे पर जीया, जिससे यह ‘अमर’ हो गया। इस किरदार के सभी तरह के शेड्स को नरगिस ने बेहतरीन ढंग से निभाया। यही वजह है कि यह किरदार आज भी मिसाल के तौर पर पेश किया जाता है। इस फिल्म के लिए उनको फिल्मफेयर का बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड भी मिला।
हिंदी सिनेमा का इतिहास, जिसने मां के किरदारों को जो जगह दी है, वह निरूपा रॉय (Nirupa Roy) के बिना अधूरा है। 70 और 80 के दशक में लगभग हर ऑल्टर्नेट मूवी में निरूपा रॉय को मां के रूप में देखा गया। वह उस बलिदानी मां का चेहरा बनीं, जिसने जुल्म सहा है और जीवन में उसका एकमात्र मकसद अपने बच्चों की खुशी है। उन्हें अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) की स्क्रीन-मॉम के रूप में भी याद किया जाता है। ‘दीवार’ (Deewaar) के अलावा ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘सुहाग’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘खून पसीना’, ‘इंकलाब’, ‘गिरफ्तार’, ‘मर्द’, ‘गंगा जमुना सरस्वती’ जैसी बहुत-सी फिल्मों में उन्होंने ‘मां’ की भूमिका को शिद्दत से पेश किया। उनका इमोशन और दर्द रुपहले परदे पर इतना असली लगता था कि दर्शक भी उन्हें देख अपने आंसू नहीं रोक पाते थे।
दीना पाठक (Dina Pathak) को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की लवेबल मां कहा जा सकता है। 70 और 80 के अधिकतर हल्के-फुल्के कॉमेडी फैमिली ड्रामा में हमने उन्हें डार्लिंग मॉम की भूमिका निभाते हुए देखा। उन्होंने बहुत-सी फिल्मों में मां के किरदार निभाए हैं। ‘कोशिश’, ‘आप की कसम’, ‘किताब’, ‘दो लड़के दोनों कड़के’, ‘खूबसूरत’, ‘थोड़ी सी बेवफाई’, ‘विजेता’, ‘वो सात दिन’, ‘रक्त बंधन’, ‘झूठी’, ‘फूल’, ‘ईना मीना डीका’, ‘सबसे बड़ा खिलाड़ी’, ‘मेरे सपनों की रानी’, ‘देवदास’ आदि फिल्मों में उन्होंने मदर या ग्रैंड मदर के किरदार प्ले किए हैं। वह सख्त लेकिन प्यारी मां रहीं।
राखी (Rakhee) ने बतौर लीड एक्ट्रेस इंडस्ट्री में अलग पहचान बनाई थी। वह अपने दौर के तकरीबन सभी प्रमुख अभिनेताओं के अपोजिट नजर आईं। जब उन्होंने मदर के रोल करने शुरू किए तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि उनका निभाया एक किरदार अविस्मरणीय बन जाएगा। यह फिल्म थी ‘करण अर्जुन’ (Karan Arjun)। इसमें वह सलमान खान और शाहरुख खान की मां बनी थीं। फिल्म में उनका संवाद ‘मेरे करण अर्जुन आएंगे’ आज भी लोगों की स्मृति में है। इसने उन्हें बदला लेने वाली और आशावादी मां के रूप में चित्रित किया। फिल्म ‘राम लखन’ में भी इस आशावादी मां को देखा, जिसे यकीन है कि उसके बच्चे दुश्मनों से बदला जरूर लेंगे। इसके अलावा उन्होंने ‘शक्ति’, ‘जीवन एक संघर्ष’, ‘खलनायक’, ‘अनाड़ी’, ‘बाजीगर’, ‘सोल्जर’, ‘एक रिश्ता’ जैसी फिल्मों में मां की भूमिका अदा की। ‘राम लखन’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी नवाजा गया। राखी एक ऐसी एक्ट्रेस हैं, जो बतौर हीरोइन जितनी सफल रहीं, उतना ही मां के रोल में भी लोगों ने उनको पसंद किया है।
नब्बे के दशक की क्लासिक और हिट फिल्मों को याद करें तो कई फिल्मों में रीमा लागू (Reema Lagoo) को मां के तौर पर पाएंगे। रीमा लागू अपने चेहरे से काफी शांतिप्रिय लगती थीं और अपनी इस खासियत को उन्होंने परदे पर मां के रूप में बेहद खूबसूरती के साथ प्रजेंट किया। फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ और ‘हम आपके हैं कौन’ में उन्होंने जिस तरह सपोर्टिंग मां का किरदार निभाया, वह आज भी सिने लवर्स के दिल में रचा-बसा है। उनके चेहरे की शालीनता और किरदार की समझ ने उन्हें एक अलग कैटेगरी की मां के रूप में पहचान दिलाई। दूसरी ओर, फिल्म ‘वास्तव’ में संजय दत्त की मां के तौर पर वह खासी सशक्त दिखाई दीं। ‘जुड़वां’, ‘झूठ बोले कौवा काटे’, ‘कुछ कुछ होता है’, ‘हम साथ साथ हैं’, ‘जिस देश में गंगा रहता है’, ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ जैसी फिल्मों में उनके अभिनय को सराहा गया। उनका विनम्र स्वभाव, मधुर मुस्कान और खामोशी से आंसू बहाना, 90 के दशक के युग को गौरवान्वित करने के लिए हमेशा खास रहेगा।
अपने कॅरियर के शुरुआती दौर में लीड एक्ट्रेस के तौर पर नजर आईं कामिनी कौशल (Kamini Kaushal) ने बाद की कई फिल्मों में मां के किरदार अदा किए। प्यार भरे लहजे में बोलने के कारण वह इंडस्ट्री की स्वीट ऑनस्क्रीन मदर्स में शुमार रहीं। अपने कॅरियर में उन्होंने बहुत-सी फिल्मों में मनोज कुमार की मां की भूमिका निभाई। फिल्म ‘शहीद’ में ‘भगत सिंह’ की मां के रोल में नजर आईं। इसके बाद ‘पूरब और पश्चिम’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘शोर’, ‘संन्यासी’ सरीखी फिल्मों में मां के तौर दिखाई दीं।
हिंदी सिनेमा में फरीदा जलाल (Farida Jalal) की अपने क्यूट फेस के कारण एक अलग ही पहचान रही है। यही कारण है कि जब उन्होंने स्क्रीन पर मां की भूमिका निभाना शुरू किया तो वह क्यूटेस्ट मां के तौर पर उभर कर सामने आईं। रोने-धोने, परेशान रहने वाली मां से इतर उन्होंने हंसमुख, बबली, स्वीट और समझदार ‘मां’ को भी सिनेमाई कैनवास पर उकेरा। ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘दिल तो पागल है’, ‘कुछ कुछ होता है’ जैसी फिल्मों के जरिए उन्होंने टिपिकल मां की इमेज को तोड़ा। ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में ‘सिमरन’ की मां के किरदार के लिए उन्हें फिल्मफेयर का बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस अवॉर्ड भी मिला। इसके अलावा ‘लाडला’, ‘जुदाई’, ‘सलाखें’, ‘जवानी जानेमन’ जैसी फिल्मों में भी वह मां के रूप में नजर आईं। फिल्मों के अलावा टीवी की दुनिया में भी वह क्यूट मदर और दादी मां के किरदार में नजर आई हैं। फरीदा ने जब-जब मां का रोल किया, वे अधिकतर फिल्मों में ‘कूल मॉम’ के रूप में नजर आईं। उनके लहजे और व्यक्तित्व में ही एक ऐसी मधुरता है कि जब भी वे स्क्रीन पर नजर आती हैं, पॉजिटिव फीलिंग आती है।
फिल्मों के शुरुआती दौर में दुर्गा खोटे (Durga Khote) ने अपनी एक्टिंग से सभी का दिल जीता था। हिंदी, मराठी सिनेमा के अलावा उन्होंने थिएटर में भी काफी योगदान दिया। उन्होंने अपने कॅरियर में बाद के वर्षों में मां के किरदार भी किए। फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में सलीम की मां के किरदार को काफी खूबसूरती से उकेरा। फिल्म ‘बावर्ची’ में ‘बड़ी मां’ का किरदार आज भी लोगों को याद है। ‘कर्ज’ में निभाई मां की भूमिका भी उल्लेखनीय है।
जब किरण खेर (Kirron Kher) ने मां की भूमिका निभाना शुरू किया तो इसे भी काफी ग्रेसफुल तरीके से परदे पर पेश किया। ‘देवदास’ की पारंपरिक बंगाली मां, ‘दोस्ताना’, ‘खूबसूरत’ व ‘टोटल सियापा’ की हाई-ऑक्टेन पंजाबी मां और ‘ओम शांति ओम’ की जूनियर आर्टिस्ट की मां, हर किरदार में वह ध्यान खींचने में सफल रहीं। इसके अलावा उन्होंने ‘हम तुम’, ‘वीर जारा’, ‘रंग दे बसंती’, ‘कभी अलविदा ना कहना’ सरीखी फिल्मों में मां के किरदार को अलग रूप में प्रस्तुत किया।
अरुणा ईरानी (Aruna Irani) ने शुरुआती दौर में डिफरेंट रोल करने के बाद कई फिल्मों में मां की भूमिका निभाई। फिल्म ‘बेटा’ में अनिल कपूर की स्टेप मॉम के रूप में उन्होंने उम्दा अभिनय किया। उन्होंने बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीता। ‘दूध का कर्ज’, ‘राजा बाबू’, ‘सुहाग’ जैसी फिल्मों में उनके द्वारा निभाए मां के किरदार भी आई कैचिंग रहे।
फिल्मों में मां के किरदार में स्मिता जयकर (Smita Jaykar) काफी जंचती हैं। फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ में बेटी और पति के बीच झूलती मां के कैरेक्टर को उन्होंने काफी खूबसूरती से निभाया। नए जमाने के बच्चों को समझने वाली मां की भूमिका में उन्हें ऑडियंस ने खासा पसंद किया। उन्होंने ‘हम आपके दिल में रहते हैं’, ‘सरफरोश’, ‘देवदास’, ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’, ‘तेरे नाल लव हो गया’ व ‘अकीरा’ में भी ‘मां’ को जीया और अपनी प्रतिभा साबित की।
जया बच्चन (Jaya Bachchan) ने ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘कल हो ना हो’, ‘फिजा’, ‘लागा चुनरी में दाग’ जैसी फिल्मों में मां के रूप में उल्लेखनीय कार्य किया।
रत्ना पाठक शाह (Ratna Pathak Shah) वर्ष 2000 के बाद की पसंदीदा ऑनस्क्रीन माताओं में से एक हैं। ‘जाने तू या जाने ना’, ‘खूबसूरत’, ‘गोलमाल 3’, ‘एक मैं और एक तू’, ‘कपूर एंड संस’, ‘मुबारकां’ और ‘थप्पड़’ में मॉम के अवतार में नजर आई हैं।
सुप्रिया पाठक (Supriya Pathak) एक ऐसी एक्ट्रेस हैं, जो अपने किरदार के अनुसार खुद को ढाल लेती हैं। उन्होंने कई फिल्मों में मां के अलग-अलग अंदाज को पेश किया है। ‘गोलियों की रासलीला राम-लीला’ में उन्होंने मजबूत मां के किरदार को जोरदार ढंग से निभाया। इसके लिए उन्होंने फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीता। ‘ऑल इज वेल’, ‘किस किस को प्यार करूं’, ‘जय मम्मी दी’, ‘द बिग बुल’, ‘मिमी’ और ‘रश्मि रॉकेट’ में भी वह अलग अंदाज में नजर आईं।
नए जमाने की अदाकारा शेफाली शाह (Shefali Shah) कुछ अलग सोच रखती हैं। 2005 में फिल्म ‘वक्त: द रेस अगेंस्ट टाइम’ में शेफाली ने अक्षय कुमार की मां की भूमिका निभाई, जो उनसे करीब पांच साल बड़े हैं। किरदार को अहमियत देने वाली शेफाली ने फिल्म ‘दिल धड़कने दो’ (2015) में प्रियंका चोपड़ा और रणवीर सिंह की मां की भूमिका अदा की। फिल्म में वह नए जमाने की मां के रूप में नजर आईं, जो स्मार्ट, ब्यूटीफुल और स्टाइलिश है। शेफाली ने मॉडर्न मां के किरदार को लेकर इंडस्ट्री में नई इमेज कायम की है।
सीमा पाहवा (Seema Pahwa) ‘दम लगा के हईशा’ में ‘संध्या’ की मां, ‘बरेली की बर्फी’ में ‘बिट्टी’ की मां और ‘शुभ मंगल सावधान’ में ‘सुगंधा’ की मां थीं। उन्होंने इन भूमिकाओं को एक नए जमाने की मां के रूप में परिभाषित किया।
श्रीदेवी (Sridevi) ने ‘मां’ की भूमिका को नया रंग दिया। उन्होंने ‘मॉम’ में मां का अविस्मरणीय पात्र अदा किया। इसमें एक मां का अपने बच्चे के लिए इमोशन और फिर उसकी बेटी का रेप करने वालों के लिए गुस्सा दिखा।
फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में तन्वी आजमी (Tanvi Azmi) ने भी सबका ध्यान आकर्षित किया। बाजीराव की मां के रूप में उन्होंने अपने अभिनय से फिल्म को और दमदार बना दिया। कैरेक्टर में घुसने के लिए उन्होंने अपना सिर तक मुंडवा लिया। ‘त्रिभंग’ में भी प्रभावशाली भूमिका रही।
लीला चिटनिस (आवारा, गंगा जमुना, गाइड), सुलोचना (सरस्वतीचंद्र, फरार, रोटी कपड़ा और मकान), अचला सचदेव (शागिर्द, मेरा नाम जोकर, अंदाज, अनामिका), सुषमा सेठ (प्रेम रोग, दीवाना, शिकारी), लीला मिश्रा (राम और श्याम, महबूबा, खुशबू), ललिता पवार (दाग, जंगली, हम दोनों), शशिकला (क्रांति, ज्योति, झंकार बीट्स), नूतन (नाम, मेरी जंग), वहीदा रहमान (ओम जय जगदीश, रंग दे बसंती), रेखा (दिल है तुम्हारा, कोई मिल गया, कृष), डिंपल कपाड़िया (दबंग, पटियाला हाउस, कॉकटेल), मौसमी चटर्जी (करीब, आ अब लौट चलें, जिंदगी रॉक्स), शर्मिला टैगोर (धड़कन, ब्रेक के बाद), शबाना आजमी (तहजीब, सॉरी भाई!, जज्बा, नीरजा), जया प्रदा (मां), हेमा मालिनी (हिमालय पुत्र, बागबां, बाबुल, बुड्ढ़ा… होगा तेरा बाप, शिमला मिर्च), अमृता सिंह (2 स्टेट्स, फ्लाइंग जट, हीरोपंती 2), टिस्का चोपड़ा (तारे जमीं पर), पूनम ढिल्लों (रमैया वस्तावैया, जय मम्मी दी), स्वरा भास्कर (निल बटे सन्नाटा), पद्मिनी कोल्हापुरे (बोलो राम, फटा पोस्टर निकला हीरो), तब्बू (हैदर, जवानी जानेमन), डॉली अहलूवालिया (विकी डोनर, बेल बॉटम), मेहर विज (बजरंगी भाईजान, सीक्रेट सुपरस्टार), कृति सनोन (मिमी), काजोल (हेलिकॉप्टर ईला, त्रिभंग), नीना गुप्ता (बधाई हो, वीरे दी वेडिंग, पंगा, शुभ मंगल ज्यादा सावधान), शीबा चड्ढा (रईस, बधाई हो, जीरो, जबरिया जोड़ी, पगलैट, बधाई दो) आदि कई नाम हैं, जो ‘बॉलीवुड मॉम’ के छोटे-बड़े रोल अदा कर चुकी हैं। बहरहाल, मां सिर्फ एक शब्द नहीं, एहसास है। वो एहसास… जिसकी आवाज और जिक्र ही हमें खुद को सबसे मजबूत इंसान होने की अनुभूति कराता है। जिसके पास मां है, उसके पास सबकुछ है।