विदेश से कोयला आएगा, तब तक बीत जाएगा संकट | Coal will come from abroad, till then the crisis will pass | Patrika News h3>
——————-
– मानसून आने के बाद ही आ पाएगा कोयला, अभी संकट लेकिन कोयला नहीं
——————-
[email protected]भोपाल। मध्यप्रदेश में बिजली के मामले में अफसरशाही के अंदाज गजब हैं। विदेशों से कोयला खरीदना ता तय कर लिया है, लेकिन यह कोयला आएगा तब तक बिजली संकट चले जाने की उम्मीद है। वजह ये कि अगले महीने मानसून आ जाएगा। तब तक कोयला आना मुश्किल है।
——————-
दरअसल, कोयले की कमी के कारण केंद्र से विदेशों से आयात की छूट मिलने पर मध्यप्रदेश ने कोयला आयात करना तय किया है। इसके टेंडर निकाले गए हैं। करीब 1200 करोड़ रुपए का कोयला खरीदा जाना है। वह भी देसी कोयले के बाजार मूल्य से कई गुना ज्यादा कीमत पर, लेकिन यह कोयला आने में दो महीने से ज्यादा का वक्त लग जाएगा। खरीफ सीजन के लिए ही यह कोयला काम में आ पाएगा। इससे बारिश आने पर प्रदेश में बिजली की मांग घट जाएगी। सामान्यत: 13 जून तक प्रदेश में मानसून आता है। इससे पहले प्री-मानसून की बारिश हो जाती है। इस कारण जून में बारिश की संभावना से बिजली की मांग में कमी आने की स्थिति बन सकती है। इसके बाद जुलाई व अगस्त बारिश के ही महीने रहते हैं। तब, बिजली की मांग में भारी कमी आ जाती है। इसलिए बिजली संकट की स्थिति बदल सकती है। जून से ही कोयले की अभी जितनी मांग भी नहीं रह जाएगी। हर साल ही मानसून सीजन में कोयले की आवक कम हो जाती है, क्योंकि बारिश के कारण कोयले की रंैक भीगना शुरू हो जाती है। उस पर मांग में कमी के कारण गर्मी जितनी आपूर्ति की आवश्यकता नहीं रहती।
———————-
असफलता कहां?
बिजली व कोयले के प्रबंधन में असफलता निजी सेक्टर पर भरोसे और अफसरशाही के दांव-पेच की है। दरअसल, प्रदेश में 22500 मेगावाट की बिजली उपलब्धता के दावे किए जाते हैं, लेकिन अब जरुरत पडऩे पर 11500 मेगावाट बिजली की आपूर्ति तक नहीं हो पाई है। इसकी असल वजह कोयले के स्टॉक पर ध्यान न देना और निजी सेक्टर के एमओयू के तहत बिजली नहीं मिल पाना है। निजी सेक्टर से एमओयू के मुताबिक बिजली नहीं मिली, लेकिन फिर भी अफसरशाही इन एमओयू वाली कंपनियों को नोटिस तक नहीं देती। 25-25 साल के करार ऐसे संकट के समय के लिए होने के बावजूद कोई काम नहीं आ रहे, लेकिन इन कंपनियों पर कार्रवाई करने की बजाए अफसरशाही वापस खुले बाजार से महंगे दामों पर बिजली व कोयले की खरीदी का रूख कर लेती है। इसकी वजह इन सौदों में कमीशनबाजी का खेल है।
———————-
ऐसी है कोयले की स्थिति-
वर्तमान में प्रदेश में करीब 2.33 लाख मीट्रिक टन कोयला ही बचा है। यह रिजर्व स्टॉक में पचास प्रतिशत से भी कम है, क्योंकि नियमानुसार 5 लाख मीट्रिक टन कोयला रिजर्व होना अनिवार्य है। कोर्ट के निर्देशों के तहत 26 दिन का कोयला रिजर्व होना चाहिए, लेकिन किसी प्लांट पर दो दिन का कोयला है, तो कहीं पर चार दिन का कोयला ही बचा है।
————————–
फैक्ट फाइल-
– 1200 करोड़ का कोयला आयात किया जाएगा
– 01 महीने बाद ही मानसून आने से बिजली की मांग घट जाएगी
– 22500 मेगावाट बिजली उपलब्धता के दावे प्रदेश में
– 11500 मेगावाट अभी बिजली की औसत मांग प्रदेश में
– 2.33 लाख मीट्रिक टन कोयला अभी रिजर्व स्टॉक में बचा
– 05 लाख मीट्रिक टन कोयला रिजर्व स्टॉक में होना अनिवार्य
—————————-
——————-
दरअसल, कोयले की कमी के कारण केंद्र से विदेशों से आयात की छूट मिलने पर मध्यप्रदेश ने कोयला आयात करना तय किया है। इसके टेंडर निकाले गए हैं। करीब 1200 करोड़ रुपए का कोयला खरीदा जाना है। वह भी देसी कोयले के बाजार मूल्य से कई गुना ज्यादा कीमत पर, लेकिन यह कोयला आने में दो महीने से ज्यादा का वक्त लग जाएगा। खरीफ सीजन के लिए ही यह कोयला काम में आ पाएगा। इससे बारिश आने पर प्रदेश में बिजली की मांग घट जाएगी। सामान्यत: 13 जून तक प्रदेश में मानसून आता है। इससे पहले प्री-मानसून की बारिश हो जाती है। इस कारण जून में बारिश की संभावना से बिजली की मांग में कमी आने की स्थिति बन सकती है। इसके बाद जुलाई व अगस्त बारिश के ही महीने रहते हैं। तब, बिजली की मांग में भारी कमी आ जाती है। इसलिए बिजली संकट की स्थिति बदल सकती है। जून से ही कोयले की अभी जितनी मांग भी नहीं रह जाएगी। हर साल ही मानसून सीजन में कोयले की आवक कम हो जाती है, क्योंकि बारिश के कारण कोयले की रंैक भीगना शुरू हो जाती है। उस पर मांग में कमी के कारण गर्मी जितनी आपूर्ति की आवश्यकता नहीं रहती।
———————-
असफलता कहां?
बिजली व कोयले के प्रबंधन में असफलता निजी सेक्टर पर भरोसे और अफसरशाही के दांव-पेच की है। दरअसल, प्रदेश में 22500 मेगावाट की बिजली उपलब्धता के दावे किए जाते हैं, लेकिन अब जरुरत पडऩे पर 11500 मेगावाट बिजली की आपूर्ति तक नहीं हो पाई है। इसकी असल वजह कोयले के स्टॉक पर ध्यान न देना और निजी सेक्टर के एमओयू के तहत बिजली नहीं मिल पाना है। निजी सेक्टर से एमओयू के मुताबिक बिजली नहीं मिली, लेकिन फिर भी अफसरशाही इन एमओयू वाली कंपनियों को नोटिस तक नहीं देती। 25-25 साल के करार ऐसे संकट के समय के लिए होने के बावजूद कोई काम नहीं आ रहे, लेकिन इन कंपनियों पर कार्रवाई करने की बजाए अफसरशाही वापस खुले बाजार से महंगे दामों पर बिजली व कोयले की खरीदी का रूख कर लेती है। इसकी वजह इन सौदों में कमीशनबाजी का खेल है।
———————-
ऐसी है कोयले की स्थिति-
वर्तमान में प्रदेश में करीब 2.33 लाख मीट्रिक टन कोयला ही बचा है। यह रिजर्व स्टॉक में पचास प्रतिशत से भी कम है, क्योंकि नियमानुसार 5 लाख मीट्रिक टन कोयला रिजर्व होना अनिवार्य है। कोर्ट के निर्देशों के तहत 26 दिन का कोयला रिजर्व होना चाहिए, लेकिन किसी प्लांट पर दो दिन का कोयला है, तो कहीं पर चार दिन का कोयला ही बचा है।
————————–
फैक्ट फाइल-
– 1200 करोड़ का कोयला आयात किया जाएगा
– 01 महीने बाद ही मानसून आने से बिजली की मांग घट जाएगी
– 22500 मेगावाट बिजली उपलब्धता के दावे प्रदेश में
– 11500 मेगावाट अभी बिजली की औसत मांग प्रदेश में
– 2.33 लाख मीट्रिक टन कोयला अभी रिजर्व स्टॉक में बचा
– 05 लाख मीट्रिक टन कोयला रिजर्व स्टॉक में होना अनिवार्य
—————————-