सब्जी बेचकर सिविल जज बनी अंकिता नागर की पांच बड़ी बातें, संघर्ष कर रहे हर छात्र को जाननी चाहिए h3>
इंदौर के मूसाखेड़ी रोड पर लक्ष्मी और अशोक नागर सब्जी का ठेला लगाते हैं। दोनों पति-पत्नी लंबे अर्से से इंदौर की गलियों में सब्जी बेचते हैं। इस काम में उनके बच्चे भी साथ देते थे। मां-पिता के साथ सब्जी के ठेले पर उनकी बिटिया अंकिता नागर भी अक्सर दिखती थी। अंकिता भी पिता के ठेले पर सब्जी बेचती थी। एमपी में सिविल जज वर्ग-2 के परिणाम आते ही अंकिता की पहचान बदल गई है। वह एससी कोटे से पांचवीं रैंक हासिल कर सिविल जज बन गई है। सिविल जज में चयन होने के बाद भी अंकिता यहां सब्जी बेच रही थी लेकिन उसके चेहरे पर गजब की चमक थी। मां-पिता का सीना भी बेटी की सफलता से चौड़ा हो गया है। सब्जी के ठेले से लेकर घर तक पर लोगों का जमावड़ा लगा हुआ है। इस सफलता को हासिल करने के लिए अंकिता ने कई परेशानियां झेली है। संघर्ष कर रहे छात्रों के लिए अंकिता नागर मिसाल बनी है।
फॉर्म भरने के लिए नहीं थे पैसे
अंकिता के माता-पिता सब्जी का ठेला लगाकार इंदौर जैसे शहर में परिवार का परवरिश करते हैं। उनके तीन बच्चे हैं। बड़े बेटे और छोटी बेटी की शादी हो गई है। अंकिता अभी तक पढ़ाई कर रही थी। सब्जी बेचकर जो कमाई होती थी, उसी से पूरे घर का खर्च चलता है। सिविल जज बनी अंकिता ने बताया कि एक समय में हमारे पास फॉर्म भरने के लिए 800 रुपये नहीं थे। मेरे पास उस दिन 500 रुपये थे। मां दिन भर ठेले पर सब्जी बेचकर 300 रुपये जुटाई इसके बाद फॉर्म भरा।
ठेले पर बेचती थी सब्जी
सिविल जज बनी अंकिता का परिवार इंदौर के छोटे से मकान में रहता है। अंकिता शुरू से ही परिवार की आर्थिक स्थिति से वाकिफ थी। उसे पता था कि मां-पिता घर चलाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं। पिता सब्जी का ठेला संभालते थे तो मां घर का काम देखती थी। मां-पिता के हाथ में काम बंटाने के लिए अंकिता भी सब्जी के ठेले पर पहुंच जाती थी। वह खुद सब्जी तौलकर ग्राहकों को देती थी, इससे मां-पिता को मदद मिल जाती थी। रिजल्ट आने के बाद उसने मां को ठेले पर ही जाकर बताई थी कि मैं जज बन गई हूं।
सपना पूरा करने के लिए नहीं की शादी
अंकिता शुरू से ही जज बनना चाहती थी। कॉलेज में एलएलबी की पढ़ाई के दौरान से ही वह तैयारी शुरू कर दी थी। अंकिता के बड़े भाई और छोटी बहन की शादी हो गई है। मगर अपन सपने को पूरा करने के लिए सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर अंकिता ने शादी नहीं की। भारतीय समाज में परंपरा है कि घर में बड़े की शादी पहले होती है। इसमें अंकिता के माता-पिता ने भी भरपूर साथ दिया है।
तीन बार हुई असफल लेकिन हार नहीं मानी
29 वर्षीय अंकिता नागर ने बताया कि सिविल जज भर्ती परीक्षा में तीन बार असफल होने के बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैं अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए तैयारी में जुटी रही। इस संघर्ष के दौरान मेरे लिए रास्ते खुलते गए और मैं इन पर चलती गई। कड़ी संघर्ष के बाद मैंने सफलता हासिल की है।
मिसाल है मेरी बेटी
अंकिता की सफलता पर सबसे ज्यादा खुशी पिता को है। पिता ने हर मौके पर बेटी का साथ दिया है। साथ ही अपनी बेटी के ऊपर भरोसा किया है। असफल कोशिशों के बाद भी वह हार नहीं मानी और उम्मीदों पर खरा उतरी है। पिता अशोक नागर ने कहा कि मेरी बेटी उन लोगों के लिए मिसाल है, जो संघर्ष को देखकर पीछे हट जाते हैं। अंकिता जीवन में कड़े संघर्ष के बावजूद कभी हिम्मत नहीं हारी।
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फॉर्म भरने के लिए नहीं थे पैसे
अंकिता के माता-पिता सब्जी का ठेला लगाकार इंदौर जैसे शहर में परिवार का परवरिश करते हैं। उनके तीन बच्चे हैं। बड़े बेटे और छोटी बेटी की शादी हो गई है। अंकिता अभी तक पढ़ाई कर रही थी। सब्जी बेचकर जो कमाई होती थी, उसी से पूरे घर का खर्च चलता है। सिविल जज बनी अंकिता ने बताया कि एक समय में हमारे पास फॉर्म भरने के लिए 800 रुपये नहीं थे। मेरे पास उस दिन 500 रुपये थे। मां दिन भर ठेले पर सब्जी बेचकर 300 रुपये जुटाई इसके बाद फॉर्म भरा।
ठेले पर बेचती थी सब्जी
सिविल जज बनी अंकिता का परिवार इंदौर के छोटे से मकान में रहता है। अंकिता शुरू से ही परिवार की आर्थिक स्थिति से वाकिफ थी। उसे पता था कि मां-पिता घर चलाने के लिए कितनी मेहनत करते हैं। पिता सब्जी का ठेला संभालते थे तो मां घर का काम देखती थी। मां-पिता के हाथ में काम बंटाने के लिए अंकिता भी सब्जी के ठेले पर पहुंच जाती थी। वह खुद सब्जी तौलकर ग्राहकों को देती थी, इससे मां-पिता को मदद मिल जाती थी। रिजल्ट आने के बाद उसने मां को ठेले पर ही जाकर बताई थी कि मैं जज बन गई हूं।
सपना पूरा करने के लिए नहीं की शादी
अंकिता शुरू से ही जज बनना चाहती थी। कॉलेज में एलएलबी की पढ़ाई के दौरान से ही वह तैयारी शुरू कर दी थी। अंकिता के बड़े भाई और छोटी बहन की शादी हो गई है। मगर अपन सपने को पूरा करने के लिए सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर अंकिता ने शादी नहीं की। भारतीय समाज में परंपरा है कि घर में बड़े की शादी पहले होती है। इसमें अंकिता के माता-पिता ने भी भरपूर साथ दिया है।
तीन बार हुई असफल लेकिन हार नहीं मानी
29 वर्षीय अंकिता नागर ने बताया कि सिविल जज भर्ती परीक्षा में तीन बार असफल होने के बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैं अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए तैयारी में जुटी रही। इस संघर्ष के दौरान मेरे लिए रास्ते खुलते गए और मैं इन पर चलती गई। कड़ी संघर्ष के बाद मैंने सफलता हासिल की है।
मिसाल है मेरी बेटी
अंकिता की सफलता पर सबसे ज्यादा खुशी पिता को है। पिता ने हर मौके पर बेटी का साथ दिया है। साथ ही अपनी बेटी के ऊपर भरोसा किया है। असफल कोशिशों के बाद भी वह हार नहीं मानी और उम्मीदों पर खरा उतरी है। पिता अशोक नागर ने कहा कि मेरी बेटी उन लोगों के लिए मिसाल है, जो संघर्ष को देखकर पीछे हट जाते हैं। अंकिता जीवन में कड़े संघर्ष के बावजूद कभी हिम्मत नहीं हारी।