Akhilesh Shivpal News: शिवपाल का ‘क्लेश’ नहीं दूर करेंगे अखिलेश…संकेतों में भतीजे ने दिया ऐसा संदेश, चाचा से रास्ते अलग

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Akhilesh Shivpal News: शिवपाल का ‘क्लेश’ नहीं दूर करेंगे अखिलेश…संकेतों में भतीजे ने दिया ऐसा संदेश, चाचा से रास्ते अलग

Akhilesh Shivpal News: शिवपाल का ‘क्लेश’ नहीं दूर करेंगे अखिलेश…संकेतों में भतीजे ने दिया ऐसा संदेश, चाचा से रास्ते अलग

लखनऊ: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) कभी गुस्सा तो कभी दर्द दिखा रहे चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) का ‘क्लेश’ दूर करने के मूड में नहीं है। शिवपाल के लगातार हमलों से बेफिक्र अखिलेश ने साफ कर दिया है कि चाचा के लिए सपा में अब कोई संभावना नहीं हैं। उन्होंने गुरुवार को झांसी में दो टूक कहा कि ‘शिवपाल यादव अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, वह अपने दल को मजबूत करें।’ दरअसल, भाजपा से नजदीकियों की खबरों और सत्ता के लोगों से शिवपाल की मुलाकात ने भी अखिलेश को अपना स्टैंड और मजबूत करने का मौका दे दिया है।

2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही अलग पार्टी बनाकर अखिलेश को चुनौती देने वाले शिवपाल की सपा में वापसी की कोई कोशिश अब तक परवान नहीं चढ़ सकी है। हालिया विधानसभा चुनाव के ठीक पहले चाचा-भतीजा एक मंच पर आए तो लेकिन ‘आवश्यकता’ आधारित यह समझौता चल नहीं पाया। चुनाव के बाद कभी नाराजगी, कभी मीटिंग से दूरी तो कभी आजम की चिंता दिखा शिवपाल अखिलेश पर दबाव बनाने पर लगे हैं, लेकिन अब तक यह बेअसर ही साबित हुआ है।

इसलिए मुलायम नहीं अखिलेश
ईद के दिन शिवपाल ने ट्वीट कर बिना नाम लिए अखिलेश पर एहसान फरामोशी का आरोप लगाया। इसमें सपा के कई समर्थकों ने शिवपाल को दिसंबर 2016 की वह चिट्ठी याद दिलाई, जिसे जारी कर तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव और राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव को पार्टी से निकालने का ऐलान कर दिया गया था। मुलायम की इस चिट्ठी के सूत्रधार शिवपाल और अमर सिंह बताए गए थे। अखिलेश आज तक इस वाकये को भूल नहीं पाए हैं। सपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी से अलग होने के बाद भी शिवपाल खुद को प्रासंगिक नहीं बना पाए हैं।

2019 में वह फिरोजाबाद से लोकसभा चुनाव लड़े जो समाजवादियों का गढ़ था। वहां, उन्होंने सपा उम्मीदवार को तो हरवा दिया, लेकिन उनकी खुद की भी जमानत जब्त हो गई। सपा को नुकसान पहुंचाने के ‘परसप्शन’ के अलावा उनकी कोई जमीनी पकड़ नहीं दिखी। जिन मुद्दों पर भाजपा खेलती रही है, शिवपाल भी आजकल उसी पिच पर खेल रहे हैं। ऐसे में जिन समर्थकों की उनके साथ सहानुभूति थी, वह भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है। इशारों में अखिलेश उन्हें भाजपा की ‘बी’ टीम कह चुके हैं। ऐसे में शिवपाल को जोड़ने या मनाने से कोई जमीनी फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है।

सवाल भरोसे का भी है!
अखिलेश पर धोखेबाजी का आरोप लगाने वाले शिवपाल इस समय खुद भरोसे के संकट से जूझ रहे हैं। शिवपाल की पार्टी प्रसपा के एक पूर्व पदाधिकारी का कहना है कि शिवपाल के सपा से बाहर होने के बाद कई नेताओं ने उनका साथ दिया, पार्टी से जुड़े, खून-पसीना बहाया। लेकिन, विधानसभा चुनाव में शिवपाल हमारी आवाज नहीं बन पाए। खुद सपा से जुड़कर चुनाव लड़ गए और हम कहीं के नहीं रहे। ऐसे में जब वह दोबारा संगठन खड़ा करने का दावा कर रहे हैं तो उनके साथ कोई किस भरोसे से जुड़ेगा? वह खुद अपनी सियासत का सिरा नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं तो दूसरों का भविष्य कैसे तय कर पाएंगे?

शिवपाल को लेकर यही सवाल सपा के भीतर से भी है। एक नेता का कहना है कि जब सत्ता की संभावनाएं देखीं तो सपा की हर शर्त पर सहमत हो गए। चुनाव में नतीजे अनुकूल नहीं रहे, तो फिर मोर्चा खोलने लगे। ऐसे में जब शिवपाल साथ रहकर भी खिलाफ हैं, तो उनसे सीधी दूरी की ही रणनीति बेहतर है।

सुप्रीमो संस्कृति पर सपा
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता दीपक मिश्र ने कहा है कि सपा अब ‘समाजवाद’ नहीं ‘सुप्रीमो’ संस्कृति पर चल रही है। इसलिए, उसमें किसी समाजवादी के लिए जगह नहीं है। शिवपालजी भी अपवाद नहीं है। सपा के साथ जाने का निर्णय सबकी सहमति से था। अखिलेश को 100 लोगों की सूची दी गई, लेकिन उन्होंने महज एक सीट दे दी। हमारे कुछ नेता छोड़कर जरूर गए, लेकिन बाकी पार्टी के साथ तब भी थे और अब भी हैं। भाजपा के अच्छे काम की हमने तारीफ की है, लेकिन जनविरोधी नीतियों पर सबसे मुखर विरोध भी हमने किया है।

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