माननीयों की आंखों का पानी सूखने का नतीजा है दांडीची का जल संकट, अब आयोग के नोटिस से कुछ हो पाएगा?

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माननीयों की आंखों का पानी सूखने का नतीजा है दांडीची का जल संकट, अब आयोग के नोटिस से कुछ हो पाएगा?

माननीयों की आंखों का पानी सूखने का नतीजा है दांडीची का जल संकट, अब आयोग के नोटिस से कुछ हो पाएगा?

NHRC issues notices over water crisis in Nashik village: नासिक के गांव दांडीची बारी (Dandichi Bari) का जल संकट (Water crisis) रूह कंपा देने वाला है। यह माननीयों की आंखों का पानी सूखने का नतीजा है। हालात इतने गंभीर हैं कि कई नई दुल्हनें स्थिति का सामना करने में असमर्थ होकर मायके लौट जाती हैं। जल संकट के चलते इन महिलाओं को पानी लाने के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है। महाराष्‍ट्र (Maharashtra) के ही कुछ एक गांव में महिलाएं जान जाखिम में डालकर थोड़े से पानी के लिए 50 फीट गहरे कुएं में उतरने तक को मजबूर हो जाती हैं। यह और बात है कि शासन-प्रशासन के आंख-कान बंद हैं। अब इस पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने संज्ञान लिया है। उसने महाराष्ट्र सरकार और केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय को नोटिस जारी किया है। आयोग ने कहा है कि महिलाओं को हर गर्मियों में मार्च से जून तक एक पहाड़ी के तल पर लगभग सूख चुकी धारा से पानी लाने के लिए डेढ़ किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इसमें काफी समय लगता है। देखना होगा कि आयोग के नोटिस के बाद क्‍या स्थितियों में कोई बदलाव होगा।

एनएचआरसी ने कहा है कि नौबत यह है कि कई परिवार गांव के पुरुषों से अपनी बेटियों की शादी करने से हिचकिचा रहे हैं। दांडीची बारी गांव में गंभीर जल संकट के कारण ग्रामीणों को पानी की एक-एक बूंद के लिए रोजाना संघर्ष करना पड़ रहा है। आयोग के मुताबिक, अगर मीडिया में आई खबर सही है, तो यह उन लोगों के मूल मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है।

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कई गांवों में है पानी की किल्‍लत
महाराष्ट्र के कई गांवों में पानी की किल्लत से लोग परेशान हैं। दांडीची बारी भी उनमें से एक है। इस गांव में लगभग 300 लोग रहते हैं। यह गांव नासिक से लगभग 90 किमी दूर सुरगना तालुका में पड़ता है। इस गांव का नाम सुनकर लड़की वाले डर जाते हैं। इस गांव में कोई अपनी लड़की नहीं ब्‍याहना चाहता है। गांव में महिलाओं को बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष करना पड़ता है। यहां के युवाओं के लिए सुखी वैवाहिक जीवन सपने जैसा है। एक मटका पानी के लिए महिलाओं को कई किलोमीटर दूरे चलना पड़ता है।

गर्मी में हालात विकराल हो जाते हैं। तापमान सामान्यता 40 डिग्री सेल्सियस को छू जाता है। कई-कई घंटे बिताकर थोड़े से पानी का इंतजाम हो पाता है। सूखी धारा से पानी लाने को डेढ़ किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। पथरीले इलाके में चलकर पानी के श्रोत तक पहुंचने तक ही संघर्ष खत्म नहीं होता है। अलबत्‍ता चट्टान की गुहा में पानी भरने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है।

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यहां पानी है खजाना
2008-09 में तीन विवाहित महिलाओं ने पानी की कमी से उकताकर अपनी शादी के कुछ दिनों के भीतर ही गांव छोड़ दिया था। आज नौबत यह है कि परिवार अपनी बेटियों की शादी गांव के पुरुषों से करने से हिचकिचाते हैं। पानी की जद्दोजहद के लिए महिलाएं साथ में अलाव या टॉर्च लेकर भी चलती हैं। इससे जंगली जानवरों से उनकी सुरक्षा हो। यहां पानी ही खजाना है। खड़ी पगडंडी से निपटने के लिए महिलाओं को सिर पर पानी के दो घड़े के साथ हाथ में टॉर्च रखनी पड़ती है।

फिलहाल यह साफ है कि उनकी समस्‍या की सुध किसी ने नहीं ली है। सबके सब कान में रुई डालकर बैठे हैं। यह बात इसलिए भी कही जा सकती है क्‍योंकि यह समस्‍या सालों साल पुरानी है। महाराष्ट्र सरकार और केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय को मानवाधिकार आयोग की नोटिस के बाद यह देखना होगा कि यहां स्थितियों में कोई बदलाव आता है कि नहीं।



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