शहर में मच रहा शोर, वरिष्ठ अधिकारी खुद चाैराहों पर खड़े हो कर देंखें, लोगों को समझाएं | sound pollution in city, officers to come on gross rute | Patrika News h3>
इंदौर, रिपोर्टर। स्वच्छता में नंबर वन, वायु गुणवत्ता भी सुधार पर, लेकिन शोर का जोर बहुत है। इसके सुधार के लिए भी तत्काल योजना बननी चाहिए। ध्वनि प्रदूषण साइलेंस जोन में भी मानक या इससे उपर हो रहा शोर, अच्छी बात नहीं है। इसके लिए सभी अधिकारी समन्वयय से काम करें। ट्रैफिक व जिम्मेदार विभाग के सीनियर ऑफिसर खुद चौराहे पर खड़े हो कर देंखे। चेक करें, शोर प्रदूषण कैसे हो रहा है। कार्रवाई करें, लोगों को समझाइश दें। प्रदूषण विभाग भी नियमित निगरानी और मापन करें।
यह निर्देश नेशनल ग्रीन टि्रब्यूनल के सदस्य डॉ अफरोज अहमद ने कलेक्टर कार्यालय में जिला पर्यावरण प्लान की समीक्षा बैठक में दिए। उन्होंने कहा, इस बात की खुशी है, शहर स्वच्छ है। वायु प्रदूषण में भी कमी आ रही है।ध्वनि प्रदूषण की िस्थति देख कर उन्होंने कहा, इस पर अलर्ट होने रहने की जरूरत है। कलेक्टर मनीषसिंह, निगमायुक्त प्रतिभा पाल व प्रदूषण बोर्ड के क्षेत्रीय प्रबंधक आरके गुप्ता ने प्लान और उस पर हो रहे अमल की जानकारी दी। निगम ने कचरा प्रबंधन व स्वच्छता के बारे में बताया। प्रदूषण विभाग ने जब प्रेजेन्टेशन दिया तो ध्वनि प्रदूषण के आंकड़ों को देख कर चिंता जाहिर करते हुए कहा, इसको नजर अंदाज क्यों कर रहे हैं? गुप्ता का जवाब सुन कर कहा, अधिकारी ही इसे कर सकते हैं। इंदौर में तो बहुत क्षमता है।
शहर में लाउड-स्पीकर बजाना भी प्रतिबंधित गुप्ता ने बताया इसके लिए कमियों का आकलन करके योजना तैयार कर रहे हैं। कलेक्टर ने 39 नए साइलेंस जोन घोषित कर दिए गए है। 20 हॉट स्पॉट चिन्हिंत किए है। प्रेशर हार्न लगाना व बेचना प्रतिबंधित है। लाउडस्पीकर व डीजे सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक कार्यक्रमों में प्रतिबंधित है। ट्रेफिक पुलिस सामाजिक संगठनों के माध्यम से रोको-टोको अभियान चला कर चौराहों पर इंजन बंद करवा रहे है। ऐसे पेड़-पौधे लगा रहे हैं, जो ध्वनि प्रदूषण कम करें।
शोर से होने वाली परेशानियां – शोर का स्तर परेशानी 70 डेसीबल – बैचेनी, मानसिक तनाव, अनिद्रा 80 डेसीबल – सिरदर्द, थकान, तनाव, कार्यक्षमता में कमी 85-90 डेसीबल – बहरापन व श्रवण दोष, कान में आंतरिक क्षति
100 डेसीबल – हार्ट प्राबलम, ब्लड प्रेशर, गैस्टि्रक अल्सर, चिडचिड़ापन का कारण 120 डेसीबल – स्नायु तंत पर प्रभाव, गर्भवती महिलाओं को परेशानी 140 डेसीबल – अस्थाई बहरापन व पीढ़ा शहर में औसत ध्वनि प्रदूषण
तय क्षेत्र दिन रात रहवासी इलाके 46-73 42-67 व्यावसायिक 42-72 45-56 औद्योगिक 58-86 50-74 साइलेंस जोन 44-69 40-58 प्रदूषण मात्रा डेसीबल में – मानक – रहवासी क्षेत्र में दिन में 55 व रात में 45
– साइलेंस जोन में दिन में 50 व रात में 40 डेसीबल यह है हाट स्पॉट क्षेत्र रात दिन राजबाड़ा 65 43 रीगल 63 44 पलासिया 65 48 बापट चौराहा 64 49
रेलवे स्टेशन 67 58 महू नाका 63 46 व्हाइट चर्च 63 42 एयरपोर्ट 60 41 सियागंज 64 47 पोलोग्राउंड 69 46 बंगाली चौराहा 65 43 आईटी पार्क 63 41
रेडिसन चौराहा 62 50 गंगवाल बस स्टैंड 64 51 लवकुश चौराहा 67 45 मैं इंदौर के स्वच्छता मॉडल अपनाने के लिए फैसले के साथ सुझाव देता हूं – एनजीटी सदस्य डॉ. अहमद
राष्ट्रीय ग्रीन टि्रब्यूनल के सदस्य डॉक्टर अफरोज अहमद ने इंदौर की दिल-खोल कर प्रशंसा की। उन्होंने बताया, पर्यावरण मामलों के फैसलों के साथ स्थानीय प्रशासन को इंदौर मॉडल अपनाने व यहां का अवलोकन करने का सुझाव देता हूं। जिला पर्यावरण प्लान में पंचायतों को शामिल किया जाए। इंदौर की बेहतरी के लिए जरूरी है, पानी प्रबंधन के लिए यहां की झील, कान्ह सरस्वती नदी और इसकी सहायक नदियों के बहाव क्षेत्रों को संरक्षित करें। तालाबों के केचमेंट से अतिक्रमण हटाएं।
सोमवार को इंदौर में जिला पर्यावरण प्लान की समीक्षा करने आए डॉ अहमद ने इंदौर में पर्यावरण संरक्षण के कार्याें को अच्छा बताया। मौजूद अफसरों से कहा, कलेक्टर ही नहीं सभी विभाग के समन्वयय से काम करने की जरूरत है। गांवों को भी इससे जोड़ना होगा। औद्योगिकीकरण व विकास से हो रहे हरियाली की भरपाई के लिए कर्न्वजेंस जरूरी है। हाल की में एक कंपनी पर 50 करोड़ का जुर्माना किया गया है।
उन्होंने बताया, मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की ससुराल गोदिंया महाराष्ट में कलेक्टर ने बहुत ही अच्छा प्रयोग किया, पुराने पेड़ों की सुरक्षा के लिए पुराने पौधों के संरक्षण के लिए इंसेटिव दे रहे हैं।पानी का प्रबंधन करें
उन्होंने कहा, वाटर प्लस व संरक्षण में अच्छा काम है। क्योंकि भविष्य में पानी के लिए संघर्ष होगा। पानी प्रबंधन के लिए तालाबों और नदियों का संरक्षण जरूरी है। इनके बहाव क्षेत्रों को अच्छा बनाएं।झाडियां नहीं
नीम-जामुन लगाएं उन्होंने डीएफओ और निगमायुक्त को सुझाव दिया, झाड़ीनुमा पेड़ के बजाय आम, नीम, जामुन, अशोक आदि प्रजाति के पेड़ लगाएं। जिससे प्रदूषण को सोखने में मदद मिलेगी। कान्ह-सरस्वती नदी के किनारे लगाने से नदी भी जिंदा होगी।
इंदौर, रिपोर्टर। स्वच्छता में नंबर वन, वायु गुणवत्ता भी सुधार पर, लेकिन शोर का जोर बहुत है। इसके सुधार के लिए भी तत्काल योजना बननी चाहिए। ध्वनि प्रदूषण साइलेंस जोन में भी मानक या इससे उपर हो रहा शोर, अच्छी बात नहीं है। इसके लिए सभी अधिकारी समन्वयय से काम करें। ट्रैफिक व जिम्मेदार विभाग के सीनियर ऑफिसर खुद चौराहे पर खड़े हो कर देंखे। चेक करें, शोर प्रदूषण कैसे हो रहा है। कार्रवाई करें, लोगों को समझाइश दें। प्रदूषण विभाग भी नियमित निगरानी और मापन करें।
यह निर्देश नेशनल ग्रीन टि्रब्यूनल के सदस्य डॉ अफरोज अहमद ने कलेक्टर कार्यालय में जिला पर्यावरण प्लान की समीक्षा बैठक में दिए। उन्होंने कहा, इस बात की खुशी है, शहर स्वच्छ है। वायु प्रदूषण में भी कमी आ रही है।ध्वनि प्रदूषण की िस्थति देख कर उन्होंने कहा, इस पर अलर्ट होने रहने की जरूरत है। कलेक्टर मनीषसिंह, निगमायुक्त प्रतिभा पाल व प्रदूषण बोर्ड के क्षेत्रीय प्रबंधक आरके गुप्ता ने प्लान और उस पर हो रहे अमल की जानकारी दी। निगम ने कचरा प्रबंधन व स्वच्छता के बारे में बताया। प्रदूषण विभाग ने जब प्रेजेन्टेशन दिया तो ध्वनि प्रदूषण के आंकड़ों को देख कर चिंता जाहिर करते हुए कहा, इसको नजर अंदाज क्यों कर रहे हैं? गुप्ता का जवाब सुन कर कहा, अधिकारी ही इसे कर सकते हैं। इंदौर में तो बहुत क्षमता है।
शहर में लाउड-स्पीकर बजाना भी प्रतिबंधित गुप्ता ने बताया इसके लिए कमियों का आकलन करके योजना तैयार कर रहे हैं। कलेक्टर ने 39 नए साइलेंस जोन घोषित कर दिए गए है। 20 हॉट स्पॉट चिन्हिंत किए है। प्रेशर हार्न लगाना व बेचना प्रतिबंधित है। लाउडस्पीकर व डीजे सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक कार्यक्रमों में प्रतिबंधित है। ट्रेफिक पुलिस सामाजिक संगठनों के माध्यम से रोको-टोको अभियान चला कर चौराहों पर इंजन बंद करवा रहे है। ऐसे पेड़-पौधे लगा रहे हैं, जो ध्वनि प्रदूषण कम करें।
शोर से होने वाली परेशानियां – शोर का स्तर परेशानी 70 डेसीबल – बैचेनी, मानसिक तनाव, अनिद्रा 80 डेसीबल – सिरदर्द, थकान, तनाव, कार्यक्षमता में कमी 85-90 डेसीबल – बहरापन व श्रवण दोष, कान में आंतरिक क्षति
100 डेसीबल – हार्ट प्राबलम, ब्लड प्रेशर, गैस्टि्रक अल्सर, चिडचिड़ापन का कारण 120 डेसीबल – स्नायु तंत पर प्रभाव, गर्भवती महिलाओं को परेशानी 140 डेसीबल – अस्थाई बहरापन व पीढ़ा शहर में औसत ध्वनि प्रदूषण
तय क्षेत्र दिन रात रहवासी इलाके 46-73 42-67 व्यावसायिक 42-72 45-56 औद्योगिक 58-86 50-74 साइलेंस जोन 44-69 40-58 प्रदूषण मात्रा डेसीबल में – मानक – रहवासी क्षेत्र में दिन में 55 व रात में 45
– साइलेंस जोन में दिन में 50 व रात में 40 डेसीबल यह है हाट स्पॉट क्षेत्र रात दिन राजबाड़ा 65 43 रीगल 63 44 पलासिया 65 48 बापट चौराहा 64 49
रेलवे स्टेशन 67 58 महू नाका 63 46 व्हाइट चर्च 63 42 एयरपोर्ट 60 41 सियागंज 64 47 पोलोग्राउंड 69 46 बंगाली चौराहा 65 43 आईटी पार्क 63 41
रेडिसन चौराहा 62 50 गंगवाल बस स्टैंड 64 51 लवकुश चौराहा 67 45 मैं इंदौर के स्वच्छता मॉडल अपनाने के लिए फैसले के साथ सुझाव देता हूं – एनजीटी सदस्य डॉ. अहमद
राष्ट्रीय ग्रीन टि्रब्यूनल के सदस्य डॉक्टर अफरोज अहमद ने इंदौर की दिल-खोल कर प्रशंसा की। उन्होंने बताया, पर्यावरण मामलों के फैसलों के साथ स्थानीय प्रशासन को इंदौर मॉडल अपनाने व यहां का अवलोकन करने का सुझाव देता हूं। जिला पर्यावरण प्लान में पंचायतों को शामिल किया जाए। इंदौर की बेहतरी के लिए जरूरी है, पानी प्रबंधन के लिए यहां की झील, कान्ह सरस्वती नदी और इसकी सहायक नदियों के बहाव क्षेत्रों को संरक्षित करें। तालाबों के केचमेंट से अतिक्रमण हटाएं।
सोमवार को इंदौर में जिला पर्यावरण प्लान की समीक्षा करने आए डॉ अहमद ने इंदौर में पर्यावरण संरक्षण के कार्याें को अच्छा बताया। मौजूद अफसरों से कहा, कलेक्टर ही नहीं सभी विभाग के समन्वयय से काम करने की जरूरत है। गांवों को भी इससे जोड़ना होगा। औद्योगिकीकरण व विकास से हो रहे हरियाली की भरपाई के लिए कर्न्वजेंस जरूरी है। हाल की में एक कंपनी पर 50 करोड़ का जुर्माना किया गया है।
उन्होंने बताया, मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की ससुराल गोदिंया महाराष्ट में कलेक्टर ने बहुत ही अच्छा प्रयोग किया, पुराने पेड़ों की सुरक्षा के लिए पुराने पौधों के संरक्षण के लिए इंसेटिव दे रहे हैं।पानी का प्रबंधन करें
उन्होंने कहा, वाटर प्लस व संरक्षण में अच्छा काम है। क्योंकि भविष्य में पानी के लिए संघर्ष होगा। पानी प्रबंधन के लिए तालाबों और नदियों का संरक्षण जरूरी है। इनके बहाव क्षेत्रों को अच्छा बनाएं।झाडियां नहीं
नीम-जामुन लगाएं उन्होंने डीएफओ और निगमायुक्त को सुझाव दिया, झाड़ीनुमा पेड़ के बजाय आम, नीम, जामुन, अशोक आदि प्रजाति के पेड़ लगाएं। जिससे प्रदूषण को सोखने में मदद मिलेगी। कान्ह-सरस्वती नदी के किनारे लगाने से नदी भी जिंदा होगी।