न हिंदुत्व, न M-Y समीकरण… 2027 में वापसी के लिए योगी आदित्यनाथ के सामने होगी यह बड़ी चुनौती? h3>
नई दिल्ली/लखनऊ: यूपी की तरक्की के बिना भारत आगे नहीं बढ़ सकता है। भारत के थिंक टैंक नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष रहे अरविंद पनगढ़िया ने सीएम योगी आदित्यनाथ की सबसे बड़ी चुनौती पर एक लेख लिखा है। उन्होंने कहा है कि दोबारा बड़े जनादेश के साथ सत्ता में आए सीएम योगी आदित्यनाथ के सामने सबसे बड़ा चैलेंज औद्योगिक निवेश जुटाना है। पनगढ़िया इस समय कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफसर हैं। उन्होंने लिखा है कि इस पर विचार करने की जरूरत है कि कई विश्लेषकों की चुनाव नतीजों को लेकर भविष्यवाणी क्यों गलत साबित हुई है। वह कहते हैं कि मेरी नजर में सबसे बड़ी वजह यह है कि वे अब भी जाति, समुदाय और धर्म के आधार पर ही नतीजों का गणित निकालते रहे जबकि ये फैक्टर्स काफी समय पहले ही हवा हो गए हैं।
पढ़िए लेख के प्रमुख अंश
जब लोगों के जीवन में कोई प्रत्यक्ष सुधार न होने के कारण सालाना प्रति व्यक्ति आय 2% या उससे कम बढ़ने लगी तो भाग्य पर भरोसा करने वाली सदियों पुरानी भारतीय सोच हावी होती गई। आगे चलकर लोग अपनी जाति के हिसाब से वोट करने लगे। लेकिन सुधारों ने मतदाताओं को दिखाया कि बेहतर शासन और तेज विकास उन्हें आर्थिक खुशहाली प्रदान कर किस्मत को बदल सकता है। इसके चलते मतदाताओं के बीच आकांक्षाओं में बढ़ोतरी हुई। लोगों में उस धारणा को बल मिला कि बेहतर शासन और विकास करने वाली सरकारों को दोबारा मौका दिया जाएगा। बाद में इस अवधारणा को समर्थन भी मिला।
उदाहरण के तौर पर, मतदाताओं ने 2009 में यूपीए सरकार को दोबारा सत्ता सौंपी लेकिन 2014 में उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। उन्होंने भाजपा को कमान सौंपी और 2019 में सत्ता में वापसी भी सुनिश्चित की। राज्य स्तर पर आकांक्षी जनता ने ओडिशा, बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करने वाली सरकारों की कई बार सत्ता में वापसी कराई। वहीं राजस्थान, पंजाब, तमिलनाडु में एक कार्यकाल के बाद बेहतर प्रदर्शन न करने पर सरकारें बदल गईं। यूपी में भी ऐसा होता था लेकिन इस बार जनता ने दोबारा योगी सरकार को सत्ता सौंपी है।
काम नहीं आया एमवाई समीकरण
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हाल की जीत को एक व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। जो लोग पुरानी तरह से सोचते थे वे मानकर चल रहे थे कि नतीजे एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण और दलित वोट पर निर्भर करेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यूपी के इतिहास में पहली बार किसी सीएम ने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा सत्ता संभाली। आदित्यनाथ की वापसी न तो हिंदुत्व की राजनीति की सफलता है और न ही एम-वाई समीकरण की विफलता का प्रतीक है। इसकी बजाय नतीजों का कारण कानून-व्यवस्था को बेहतर तरीके से संभालना, कोरोना की लहरों के दौरान संक्रमण के स्तर को कम रखने के सफल प्रयास, टीकाकरण में तेजी से प्रगति और विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से लाभ का कुशल और प्रभावी वितरण में छिपा है।
2027 में योगी को लौटना है तो…
लेकिन अगर योगी आदित्यनाथ को 2027 में फिर से सत्ता में लौटना है, तो उनका मूल्यांकन पिछले पांच वर्षों में उन्होंने जो कुछ किया है उससे नहीं बल्कि अगले पांच वर्षों में वह जो करेंगे उसके आधार पर किया जाएगा। उम्मीद की जा सकती है कि कोरोना महामारी के असर से उबरते हुए तरक्की की राह पर प्रदेश बढ़ेगा। यूपी में यह विशेष रूप से मायने रखता है जो प्रति व्यक्ति नेट स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (NSDP) के मामले में भारत का दूसरा सबसे गरीब राज्य बना हुआ है। 2019-20 में इसकी सालाना प्रति व्यक्ति एनएसडीपी 65,700 रुपये थी जो राष्ट्रीय औसत 1,35,625 रुपये से आधे से भी कम थी।
2017-18 से 2019-20 तक तीन वर्षों के दौरान यूपी में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) केवल 4.9 प्रतिशत की औसत दर से बढ़ा। यूपी में जीवन स्तर और राष्ट्रीय औसत के बीच खाई को पाटने के लिए इस विकास दर में काफी तेजी लानी होगी। यूपी में GSDP को 2019-20 में 238 अरब डॉलर से 2026-27 तक कम से कम 350 अरब डॉलर तक पहुंचना चाहिए। इसके लिए औसतन सालाना ग्रोथ रेड 8 प्रतिशत की जरूरत होगी।
यूपी के सामने क्या विकल्प
लोगों को उच्च जीवन स्तर प्रदान करने के साथ ही इस ग्रोथ को हासिल करने के लिए यूपी को अपने 90 मिलियन से ज्यादा वर्करों के बेहद कम उपयोग किए गए संसाधन का लाभ उठाना चाहिए। इसे लचीला श्रम और भूमि बाजार बनाना चाहिए और राज्य में व्यापार के अनुकूल वातावरण पैदा करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सीएम के तौर पर कार्यकाल के दौरान गुजरात के अनुभव से यूपी सबक ले सकता है।
मोदी से सीख सकते हैं योगी
औद्योगीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिए मोदी ने जिस एक महत्वपूर्ण माध्यम का इस्तेमाल किया, वह था विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ), जिसमें उन्होंने भारत में कहीं और की तुलना में ज्यादा लचीला लेबर मार्केट तैयार किया। 2004 की शुरुआत में, उन्होंने इन क्षेत्रों में सभी आकार के उद्यमों को औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के तहत प्रतिबंधों से फ्री कर दिया। जोन्स ने जमीन, इन्फ्रास्ट्रक्चर और 24×7 बिजली आपूर्ति की समस्या को दूर कर दिया। जबकि दूसरी जगहों पर ऐसी समस्याएं आ रही थीं। एक स्टडी के अनुसार, 2006-16 के दौरान गुजरात के सेज की देशव्यापी SEZ एक्सपोर्ट में 47 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।
इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड ने 2020 में IDA 1947 की जगह ली। इसके तहत राज्य सभी प्रकार के उद्यमों को कर्मचारियों को काम पर रखने और निकालने का अधिकार प्रदान करने के लिए स्वतंत्र हैं। इस एक सुधार को लागू करने से उत्तर प्रदेश श्रम प्रधान क्षेत्रों में बड़े उद्यमों के लिए एक आकर्षक डेस्टिनेशन बन जाएगा। SEZ बनने से जमीन, 24 घंटे बिजली और वर्करों को सस्ती दर पर मेडिकल सुविधाएं टियर- और टियर-3 शहरों में दी जा सकती हैं। इससे उद्यमों को सस्ते वर्कर मिल सकते हैं और यूपी श्रम साध्य विनिर्माण के एक प्रमुख निर्यात केंद्र में बदल सकता है।
यूपी सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रदेश है। भारत सहित केवल चार देशों की आबादी इससे ज्यादा है। ऐसे में भारत तब तक आगे नहीं बढ़ता जबतक यूपी तरक्की न करे। और आने वाले वर्षों में योगी आदित्यनाथ के कंधों पर इसी जिम्मेदारी का बोझ रहने वाला है।
जब लोगों के जीवन में कोई प्रत्यक्ष सुधार न होने के कारण सालाना प्रति व्यक्ति आय 2% या उससे कम बढ़ने लगी तो भाग्य पर भरोसा करने वाली सदियों पुरानी भारतीय सोच हावी होती गई। आगे चलकर लोग अपनी जाति के हिसाब से वोट करने लगे। लेकिन सुधारों ने मतदाताओं को दिखाया कि बेहतर शासन और तेज विकास उन्हें आर्थिक खुशहाली प्रदान कर किस्मत को बदल सकता है। इसके चलते मतदाताओं के बीच आकांक्षाओं में बढ़ोतरी हुई। लोगों में उस धारणा को बल मिला कि बेहतर शासन और विकास करने वाली सरकारों को दोबारा मौका दिया जाएगा। बाद में इस अवधारणा को समर्थन भी मिला।
उदाहरण के तौर पर, मतदाताओं ने 2009 में यूपीए सरकार को दोबारा सत्ता सौंपी लेकिन 2014 में उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया। उन्होंने भाजपा को कमान सौंपी और 2019 में सत्ता में वापसी भी सुनिश्चित की। राज्य स्तर पर आकांक्षी जनता ने ओडिशा, बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करने वाली सरकारों की कई बार सत्ता में वापसी कराई। वहीं राजस्थान, पंजाब, तमिलनाडु में एक कार्यकाल के बाद बेहतर प्रदर्शन न करने पर सरकारें बदल गईं। यूपी में भी ऐसा होता था लेकिन इस बार जनता ने दोबारा योगी सरकार को सत्ता सौंपी है।
काम नहीं आया एमवाई समीकरण
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हाल की जीत को एक व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। जो लोग पुरानी तरह से सोचते थे वे मानकर चल रहे थे कि नतीजे एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण और दलित वोट पर निर्भर करेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यूपी के इतिहास में पहली बार किसी सीएम ने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद दोबारा सत्ता संभाली। आदित्यनाथ की वापसी न तो हिंदुत्व की राजनीति की सफलता है और न ही एम-वाई समीकरण की विफलता का प्रतीक है। इसकी बजाय नतीजों का कारण कानून-व्यवस्था को बेहतर तरीके से संभालना, कोरोना की लहरों के दौरान संक्रमण के स्तर को कम रखने के सफल प्रयास, टीकाकरण में तेजी से प्रगति और विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से लाभ का कुशल और प्रभावी वितरण में छिपा है।
2027 में योगी को लौटना है तो…
लेकिन अगर योगी आदित्यनाथ को 2027 में फिर से सत्ता में लौटना है, तो उनका मूल्यांकन पिछले पांच वर्षों में उन्होंने जो कुछ किया है उससे नहीं बल्कि अगले पांच वर्षों में वह जो करेंगे उसके आधार पर किया जाएगा। उम्मीद की जा सकती है कि कोरोना महामारी के असर से उबरते हुए तरक्की की राह पर प्रदेश बढ़ेगा। यूपी में यह विशेष रूप से मायने रखता है जो प्रति व्यक्ति नेट स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (NSDP) के मामले में भारत का दूसरा सबसे गरीब राज्य बना हुआ है। 2019-20 में इसकी सालाना प्रति व्यक्ति एनएसडीपी 65,700 रुपये थी जो राष्ट्रीय औसत 1,35,625 रुपये से आधे से भी कम थी।
2017-18 से 2019-20 तक तीन वर्षों के दौरान यूपी में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) केवल 4.9 प्रतिशत की औसत दर से बढ़ा। यूपी में जीवन स्तर और राष्ट्रीय औसत के बीच खाई को पाटने के लिए इस विकास दर में काफी तेजी लानी होगी। यूपी में GSDP को 2019-20 में 238 अरब डॉलर से 2026-27 तक कम से कम 350 अरब डॉलर तक पहुंचना चाहिए। इसके लिए औसतन सालाना ग्रोथ रेड 8 प्रतिशत की जरूरत होगी।
यूपी के सामने क्या विकल्प
लोगों को उच्च जीवन स्तर प्रदान करने के साथ ही इस ग्रोथ को हासिल करने के लिए यूपी को अपने 90 मिलियन से ज्यादा वर्करों के बेहद कम उपयोग किए गए संसाधन का लाभ उठाना चाहिए। इसे लचीला श्रम और भूमि बाजार बनाना चाहिए और राज्य में व्यापार के अनुकूल वातावरण पैदा करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सीएम के तौर पर कार्यकाल के दौरान गुजरात के अनुभव से यूपी सबक ले सकता है।
मोदी से सीख सकते हैं योगी
औद्योगीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिए मोदी ने जिस एक महत्वपूर्ण माध्यम का इस्तेमाल किया, वह था विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ), जिसमें उन्होंने भारत में कहीं और की तुलना में ज्यादा लचीला लेबर मार्केट तैयार किया। 2004 की शुरुआत में, उन्होंने इन क्षेत्रों में सभी आकार के उद्यमों को औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के तहत प्रतिबंधों से फ्री कर दिया। जोन्स ने जमीन, इन्फ्रास्ट्रक्चर और 24×7 बिजली आपूर्ति की समस्या को दूर कर दिया। जबकि दूसरी जगहों पर ऐसी समस्याएं आ रही थीं। एक स्टडी के अनुसार, 2006-16 के दौरान गुजरात के सेज की देशव्यापी SEZ एक्सपोर्ट में 47 प्रतिशत हिस्सेदारी थी।
इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड ने 2020 में IDA 1947 की जगह ली। इसके तहत राज्य सभी प्रकार के उद्यमों को कर्मचारियों को काम पर रखने और निकालने का अधिकार प्रदान करने के लिए स्वतंत्र हैं। इस एक सुधार को लागू करने से उत्तर प्रदेश श्रम प्रधान क्षेत्रों में बड़े उद्यमों के लिए एक आकर्षक डेस्टिनेशन बन जाएगा। SEZ बनने से जमीन, 24 घंटे बिजली और वर्करों को सस्ती दर पर मेडिकल सुविधाएं टियर- और टियर-3 शहरों में दी जा सकती हैं। इससे उद्यमों को सस्ते वर्कर मिल सकते हैं और यूपी श्रम साध्य विनिर्माण के एक प्रमुख निर्यात केंद्र में बदल सकता है।
यूपी सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रदेश है। भारत सहित केवल चार देशों की आबादी इससे ज्यादा है। ऐसे में भारत तब तक आगे नहीं बढ़ता जबतक यूपी तरक्की न करे। और आने वाले वर्षों में योगी आदित्यनाथ के कंधों पर इसी जिम्मेदारी का बोझ रहने वाला है।