पिता मजदूर, कच्चा मकान, पेट पालने के लिए सब्जी ठेला लगाया… नौ बार असफल होने के बाद जज बने शिवाकांत ऐसी है कहानी

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पिता मजदूर, कच्चा मकान, पेट पालने के लिए सब्जी ठेला लगाया… नौ बार असफल होने के बाद जज बने शिवाकांत ऐसी है कहानी

पिता मजदूर, कच्चा मकान, पेट पालने के लिए सब्जी ठेला लगाया… नौ बार असफल होने के बाद जज बने शिवाकांत ऐसी है कहानी

मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती हैं। इस लाइन को सतना के एक युवक ने चरितार्थ कर दिखाया है। कड़ी संघर्ष के बाद सब्जी का ठेला लगाने वाले एक युवक ने सिविल जज की परीक्षा में सफलता हासिल की है। सतना जिले के अमरपाटन के रहने वाले शिवाकांत कुशवाहा को दसवीं बार में सफलता हाथ लगी है। परिणाम आने के बाद परिवार में खुशी की लहर है। इसके बाद बधाई देने वाले लोगों का तांता लग गया है। ओबीसी वर्ग से प्रदेश में शिवाकांत कुशवाहा ने दूसरा स्थान प्राप्त किया है। बड़ी मेहनत और कठिन परिश्रम के बल पर शिवाकांत कुशवाहा यह मुकाम हासिल किया है। अपनी सफलता से पूरे प्रदेश में जिले का नाम रोशन किया है। आज भी शिवाकांत कुशवाहा का परिवार कच्चा मकान में रहता है।

संघर्ष की भट्टी से तपकर निकला है यह ‘हीरा’

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पिता भी करते थे मजदूरी

सतना जिले के अमरपाटन में गरीब परिवार में पैदा हुए शिवाकांत कुशवाहा के पिता कुंजी लाल कुशवाहा मजदूरी कर पूरे परिवार को पालते थे। मां भी बेटों को पालने के लिए दूसरे के यहां काम करती थी। मां का निधन हो गया है। तीन भाई एक बहन में शिवाकांत कुशवाहा दूसरे नंबर पर हैं। बचपन से ही पढ़ाई में लगन थी लेकिन घर की दयनीय स्थिति को देखते हुए सब्जी का ठेला लगाना पड़ा। सब्जी बेचते हुए भी शिवाकांत कुशवाहा ने पढ़ाई नहीं छोड़ी।

नौ कोशिशें असफल, 10वीं बार में सफलता मिली

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शिवाकांत कुशवाहा ने 12वीं तक की पढ़ाई लिखाई अमरपाटन स्थित शासकीय स्कूल से की है। इसके बाद रीवा के टीआ एस कॉलेज यानी कि ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय LLB करने के बाद कोर्ट में प्रैक्टिस की। साथ ही साथ सिविल जज की तैयारी कर रहे थे। नौ बार शिवाकांत कुशवाहा को असफलता हाथ लगी लेकिन हार नहीं मानी। 10वीं कोशिश में शिवाकांत कुशवाहा को सफलता हाथ लगी है। ओबीसी वर्ग में द्वितीय स्थान प्राप्त किया है।

सब्जी और गन्ने का ठेला लगाया

शिवाकांत कुशवाहा ने बताया कि मेरे घर की हालत अच्छी नहीं थी। मेरे माता पिता मजदूरी करते थे और सब्जी बेचा करते थे। सब्जी बेचकर जो पैसे मिलते थे, उससे शाम को घर में राशन लाया करते थे। पिता जी राशन लाते थे, तब घर का चूल्हा जलता था। शिवाकांत कुशवाहा ने कहा कि मैं प्रतिदिन राशन लेने जाता था। एक दिन राशन लेने गया, तभी मौसम खराब हुआ। राशन लेकर लौटते वक्त मैं पानी में गिर गया। इस दौरान मेरे सिर में चोट लग गई। मैं बेहोश हो गया। इसके बाद घर लोग मुझे लाए। उसी वक्त मुझे लगा कि पढ़ लिखकर कुछ बन जाऊं और घर की गरीबी दूर कर दूं।

मां का सपना था बेटा जज बने

शिवाकांत की मां शकुन बाई कुशवाहा, जिन्होंने मजदूरी और सब्जी का ठेला लगाकर परिवार का भरण पोषण किया। कैंसर से साल 2013 में मां का निधन हो गया है। शिवाकांत ने बताया कि मां का सपना था कि मेरा बेटा जज बने। उसके जीते जी मैं नहीं पूरा कर पाया। अब मेरी यह उपलब्धि मां को समर्पित है। उन्होंने कहा कि इस उपलब्धि में बड़े भाई शिव लाल कुशवाहा, बहन लक्ष्मी कुशवाहा और छोटा भाई मनीष कुशवाहा का भी साथ रहा है। उनके बिना सफलता हासिल नहीं होती।

20 घंटे तक पढ़ाई की

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शिवाकांत कुशवाहा की पत्नी मधु कुशवाहा पेशे से प्राइवेट स्कूल में टीचर है। वह बताती हैं कि मेरे पति 24 घंटे में 20 घंटे पढ़ाई करते थे। पढ़ाई करने के लिए दूसरे घर चले जाते थे। पहले तो मैं मदद नहीं करती थी लेकिन जब वह मेंस पेपर देकर कॉपी लेकर आते थे। उनकी राइटिंग इतनी अच्छी नहीं थी, मैं कॉपी चेक करती थी और जहां गलती होती थी, वहां गोला लगा देती थी।

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