राजस्थान से गायब हो रहे हैं बाघ | Tigers are disappearing from Rajasthan | Patrika News h3>
प्रदेश में पर्यटन से हो रही आय के आगे बाघों की सुरक्षा की चिंता नदारद है। सरकार को टाइगर दिखाने के लिए टूरिस्ट चाहिए लेकिन टाइगर बचाने के जतन कहीं नजर नहीं आते। बाघों का कुनबा बढऩे की भले ही वन विभाग खुशफहमी पाले दूसरा पहलू यह है कि रणथम्भौर के जंगलों से पिछले एक दशक में लगभग 30 बाघ लापता हो चुके हैं। पिछले सिर्फ तीन वर्ष में ही 13 बाघ गायब हैं।
रणथम्भौर में अब तक पिछले सात सालों में 88 वन्यजीवों के शिकार के मामले सामने आ चुके हैं। बाघों की मॉनिटरिंग व ट्रैकिंग के लिए 60 करोड़ का ई-सर्विलांस सिस्टम लगाया है लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि दो संवेदनशील रेंज में टावर ही नहीं है और वहीं बाघों के लापता होने या शिकार के मामले सामने आए हैं।
इसकी गंभीरता को देखते हुए अब उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने दखल देकर दो अलग-अलग जांच कमेटियों बनाई हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में टाइगर के लम्बे समय से लापता होने का सीधा सा मतलब है कि उन्हें मारा गया है।
वन विभाग डाल रहा पर्दा
वन विभाग बाघों के कुनबा बढऩे के पीछे अपनी नाकामी को छुपाने का प्रयास कर रहा है। इसे लेकर वन विभाग लगातार सवालों के घेरे में है। रणथम्भौर में बाघों की मॉनिटरिंग व ट्रैकिंग के लिए ई-सर्विलांस सिस्टम पर साठ करोड़ खर्च किए गए इसके बादजूद बाघों का गायब होना चौंकाता है।
चार रेंज में टावर, दो में नही
रणथम्भौर में 60 करोड़ का ई सर्विलांस सिस्टम होने के बाद भी फलौदी व बालेर रेंज में कैमरा टावर नहीं लगे हैं। इन्हीं रेंज में सबसे अधिक शिकार व बाघों के लापता होने के मामले सामने आते हैं। ऐसे में वन्यजीवों की सही निगरानी व्यवस्था पर सवाल उठते हैं। वर्तमान में यहां चार रेंज में ही कैमरा टावर लगे हैं। इसके अलावा वन रक्षकों के स्वीकृत करीब 150 पद में से आधे रिक्त हैं। छोटे कार्मिकों का दर्द है कि विभाग और उच्च अधिकारी परेशानी को जानते हुए भी कुछ नहीं करते।
दूसरे जंगलों में जा सकते हैं बाघ-वन विभाग
वन विभाग का मानना है कि रणथम्भौर में वर्तमान में क्षमता से अधिक बाघ-बाघिन हैं। ऐसे में एकलजीवी प्रकृति के ये प्राणी अपने क्षेत्र की तलाश में सटे हुए करौली के कैलादेवी, धौलपुर, बूंदी व मध्यप्रदेश के जंगलों में भी चले जाते हैं। ऐसा पहले भी हुआ है। हालांकि पूर्व में मध्य-प्रदेश के जंगलों में रणथम्भौर के बाघों की तलाश की गई लेकिन सफलता नहीं मिली।
तीन साल ये हुए हैं लापता
वन विभाग के अनुसार 2019 से जनवरी 2022 तक रणथम्भौर से 13 बाघ-बाघिन लापता हुए हैं। इनमें नौ बाघ टी.47, टी.42, टी.72, टी 62, टी 95, टी 6, टी 23 , टी126, टी 20, टी 64 है। इसके अलावा चार बाघिन टी.92, टी 73, टी 97 व टी 100 शामिल है। इसके अलावा वर्ष 2019 से पहले यानी पिछले दस साल में करीब तीस बाघ लापता हुए हैं।
दो कमेटियां करेंगी जांच
उच्च न्यायालय लापता बाघों की जांच के लिए दो वकीलों की कमेटी बनाई है। इसमें अधिवक्ता अभिषेक शर्मा और महिला वकील सुदेश कसाना शामिल हैं। इसी तरह एनटीसीए ने दो समस्यीय कमेटी बनाई है। इसमें एनटीसीए के डीआईजी शिवपाल सिंह और वाइलड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो के ज्वाइंट डायरेक्टर एचवी गिरिशा शामिल हैं।
रणथम्भौर के बोलते आंकड़े ….
1734 वर्ग किमी है रणथम्भौर अभयारण्य क्षेत्र
80 से अधिक बाघ-बाघिन वर्तमान में मौजूद
30 से अधिक बाघ लापता हुए एक दशक में
13 बाघ लापता हुए पिछले तीन साल में
3 माह तक कोई बाघ ट्रैक नहीं होता है तो उसे लापता मान लेते हैं
42 वयस्क बाघ ही रह सकते हैं अभयारण्य में
55 से अधिक वयस्क बाघ-बाघिन का हो रहा विचरण
क्षमता से अधिक हैं बाघ बाघिन
सवाईमाधोपुर में रणथम्भौर बाघ परियोजना के उपवन संरक्षक महेन्द्र शर्मा कहते हैं कि रणथम्भौर में फिलहाल क्षमता से अधिक बाघ-बाघिन हैं। टेरेटरी की तलाश में कई बार अन्य जंगलों का ओर रुख कर लेते हैं। उनकी तलाश की जा रही है। इस मामले में एनटीसीए और हाईकोर्ट की ओर से दो-दो लोगों की कमेटी बनाई गई है। ये टीम जल्द ही रणथम्भौर आ सकती है।
प्रदेश प्रभारी पीपुल फॉर एनीमल्स बाबूलाल जाजू इसे गंभीर मामला मानते हैं। करोड़ो खर्च करने पर भी बाघों का सुराग नहीं मिल रहा है तो यह वनविभाग की नाकामी है। मध्यप्रदेश के वनअधिकारियों से समन्वय बनाकर बाघों की तलाश करनी चाहिए। क्षमता से अधिक बाघ हैं तो इनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जल्द ही कुछ बाघों को अन्यत्र शिफ्ट करना चाहिए।
प्रदेश में पर्यटन से हो रही आय के आगे बाघों की सुरक्षा की चिंता नदारद है। सरकार को टाइगर दिखाने के लिए टूरिस्ट चाहिए लेकिन टाइगर बचाने के जतन कहीं नजर नहीं आते। बाघों का कुनबा बढऩे की भले ही वन विभाग खुशफहमी पाले दूसरा पहलू यह है कि रणथम्भौर के जंगलों से पिछले एक दशक में लगभग 30 बाघ लापता हो चुके हैं। पिछले सिर्फ तीन वर्ष में ही 13 बाघ गायब हैं।
रणथम्भौर में अब तक पिछले सात सालों में 88 वन्यजीवों के शिकार के मामले सामने आ चुके हैं। बाघों की मॉनिटरिंग व ट्रैकिंग के लिए 60 करोड़ का ई-सर्विलांस सिस्टम लगाया है लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि दो संवेदनशील रेंज में टावर ही नहीं है और वहीं बाघों के लापता होने या शिकार के मामले सामने आए हैं।
इसकी गंभीरता को देखते हुए अब उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने दखल देकर दो अलग-अलग जांच कमेटियों बनाई हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में टाइगर के लम्बे समय से लापता होने का सीधा सा मतलब है कि उन्हें मारा गया है।
वन विभाग बाघों के कुनबा बढऩे के पीछे अपनी नाकामी को छुपाने का प्रयास कर रहा है। इसे लेकर वन विभाग लगातार सवालों के घेरे में है। रणथम्भौर में बाघों की मॉनिटरिंग व ट्रैकिंग के लिए ई-सर्विलांस सिस्टम पर साठ करोड़ खर्च किए गए इसके बादजूद बाघों का गायब होना चौंकाता है।
चार रेंज में टावर, दो में नही
रणथम्भौर में 60 करोड़ का ई सर्विलांस सिस्टम होने के बाद भी फलौदी व बालेर रेंज में कैमरा टावर नहीं लगे हैं। इन्हीं रेंज में सबसे अधिक शिकार व बाघों के लापता होने के मामले सामने आते हैं। ऐसे में वन्यजीवों की सही निगरानी व्यवस्था पर सवाल उठते हैं। वर्तमान में यहां चार रेंज में ही कैमरा टावर लगे हैं। इसके अलावा वन रक्षकों के स्वीकृत करीब 150 पद में से आधे रिक्त हैं। छोटे कार्मिकों का दर्द है कि विभाग और उच्च अधिकारी परेशानी को जानते हुए भी कुछ नहीं करते।
दूसरे जंगलों में जा सकते हैं बाघ-वन विभाग
वन विभाग का मानना है कि रणथम्भौर में वर्तमान में क्षमता से अधिक बाघ-बाघिन हैं। ऐसे में एकलजीवी प्रकृति के ये प्राणी अपने क्षेत्र की तलाश में सटे हुए करौली के कैलादेवी, धौलपुर, बूंदी व मध्यप्रदेश के जंगलों में भी चले जाते हैं। ऐसा पहले भी हुआ है। हालांकि पूर्व में मध्य-प्रदेश के जंगलों में रणथम्भौर के बाघों की तलाश की गई लेकिन सफलता नहीं मिली।
वन विभाग के अनुसार 2019 से जनवरी 2022 तक रणथम्भौर से 13 बाघ-बाघिन लापता हुए हैं। इनमें नौ बाघ टी.47, टी.42, टी.72, टी 62, टी 95, टी 6, टी 23 , टी126, टी 20, टी 64 है। इसके अलावा चार बाघिन टी.92, टी 73, टी 97 व टी 100 शामिल है। इसके अलावा वर्ष 2019 से पहले यानी पिछले दस साल में करीब तीस बाघ लापता हुए हैं।
दो कमेटियां करेंगी जांच
उच्च न्यायालय लापता बाघों की जांच के लिए दो वकीलों की कमेटी बनाई है। इसमें अधिवक्ता अभिषेक शर्मा और महिला वकील सुदेश कसाना शामिल हैं। इसी तरह एनटीसीए ने दो समस्यीय कमेटी बनाई है। इसमें एनटीसीए के डीआईजी शिवपाल सिंह और वाइलड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो के ज्वाइंट डायरेक्टर एचवी गिरिशा शामिल हैं।
रणथम्भौर के बोलते आंकड़े ….
1734 वर्ग किमी है रणथम्भौर अभयारण्य क्षेत्र
80 से अधिक बाघ-बाघिन वर्तमान में मौजूद
30 से अधिक बाघ लापता हुए एक दशक में
13 बाघ लापता हुए पिछले तीन साल में
3 माह तक कोई बाघ ट्रैक नहीं होता है तो उसे लापता मान लेते हैं
42 वयस्क बाघ ही रह सकते हैं अभयारण्य में
55 से अधिक वयस्क बाघ-बाघिन का हो रहा विचरण
क्षमता से अधिक हैं बाघ बाघिन
सवाईमाधोपुर में रणथम्भौर बाघ परियोजना के उपवन संरक्षक महेन्द्र शर्मा कहते हैं कि रणथम्भौर में फिलहाल क्षमता से अधिक बाघ-बाघिन हैं। टेरेटरी की तलाश में कई बार अन्य जंगलों का ओर रुख कर लेते हैं। उनकी तलाश की जा रही है। इस मामले में एनटीसीए और हाईकोर्ट की ओर से दो-दो लोगों की कमेटी बनाई गई है। ये टीम जल्द ही रणथम्भौर आ सकती है।
प्रदेश प्रभारी पीपुल फॉर एनीमल्स बाबूलाल जाजू इसे गंभीर मामला मानते हैं। करोड़ो खर्च करने पर भी बाघों का सुराग नहीं मिल रहा है तो यह वनविभाग की नाकामी है। मध्यप्रदेश के वनअधिकारियों से समन्वय बनाकर बाघों की तलाश करनी चाहिए। क्षमता से अधिक बाघ हैं तो इनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जल्द ही कुछ बाघों को अन्यत्र शिफ्ट करना चाहिए।