यूपी की राजनीति का ‘हॉट केक’ बने आजम खान! अखिलेश से अनबन के बीच रामपुर के खान की वैल्यू हाई क्यों हो गई? h3>
लखनऊ: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का नाम लेने पर कुछ मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) परिवार के अलावा कुछ गिने-चुने चेहरों के नाम ही जेहन में आते हैं। इनमें आजम खान (Azam Khan) भी हैं। पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शुमार आजम असल में सपा की साइकल के मुस्लिम झंडाबरदार भी रहे हैं। बदलते सियासी माहौल में अभी आजम खान सूबे की राजनीति के हॉट केक हो चुके हैं। अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के साथ अनबन की खबरों के बीच आजम खान से जेल में मिलने के लिए नेताओं का तांता लगा हुआ है। दरअसल, सूबे की सियासत में आजम की पैठ अभी भी है। और करीब 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटों पर फोकस के साथ ही तमाम सियासी मायने भी निकाले जाने लगे हैं।
आजम खान की गिनती उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेताओं में होती रही है। प्रदेश के मुस्लिम वोट बैंक पर भी आजम का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता रहा है। उनके मीडिया प्रभारी फसाहत अली खान शानू ने पिछले दिनों ऐसी बात कही, जिसके बाद आजम और अखिलेश के बीच अनबन की बात को बल मिला। आरोप लगाया कि अखिलेश खुद नहीं चाहते हैं कि आजम खान जेल से बाहर आएं। शानू ने कहा कि अब्दुल ही दरी बिछाएगा, अब्दुल ही वोट देगा और अब्दुल ही जेल भी जाएगा। अनबन की बात की दावेदारी शिवपाल की आजम से मुलाकात के बाद और भी बढ़ गई, जिसमें उन्होंने जेल से बाहर आने के लिए सपा की तरफ से मदद नहीं किए जाने की बात कही।
दिलचस्प बात यह रही कि आजम खान से मिलने के लिए समाजवादी पार्टी की तरफ से प्रतिनिधिमंडल गया। सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा के नेतृत्व में गए इस प्रतिनिधिमंडल की आजम खान से मुलाकात नहीं हो सकी। जेल प्रशासन की तरफ से तबीयत खराब होने का हवाला दिया गया। काफी देर इंतजार के बाद प्रतिनिधिमंडल को बेरंग ही लौटना पड़ा। लेकिन इस बीच शिवपाल सिंह यादव, राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी, कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम, औवैसी के पार्टी AIMIM के नेताओं के साथ आजम की जेल में मुलाकात होती रही। और तो और सुगबुगाहट इस बात की भी है कि भारतीय जनता पार्टी की तरफ से सांसद बृजभूषण शरण सिंह भी आजम से मिलने जा सकते हैं।
‘हर पार्टी आजम को अपने पाले में करने की फिराक में’
यूपी की राजनीति में आजम खान का कद बड़ा है। वह लंबे समय से रामपुर जिले की राजनीति में सक्रिय हैं। वह सांसद और विधायक भी रहे हैं। उनकी पत्नी तंजीन फातिमा और बेटा अब्दु्ल्ला आजम भी सियसत में सक्रिय हैं। इस चुनाव में आजम और उनके बेटे दोनों ही रामपुर और स्वार सीट से विधानसभा चुनाव जीतकर आए हैं। जमीन घोटाले सहित अन्य मामलों में करीब ढाई साल से जेल में बंद आजम खान के खेमे की तरफ से नाराजगी इस बात को लेकर जाहिर की जा रही है कि सपा और मुलायम फैमिली की तरफ से उन्हें जेल से बाहर निकालने की खास कोशिश नहीं की गई। पिछले साल कोरोना की दूसरी लहर के दौरान आजम संक्रमित हो गए थे और उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई थी।
सीतापुर जेल में आजम खान से मिलने पहुंचे वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम
सीतापुर जेल में आजम से मुलाकात करके निकले शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश और सपा पर आजम की मदद नहीं करने का आरोप तो लगाया ही। साथ ही शिवपाल ने बड़े भाई और सपा पितामह मुलायम सिंह यादव पर भी पहली बार निशाना साधा। शिवपाल ने कहा कि आजम खान की रिहाई को लेकर नेताजी (मुलायम) ने संसद में आवाज नहीं उठाई। वह धरने पर भी बैठ सकते थे। जयंत चौधरी और शिवपाल की मुलाकात के बारे में अखिलेश ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि उन्होंने किसी को नहीं भेजा। अखिलेश ने कहा- मुझे नहीं पता कि आजम से मिलने कौन-कौन आया था।
…तो क्या सच में बीजेपी से हुई सपा की डील?
शिवपाल के बयान के बाद कांग्रेस पार्टी के नेता ने तो आजम खान के खिलाफ मुलायम परिवार पर और भी संगीन आरोप लगा दिया। कांग्रेस अल्पसंख्यक मोर्चा यूपी के अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने यह तक कह दिया कि मुलायम परिवार भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है, इसलिए आजम खान कि रिहाई की कोशिश नहीं कर रहा है। ऐसा करने से पूरा परिवार जेल की हवा खा सकता है। आलम ने आरोप लगाया कि रामगोपाल यादव को नोएडा विकास प्राधिकरण मामले में जेल जाने से बचाने के एवज में परिवार की बीजेपी से डील हुई है और आजम को जेल भिजवाया गया है।
मुलायम की तरह अखिलेश नहीं ले रहे स्टैंड?
इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में 34 मुस्लिम विधायक जीतकर पहुंचे हैं। यह संख्या पिछली बार से 10 अधिक है। खास बात है कि सभी मुस्लिम विधायक समाजवादी पार्टी और गठबंधन में साथ में चुनाव लड़ी RLD और सुभासपा पार्टी के ही हैं। धार्मिक गोलबंदी के चुनाव में मुस्लिमों ने एकतरफा सपा को वोट दिया। सपा के बढ़े हुए वोटिंग ट्रेंड में मुसलमान भी बड़ा फैक्टर रहे हैं। बीजेपी के लिए भी यह चिंता का विषय है। मुस्लिमों ने भी अखिलेश से भी उनकी आवाज बनने की उम्मीद पाली हुई है। लेकिन पिता मुलायम की तरह अखिलेश खुलकर स्टैंड नहीं लेते नजर आ रहे हैं, जिन पर बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कारसेवकों पर गोली तक चलवाने का आरोप है।
मुस्लिम सियासत का झंडाबरदार कौन?
आजम खान के अलावा अगर प्रदेश की सियासत में सक्रिय मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर भी नजर डालें, तो संभल के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क भी सपा को लेकर ऐसे बयान दे चुके हैं, जो अखिलेश की परेशानी बढ़ाने के लिए काफी है। वहीं मुरादाबाद से सांसद सैयद तुफैल उर्फ एस. टी. हसन हैं। इन दोनों नेताओं का प्रभाव केवल इनके इलाके और जिले तक ही सीमित है। दिग्गज नेता अहमद हसन के निधन के बाद मुस्लिम लीडरशिप खाली नजर आ रही है।
अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे बाहुबलियों पर योगी सरकार का बुलडोजर चलने के बाद ताकत में कमी आई है। हालांकि अंसारी फैमिली में अफजाल अंसारी सांसद हैं, जबकि मुख्तार के बेटे अब्बास और बड़े भाई सिगबुतल्लाह के बेटे मन्नू अंसारी इस बार विधायक चुने गए हैं। पूर्व विधायक इमरान मसूद और पीस पार्टी बनाकर सियासक कर रहे डॉक्टर अयूब के सितारे भी गर्दिश में ही नजर आ रहे हैं। वहीं कैराना विधायक नाहिद हसन जेल में हैं।
143 सीटों पर मुस्लिम वोटरों का असर
यूपी विधानसभा की 403 सीटों में से करीब एक तिहाई यानी 143 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों का असर है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों के अलावा पश्चिमी यूपी में मुसलमान की बड़ी मौजूदगी है। सिर्फ पश्चिमी यूपी में 26.21 फीसदी मुसलमान हैं। पश्चिमी यूपी में 26 जिले आते हैं, जहां विधानसभा की 136 सीटें हैं। जयंत भी आजम खान के परिवार से मिलकर वेस्ट में मुस्लिम वोटर्स को साधना चाहते हैं। आजाद समाज पार्टी भी आजम पर डोरे डालने में लगी है।
उत्तर प्रदेश की सियासत, मुसलमानों का प्रतिनिधित्व, अखिलेश-मुलायम से नाराजगी की इन तमाम सियासी गणित के बीच मामला दिलचस्प हो गया है। आजम के मीडिया सलाहकार शानू ने ईद तक आजम के बाहर आने की उम्मीद जाहिर कर दी है। लेकिन ऐसी उम्मीद सभी दलों के लिए है, जिनके लिए आजम खान इस वक्त हॉट केक बन गए हैं, जिसे हर कोई लपक लेना चाहता है।
दिलचस्प बात यह रही कि आजम खान से मिलने के लिए समाजवादी पार्टी की तरफ से प्रतिनिधिमंडल गया। सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा के नेतृत्व में गए इस प्रतिनिधिमंडल की आजम खान से मुलाकात नहीं हो सकी। जेल प्रशासन की तरफ से तबीयत खराब होने का हवाला दिया गया। काफी देर इंतजार के बाद प्रतिनिधिमंडल को बेरंग ही लौटना पड़ा। लेकिन इस बीच शिवपाल सिंह यादव, राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी, कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम, औवैसी के पार्टी AIMIM के नेताओं के साथ आजम की जेल में मुलाकात होती रही। और तो और सुगबुगाहट इस बात की भी है कि भारतीय जनता पार्टी की तरफ से सांसद बृजभूषण शरण सिंह भी आजम से मिलने जा सकते हैं।
‘हर पार्टी आजम को अपने पाले में करने की फिराक में’
यूपी की राजनीति में आजम खान का कद बड़ा है। वह लंबे समय से रामपुर जिले की राजनीति में सक्रिय हैं। वह सांसद और विधायक भी रहे हैं। उनकी पत्नी तंजीन फातिमा और बेटा अब्दु्ल्ला आजम भी सियसत में सक्रिय हैं। इस चुनाव में आजम और उनके बेटे दोनों ही रामपुर और स्वार सीट से विधानसभा चुनाव जीतकर आए हैं। जमीन घोटाले सहित अन्य मामलों में करीब ढाई साल से जेल में बंद आजम खान के खेमे की तरफ से नाराजगी इस बात को लेकर जाहिर की जा रही है कि सपा और मुलायम फैमिली की तरफ से उन्हें जेल से बाहर निकालने की खास कोशिश नहीं की गई। पिछले साल कोरोना की दूसरी लहर के दौरान आजम संक्रमित हो गए थे और उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई थी।
सीतापुर जेल में आजम खान से मिलने पहुंचे वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम
सीतापुर जेल में आजम से मुलाकात करके निकले शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश और सपा पर आजम की मदद नहीं करने का आरोप तो लगाया ही। साथ ही शिवपाल ने बड़े भाई और सपा पितामह मुलायम सिंह यादव पर भी पहली बार निशाना साधा। शिवपाल ने कहा कि आजम खान की रिहाई को लेकर नेताजी (मुलायम) ने संसद में आवाज नहीं उठाई। वह धरने पर भी बैठ सकते थे। जयंत चौधरी और शिवपाल की मुलाकात के बारे में अखिलेश ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि उन्होंने किसी को नहीं भेजा। अखिलेश ने कहा- मुझे नहीं पता कि आजम से मिलने कौन-कौन आया था।
…तो क्या सच में बीजेपी से हुई सपा की डील?
शिवपाल के बयान के बाद कांग्रेस पार्टी के नेता ने तो आजम खान के खिलाफ मुलायम परिवार पर और भी संगीन आरोप लगा दिया। कांग्रेस अल्पसंख्यक मोर्चा यूपी के अध्यक्ष शाहनवाज आलम ने यह तक कह दिया कि मुलायम परिवार भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है, इसलिए आजम खान कि रिहाई की कोशिश नहीं कर रहा है। ऐसा करने से पूरा परिवार जेल की हवा खा सकता है। आलम ने आरोप लगाया कि रामगोपाल यादव को नोएडा विकास प्राधिकरण मामले में जेल जाने से बचाने के एवज में परिवार की बीजेपी से डील हुई है और आजम को जेल भिजवाया गया है।
मुलायम की तरह अखिलेश नहीं ले रहे स्टैंड?
इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में 34 मुस्लिम विधायक जीतकर पहुंचे हैं। यह संख्या पिछली बार से 10 अधिक है। खास बात है कि सभी मुस्लिम विधायक समाजवादी पार्टी और गठबंधन में साथ में चुनाव लड़ी RLD और सुभासपा पार्टी के ही हैं। धार्मिक गोलबंदी के चुनाव में मुस्लिमों ने एकतरफा सपा को वोट दिया। सपा के बढ़े हुए वोटिंग ट्रेंड में मुसलमान भी बड़ा फैक्टर रहे हैं। बीजेपी के लिए भी यह चिंता का विषय है। मुस्लिमों ने भी अखिलेश से भी उनकी आवाज बनने की उम्मीद पाली हुई है। लेकिन पिता मुलायम की तरह अखिलेश खुलकर स्टैंड नहीं लेते नजर आ रहे हैं, जिन पर बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कारसेवकों पर गोली तक चलवाने का आरोप है।
मुस्लिम सियासत का झंडाबरदार कौन?
आजम खान के अलावा अगर प्रदेश की सियासत में सक्रिय मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर भी नजर डालें, तो संभल के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क भी सपा को लेकर ऐसे बयान दे चुके हैं, जो अखिलेश की परेशानी बढ़ाने के लिए काफी है। वहीं मुरादाबाद से सांसद सैयद तुफैल उर्फ एस. टी. हसन हैं। इन दोनों नेताओं का प्रभाव केवल इनके इलाके और जिले तक ही सीमित है। दिग्गज नेता अहमद हसन के निधन के बाद मुस्लिम लीडरशिप खाली नजर आ रही है।
अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे बाहुबलियों पर योगी सरकार का बुलडोजर चलने के बाद ताकत में कमी आई है। हालांकि अंसारी फैमिली में अफजाल अंसारी सांसद हैं, जबकि मुख्तार के बेटे अब्बास और बड़े भाई सिगबुतल्लाह के बेटे मन्नू अंसारी इस बार विधायक चुने गए हैं। पूर्व विधायक इमरान मसूद और पीस पार्टी बनाकर सियासक कर रहे डॉक्टर अयूब के सितारे भी गर्दिश में ही नजर आ रहे हैं। वहीं कैराना विधायक नाहिद हसन जेल में हैं।
143 सीटों पर मुस्लिम वोटरों का असर
यूपी विधानसभा की 403 सीटों में से करीब एक तिहाई यानी 143 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों का असर है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों के अलावा पश्चिमी यूपी में मुसलमान की बड़ी मौजूदगी है। सिर्फ पश्चिमी यूपी में 26.21 फीसदी मुसलमान हैं। पश्चिमी यूपी में 26 जिले आते हैं, जहां विधानसभा की 136 सीटें हैं। जयंत भी आजम खान के परिवार से मिलकर वेस्ट में मुस्लिम वोटर्स को साधना चाहते हैं। आजाद समाज पार्टी भी आजम पर डोरे डालने में लगी है।
उत्तर प्रदेश की सियासत, मुसलमानों का प्रतिनिधित्व, अखिलेश-मुलायम से नाराजगी की इन तमाम सियासी गणित के बीच मामला दिलचस्प हो गया है। आजम के मीडिया सलाहकार शानू ने ईद तक आजम के बाहर आने की उम्मीद जाहिर कर दी है। लेकिन ऐसी उम्मीद सभी दलों के लिए है, जिनके लिए आजम खान इस वक्त हॉट केक बन गए हैं, जिसे हर कोई लपक लेना चाहता है।