Children School News : बच्चे को स्कूल भेजने की जल्दी? हर मां-बाप को जरूर पढ़नी चाहिए सुप्रीम कोर्ट की यह बात

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Children School News : बच्चे को स्कूल भेजने की जल्दी? हर मां-बाप को जरूर पढ़नी चाहिए सुप्रीम कोर्ट की यह बात

Children School News : बच्चे को स्कूल भेजने की जल्दी? हर मां-बाप को जरूर पढ़नी चाहिए सुप्रीम कोर्ट की यह बात

नई दिल्ली: आजकल ऐसा ट्रेंड बन गया है कि बच्चा जैसे ही तीन साल का होता है मां-बाप उसे स्कूल भेजने की तैयारी करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं देर से स्कूल जाने के चलते बच्चा पीछे न रह जाए। झटपट उसे प्ले स्कूल भेज दिया जाता है। हालांकि 15-20 साल पहले तक बच्चे को 5-6 साल के बाद ही स्कूल भेजा जाता था। अब सुप्रीम कोर्ट ने स्कूल भेजने को लेकर मां-बाप की जल्दबाजी पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए बच्चों को बहुत कम उम्र में स्कूल नहीं भेजना चाहिए। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश ने टिप्पणी की, ‘बच्चों को स्कूल भेजने को लेकर माता-पिता एक तरह की हड़बड़ी में हैं। मां-बाप चाहते हैं कि दो साल का होते ही बच्चा स्कूल जाने लगे। यह उनके मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हो सकता।’

अभिभावकों की दलील
सुप्रीम कोर्ट अभिभावकों के एक समूह की अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें केंद्रीय विद्यालय में आगामी सत्र के लिए कक्षा 1 में एडमिशन के लिए 6 साल की न्यूनतम आयु सीमा के नियम को चुनौती दी गई है। अभिभावकों ने 11 अप्रैल को दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए दावा किया कि केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS) ने अचानक मार्च 2022 के लिए प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने से ठीक चार दिन पहले कक्षा 1 के लिए एडमिशन क्राइटीरिया 6 साल कर दी, जबकि पहले यह पांच साल थी।

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बेंच ने कहा, ‘कई अध्ययनों से पता चला है कि बच्चों को स्कूल भेजने की एक सही उम्र होती है। बच्चे के साथ जल्दी नहीं करनी चाहिए। यह समझने और पढ़ने की उसकी क्षमता को प्रभावित कर सकता है। इसका मनोवैज्ञानिक असर हो सकता है।’

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि इस केस में बिना किसी नोटिस के उम्र सीमा में बदलाव छात्रों के हित में नहीं है जिनके पास प्रवेश प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार है। यह नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम, 2009 का भी उल्लंघन है।

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सबको लगता है, मेरा बच्चा जीनियस
अभिभावकों की ओर से पेश वकील से पीठ ने कहा, ‘समस्या यह है कि हर मां-बाप को लगता है कि उनका बच्चा या बच्ची जीनियस है जो किसी भी उम्र में सीख-समझ सकता है। जरा बच्चे और उसके मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के बारे में सोचिए। किसी भी चीज को शुरू करने की एक सही उम्र होती है और इसमें स्कूल भी शामिल है। वास्तव में, कई स्टडीज यह कहती हैं कि वे बच्चे ज्यादा अच्छा करते हैं जो बहुत जल्दी स्कूल जाना शुरू नहीं करते हैं।’

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हाई कोर्ट का वो फैसला बरकरार
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 21 राज्यों ने कक्षा 1 के लिए 6+ का नियम लागू किया है और इस पॉलिसी को चुनौती नहीं दी जा सकती है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को सही मानते हुए अपील को खारिज कर दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्रीय विद्यालयों में पहली कक्षा में दाखिले की न्यूनतम उम्र छह साल करने के केंद्रीय विद्यालय संगठन के फैसले को सही ठहराया था। इस फैसले के बाद एडमिशन की राह देख रहे 5 साल के स्टूडेंट्स को अगले साल का इंतजार करना होगा।



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