देश का ऐसा गांव जहां के लोग 104 साल से दूध, दही, छाछ बेचते नहीं, बल्कि बांटते हैं | Such a village in the country where milk is not sold from 104 years | Patrika News

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देश का ऐसा गांव जहां के लोग 104 साल से दूध, दही, छाछ बेचते नहीं, बल्कि बांटते हैं | Such a village in the country where milk is not sold from 104 years | Patrika News

देश का ऐसा गांव जहां के लोग 104 साल से दूध, दही, छाछ बेचते नहीं, बल्कि बांटते हैं | Such a village in the country where milk is not sold from 104 years | Patrika News

– गांव में 1918 में हैजा फैलने पर शक्ति की स्थापना हुई थी, तब बनी ये परंपरा अब भी जारी

– यहां दूध, दही, छाछ बेचते नहीं, बाटते हैं, और बचे दूध से घी निकालते हैं ताकि मंदिर के दीप जलें और भंडारे में पूड़ियां बनें

भोपाल

Published: April 25, 2022 06:48:15 pm

बैतूल। भारतीय संस्कृति में गाय के दूध का अत्यधिक महत्व माना जाता है। गाय को देश के अधिकांश वर्ग द्वारा पूजित माने जाने के चलते इसके दूध को भी अत्यंत खास माना गया है। वर्तमान में जहां तकरीबन हर शहर में जरूरत के आधार पर दूध बेचा जाता है। वहीं देश के दिल यानि मध्यप्रदेश के बैतूल जिले से 40 किमी दूर स्थित एक गांव चुड़िया में आज भी दूध या उससे जुड़े किसी भी पदार्थ को बेचने की मनाही है।

यहां दूध नहीं बेचने का मुख्य कारण पूर्व में दिया गया एक वचन है जिसका आज भी हर ग्रामीण अक्षरत: पालन करता है। इसी के चलते अपने फायदे और नुकसान को दरकिनार करते हुए इस गांव के लोगों द्वारा दूध, दही, छाछ नहीं बेचे जाते है, बल्कि ये इसे मुफ्त में बांट देते हैं।

चुड़िया गांव में ऐसा एक दो पांच दस या 50 साल से नहीं बल्कि 104 साल से होते आ रहा है। यहां तक की गांव की नई पीढ़ी भी इस परंपरा का पूरी तरह से पालन कर रही है। यह गांव चिचोली ब्लॉक में आता है।

यदुवंशी बहुल चिड़िया गांव में करीब साढ़े तीन सौ घर हैं। वैसे तो गांव में पशुओं का उपयोग कृषि कार्य में होता है, लेकिन हर दूसरे घर में पशु हैं। इनका दूध नहीं बेचा जाता है। इसे जरूरतमंदों में बांटा जाता है।

वहीं ज्यादा दूध होने पर एकत्र कर मही ( छाछ ) बनाते हैं और उससे निकले मक्खन का घी बना लिया जाता है। इस घी को भी मुफ्त में भंडारे में पूड़ी बनाने और मंदिर में दीपक जलाने के लिए दिया जाता है। दरअसल, गांव में इस परंपरा की शुरुआत यहां के चिंधिया बाबा के कारण हुईं।

गांव में बाबा का समाधि स्थल है। लोगों की उनके प्रति जबरदस्त आस्था है। 18वीं सदी में चुड़ियां गांव में साधु बाबा का जन्म हुआ, जिनका बचपन का नाम चिंधिया यादव था। बाबा ने आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया। उनके परिवार की पांचवीं पीढ़ी गांव में समाधि स्थल पर सेवा दे रही है। चूड़िया निबासी ठाकुर नरेंद्र लिंह और साधु बाबा कौ पीढ़ी के टाटरू यादव भी बाबा के चमत्कार और उनके द्वाग़ स्थापित परंपरा की बात दुहराते हैं।

ग्रामीणों के साथ सरकारी कर्मचारी, अधिकारी तक गांव में दूध, दही मही नहीं बेचने की बात कहते हैं। इस कारण गांव में एक भी दूध डेयरी नहों है। गांव के रोजगार सहायक ऋषि सिंह इस बात की पृष्टि करते हुए कहते हैं कि गांव में रहने वाला व्यक्ति बाहर जाकर भी दूध का व्यवसाय नहीं करता है।

गांव के लोगों से लिया था बाबा ने वचन- नहीं बेचना दूध, दही, छाछ
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि 1918 में गांव में हैजा की महामारों फैल गईं थी। लोग बड़ी संख्या में हैजा का शिकार होकर मर रहे थे। ऐसी त्रासदी में ग्रामोण बाबा के पास पहुंचे, तो बाबा ने महामारी की रोकथाम के लिए मांव में शक्ति की स्थापना कर हैजा जैसी भीषण महामारी से गांव को मुक्त कराया था। आज भी यह देवों का स्थान चुड़ियां ग्राम के बीचों-बीच मंदिर के रूप में स्थापित है। शक्ति के रूप में स्थापित पत्थर पर आज भी लोग पूजा करते हैं। बाबा ने समाधि लेने के दौरान गांव वालों से कभी दूध, दहो, मही नहीं बेचने का वचन लिया था।

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