खास बातः ‘सभ्य’ कहे जाने वालों ने खोटी कर दीं खरी सी नदियां | central and state pollution control board report on rivers | Patrika News h3>
केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रपट में शहरों की बेपरवाही उजागर…> अब भी कोशिश करें अगर हम, जी उठेंगी मरी-मरी सी नदियां…>
भोपाल
Updated: April 25, 2022 01:57:26 pm
विजय चौधरी @ भोपाल
समूचे देश के शहरी क्षेत्र में इंसानी बेपरवाहियों का दर्द नदियां झेल रही हैं। शहरवालों ने नदियों को सीवरेज और कचरे का डंपिंग पाइंट तो बनाया ही है, वे उद्योग से निकलने वाले खतरनाक रासायनिक तत्वों को ठिकाने लगाने के लिए भी नदियों का आंचल मैला कर रहे हैं।
कर्मों का अक्स: देश की सबसे प्रदूषित 323 नदियों के 351 बहाव स्थान में 22 मध्यप्रदेश के
केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी रिपोर्ट में देश की सर्वाधिक प्रदूषित 323 नदियों के 351 बहाव स्थान का जिक्र है। इसमें 22 मध्यप्रदेश के हैं। प्रदूषण के लिहाज से खतरनाक 45 बहाव क्षेत्रों में से प्रदेश के चार स्थानों की बॉयोलॉजिकल ऑसीजन डिमांड (बीओडी…पानी का प्रदूषण मापने का पैमाना) 30 मिलीग्राम प्रति लीटर से भी ऊपर पहुंच गई है। यह पानी छूने लायक तक नहीं है।
रिपोर्ट से जाहिर है कि सीवरेज और औद्योगिक कचरा बहाए जाने के कारण नागदा से रामपुरा के बीच चंबल के पानी का रंग ही बदल गया है। जहां बीओडी का स्तर 80 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच चुका है, जिसे अत्यधिक खतरनाक माना जाता है। यही हाल मंडीदीप से विदिशा तक बेतवा नदी का है। इसका पानी भी प्रदूषित हो चुका है। क्षिप्रा के सिद्धनाथ घाट से त्रिवेणी संगम तक के हिस्से में बीओडी का स्तर 40 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया है। यही स्थिति इंदौर की कान्ह नदी की है। यहां कबीटखेड़ी से खजराना तक का हिस्सा भयानक दूषित पाया गया।
ये नदियां प्रदूषित मध्यप्रदेश में बहने वाली चंबल, खड़, बेतवा, क्षिप्रा, सोन, गोहद, कोलार, ताप्पी, बिछिया, चमला, छौपन, कलियासोत, कान्ह, कटनी, कुंदा मालेई, मंदाकिनी, पार्वती, नेवज, सिमरार, टमस, वैनगंगा नदी प्रदूषित है।
उद्योग बेलगाम, काबू करें सरकारें
इंदौर की नदी को उजला बनाने के लिए संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी बताते हैं कि सीवरेज तो शहरों में बनने लगे हैं और इनके कारण परेशानी
कम हो रही है। मगर उद्योग बेलगाम हैं। नदियों को सबसे बड़ा दर्द ये ही दे रहे हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हो या नगर निगम का अमला इन पर कार्रवाई करता ही नहीं।
बरसात का भी असर नहीं
नदियों के प्रदूषण को बारिश भी नही धो पा रही। रिपोर्ट के मुताबिक, 22 नदियों का पानी बरसात के बाद भी साफ नहीं हुआ। स्पष्ट है कि बहाव क्षेत्र में समस्या है, जिससे प्रदूषक तत्व नहीं मिट पा रहे हैं।
समाधान पर कोई ध्यान नहीं
औद्योगिक क्षेत्रों के लिए एलूएन्ट ट्रीटमेंट प्लांट (एटीपी) के लिए केंद्र सरकार 80 फीसदी तक आर्थिक मदद देने को तैयार है, मगर राज्य सरकारों का इस पर ध्यान ही नहीं है। नदियों के किनारे स्थान की उपलब्धता के बावजूद सरकारें इस दिशा में काम नहीं कर रही हैं।
गंगा तक पहुंच रहा गंदा पानी
प्रदेश की नर्मदा व उसकी सहयक नदियों को छोड़ दें तो अन्य नदियों का पानी सीधे या फिर उसकी सहायक नदियों के जरिए गंगा तक पहुंच रहा है। लिहाजा सीवेज और उद्योगों का अपशिष्ट ये नदियां गंगा तक पहुंचा रही हैं।
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केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रपट में शहरों की बेपरवाही उजागर…> अब भी कोशिश करें अगर हम, जी उठेंगी मरी-मरी सी नदियां…>
भोपाल
Updated: April 25, 2022 01:57:26 pm
विजय चौधरी @ भोपाल
समूचे देश के शहरी क्षेत्र में इंसानी बेपरवाहियों का दर्द नदियां झेल रही हैं। शहरवालों ने नदियों को सीवरेज और कचरे का डंपिंग पाइंट तो बनाया ही है, वे उद्योग से निकलने वाले खतरनाक रासायनिक तत्वों को ठिकाने लगाने के लिए भी नदियों का आंचल मैला कर रहे हैं।
कर्मों का अक्स: देश की सबसे प्रदूषित 323 नदियों के 351 बहाव स्थान में 22 मध्यप्रदेश के
केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी रिपोर्ट में देश की सर्वाधिक प्रदूषित 323 नदियों के 351 बहाव स्थान का जिक्र है। इसमें 22 मध्यप्रदेश के हैं। प्रदूषण के लिहाज से खतरनाक 45 बहाव क्षेत्रों में से प्रदेश के चार स्थानों की बॉयोलॉजिकल ऑसीजन डिमांड (बीओडी…पानी का प्रदूषण मापने का पैमाना) 30 मिलीग्राम प्रति लीटर से भी ऊपर पहुंच गई है। यह पानी छूने लायक तक नहीं है।
रिपोर्ट से जाहिर है कि सीवरेज और औद्योगिक कचरा बहाए जाने के कारण नागदा से रामपुरा के बीच चंबल के पानी का रंग ही बदल गया है। जहां बीओडी का स्तर 80 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पहुंच चुका है, जिसे अत्यधिक खतरनाक माना जाता है। यही हाल मंडीदीप से विदिशा तक बेतवा नदी का है। इसका पानी भी प्रदूषित हो चुका है। क्षिप्रा के सिद्धनाथ घाट से त्रिवेणी संगम तक के हिस्से में बीओडी का स्तर 40 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया है। यही स्थिति इंदौर की कान्ह नदी की है। यहां कबीटखेड़ी से खजराना तक का हिस्सा भयानक दूषित पाया गया।
उद्योग बेलगाम, काबू करें सरकारें
इंदौर की नदी को उजला बनाने के लिए संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी बताते हैं कि सीवरेज तो शहरों में बनने लगे हैं और इनके कारण परेशानी
कम हो रही है। मगर उद्योग बेलगाम हैं। नदियों को सबसे बड़ा दर्द ये ही दे रहे हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हो या नगर निगम का अमला इन पर कार्रवाई करता ही नहीं।
बरसात का भी असर नहीं
नदियों के प्रदूषण को बारिश भी नही धो पा रही। रिपोर्ट के मुताबिक, 22 नदियों का पानी बरसात के बाद भी साफ नहीं हुआ। स्पष्ट है कि बहाव क्षेत्र में समस्या है, जिससे प्रदूषक तत्व नहीं मिट पा रहे हैं।
समाधान पर कोई ध्यान नहीं
औद्योगिक क्षेत्रों के लिए एलूएन्ट ट्रीटमेंट प्लांट (एटीपी) के लिए केंद्र सरकार 80 फीसदी तक आर्थिक मदद देने को तैयार है, मगर राज्य सरकारों का इस पर ध्यान ही नहीं है। नदियों के किनारे स्थान की उपलब्धता के बावजूद सरकारें इस दिशा में काम नहीं कर रही हैं।
गंगा तक पहुंच रहा गंदा पानी
प्रदेश की नर्मदा व उसकी सहयक नदियों को छोड़ दें तो अन्य नदियों का पानी सीधे या फिर उसकी सहायक नदियों के जरिए गंगा तक पहुंच रहा है। लिहाजा सीवेज और उद्योगों का अपशिष्ट ये नदियां गंगा तक पहुंचा रही हैं।
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