वायु प्रदूषण का बड़ा खतरा- फेफड़ों का रंग गुलाबी से हो रहा काला साथ ही निमोनिया, अस्थमा सहित श्वास संबंधी रोगी भी बढ़ रहे | Recognize the danger of air pollution, need to be alert | Patrika News

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वायु प्रदूषण का बड़ा खतरा- फेफड़ों का रंग गुलाबी से हो रहा काला साथ ही निमोनिया, अस्थमा सहित श्वास संबंधी रोगी भी बढ़ रहे | Recognize the danger of air pollution, need to be alert | Patrika News

वायु प्रदूषण का बड़ा खतरा- फेफड़ों का रंग गुलाबी से हो रहा काला साथ ही निमोनिया, अस्थमा सहित श्वास संबंधी रोगी भी बढ़ रहे | Recognize the danger of air pollution, need to be alert | Patrika News

– देश के कई हिस्सों में सामने आए मामले से इंदौर को भी अलर्ट होने की जरूरत
– हम खतरनाक कण पीएम-2.5 की मात्रा में नहीं ला सके हैं कमी

इंदौर

Published: April 23, 2022 10:23:45 am

इंदौर। देश दुनिया में लगातार बड़ रहे प्रदुषण के बीच स्वच्छता में देश में प्रथम आने वाले शहर इंदौर में भी अब बढ़ते वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव नजर आने लगा है। दूषित हवा फेफड़ों का रंग बदल रही है। सामान्य व्यक्ति का फेफड़ा भी धूम्रपान करने वाले की तरह काला हो रहा है। यह आंकड़ा पांच साल से बढ़ रहा है। देश के कई हिस्से में ऐसे केस मिले हैं। प्रदूषण से फेफड़े में काले काले धब्बे पड़ रहे हैं। यहां तक की 30 साल तक के युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं।

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इस संंबंध में लंग केयर फाउंडेशन की रिसर्च के अनुसार, वायु प्रदूषण कम करने के लिए सभी शहरों को तेजी से काम करना होगा। इंदौर में भले ही फेफड़ों का रंग बदलने के स्पष्ट केस नहीं आए हों, लेकिन अलर्ट होने की जरूरत इसलिए है, क्योंकि हम पीएम-2.5 की मात्रा में कमी नहीं ला सके हैं। साथ ही श्वास संबंधी रोगी बढ़ रहे हैं।

ऐसे पहचानें आने वाले खतरे को
– राष्ट्रीय एयर क्वालिटी सुधार कार्यक्रम के 100 करोड़ खर्च करने के बाद भी पीएम-2.5 की मात्रा में कमी नहीं आई। संसद में पेश रिपोर्ट में पीएम-10 की मात्रा भी कम करने में इंदौर नाकाम रहा है।

– इंदौर में एक साल में पीएम-2.5 की मात्रा 91 से बढ़कर 96 माइक्रो ग्राम हो गई है।

– दुनिया के 6475 शहरों की एयर क्वालिटी रैंकिंग में हमारा नंबर 137वां है। प्रदेश के 13 शहरों में सबसे ज्यादा प्रदूषण सिंगरौली, ग्वालियर व पीथमपुर में है। इसके बाद इंदौर का नंबर है।

– तीन साल के प्रयास के बाद भी पीएम-2.5 तय मानक से 9 गुना ज्यादा है। 2021 में सालाना औसत 45.5 रहा, जो 2020 के औसत 40 से ज्यादा है।

– विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हाल ही में पर्टिक्युलेटेड मैटर (पीएम-2.5) के न्यूनतम मानक को 10 से घटाकर 5 माइक्रो ग्राम कर दिया है।

डब्ल्यूएचओ की सूची में इंदौर
डब्ल्यूएचओ ने 117 देशों के 6 हजार से ज्यादा शहरों की वायु गुणवत्ता जांची। इस सूची में इंदौर भी है। जांच के नतीजे बताते हैं कि वायु प्रदूषण से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और बहुत ही छोटे पार्टिकल्स फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं। शहर के वरिष्ठ छाती रोग विशेषज्ञ डॉ. सलिल भार्गव बताते हैं कि लंग केयर फाउंडेशन के अध्ययन में पता चला है कि देश में औसत उम्र तीन साल कम हो गई है।

बच्चों पर भी पड़ रहा असर
एक अध्ययन के मुताबिक, स्कूलों के आसपास वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा होता है। अभिभावक बच्चों को छोड़ने और लेने के लिए वाहनों का इस्तेमाल करते हैं। वाहनों से उत्सर्जित हानिकारक गैसें बच्चों के फेफड़ों, गले और हृदय को प्रभावित करती हैं। बच्चों में अस्थमा बढ़ने का कारण हानिकारक गैसें हैं।

ऐसे समझें पीएम-2.5 का खतरा
विशेषज्ञों के अनुसार, पीएम-2.5 ऐसा कण है, जो सीधे फेफड़ों को प्रभावित करता है। रक्त में भी घुल जाता है। दुनिया में प्रदूषण से मौतों का सबसे बड़ा कारण पीएम-2.5 है।

इसलिए जरूरी है साफ हवा
– हम एक दिन में 22 हजार बार सांस लेते हैं।
– 12000 लीटर गैस का आदान-प्रदान होता है।
– फेफड़े एक दिन में 400 लीटर कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकालते हैं।
– भारत में 21 प्रतिशत मौतें फेफड़ों की बीमारी से होती है।

वायु प्रदूषण बढ़ गया है। निमोनिया, अस्थमा सहित श्वास संबंधी रोगी बढ़ रहे हैं। ठंड में इनकी संख्या बढ़ जाती है। इंदौर में वायु गुणवत्ता को लेकर जागरुकता लाना बेहद जरूरी है। देश के कुछ हिस्सों में फेफड़ों का रंग काला होने के केस मिले हैं।

– डॉ. सलील भार्गव, विभागाध्यक्ष, श्वास रोग विभााग, एमजीएम मेडिकल कॉलेज

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