Jersey Movie Review: तीन साल बाद कमाल की फिल्म लेकर लौटे Shahid Kapoor, कहानी में भी है दम

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Jersey Movie Review: तीन साल बाद कमाल की फिल्म लेकर लौटे Shahid Kapoor, कहानी में भी है दम


Jersey Movie Review: तीन साल बाद कमाल की फिल्म लेकर लौटे Shahid Kapoor, कहानी में भी है दम

कास्ट:  शाहिद कपूर, मृणाल ठाकुर, पंकज कपूर, गीतिका महेन्द्रू, रोनित कामरा आदि

निर्देशक:  गौतम तिन्नौरी

स्टार रेटिंग: 3.5

कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में

Jersey Movie Review: इस मूवी का एक सीन है, जिसमें कभी फर्स्ट क्लास क्रिकेट का बड़ा खिलाड़ी रहा क्रिकेटर 10 साल बाद क्रिकेट के मैदान में आने का सपना देखता है और उसको पंजाब की रणजी टीम में चुन लिया जाता है. जब सब अपना-अपना नाम लिस्ट में चेक कर लेते हैं, तब आखिर में वो अपना नाम चेक करता है. 12 वें नम्बर पर अपना नाम देखकर, वह चुपचाप अपनी बाइक उठाकर वहां से चला जाता है. लोग अनुमान लगाते हैं कि पहले पत्नी को बताएगा या कोच को या फिर अपने बेटे को, लेकिन वह गाड़ी को रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ी करता है और रेलवे ब्रिज पार कर एक प्लेटफॉर्म पर पहुंचता है. अचानक एक ट्रेन उसके बगल से जैसे ही गुजरती है, वह आसमान की तरफ देखकर जोर से चिल्लाने लगता है… बिना थके, पूरे जोर से, आंसुओं के साथ… मानो सालों का गुबार आज ही निकालना है. उसको ऐसे चिल्लाते देख.. कोई देखता या सुनता तो डर ही जाता. जैसे ही ट्रेन गुजर जाती है, वो अपनी आवाज पर एकदम से ब्रेक लगाता है और चुपचाप उसी तरह वापस लौट आता है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

तेलुगू मूवी का हिंदी रीमेक

ये एक अकेला सीन है, जो इस मूवी को बाकी तमाम मूवीज से हटाकर एक अलग क्लास में डाल देता है. शाहिद कपूर ने क्रिकेटर का रोल इसी नाम ‘जर्सी’ वाली एक तेलुगू मूवी के हिंदी रीमेक में किया है. उन्हीं पर ये सीन फिल्माया गया था. दिलचस्प बात है कि उसी डायरेक्टर गौतम तिन्नौरी ने ये हिंदी मूवी भी डायरेक्ट की है, जिसने ओरिजनल तेलुगू में बनाई थी. हिंदी में रीमेक बनाने वालों के लिए शाहिद कपूर पहली पसंद होते जा रहे हैं. कबीर सिंह जैसी सुपरहिट मूवी भी उस मूवी को ओरिजनल में बनाने वाले डायरेक्टर ने ही डायरेक्ट की थी.

बीच में ही छोड़कर जा सकते हैं

बिल्कुल ये कहानी क्रिकेट की है. हारते-हारते जीतना. टीम में सेलेक्शन के लिए एड़ियां रगड़ता हीरो. क्रिकेट से जुड़े अधिकारियों की हरकतें. इसमें भी सबकुछ आम क्रिकेट मूवीज जैसा ही है. बावजूद इसके कहानी अलग है. फिल्म में कुछ ऐसा लोचा भी है जिसके चलते कुछ लोग इसे बीच में ही छोड़कर जा सकते हैं. लेकिन पूरी देखेंगे तो ये तय है कि आपको ये मूवी अपनी सी लगेगी, इमोशंस में बांध लेगी.

कहानी अर्जुन तलवार की

कहानी है अर्जुन तलवार (शाहिद कपूर) की. इस अनाथ लड़के की प्रतिभा पहचानकर उसका कोच बाली (पंकज कपूर) उसे तराशता है. एक दिन यह लड़का पंजाब टीम की जान बन जाता है. कई साल तक ये रणजी ट्रॉफी जैसे फर्स्ट क्लास मुकाबलों में सबसे ज्यादा बैटिंग एवरेज देता है. एक दिन अचानक वह फैसला करता है कि वह क्रिकेट नहीं खेलेगा. तब तक वह अपनी प्रेमिका विद्या से उसके पापा की मर्जी के खिलाफ शादी कर चुका था. उसकी सरकारी नौकरी भी फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया में लग जाती है. वह आराम से अपने 5 साल के बेटे के साथ मस्ती से दिन गुजारता है.

ये देखना काफी रोमांचक है

फिर कहानी में मोड़ आता है, अर्जुन रिश्वत के आरोप में नौकरी से सस्पेंड हो जाता है, जबकि उसने कोई रिश्वत नहीं ली थी. पत्नी एक फाइव स्टार होटल में रिशेप्सनिस्ट बनकर जैसे-तैसे घर चलाती है. वो अपनी नौकरी को वापस पाने के लिए वकील के चक्कर काटता है. एक दिन उसका बेटा उससे अपने जन्मदिन पर टीम इंडिया की जर्सी मांगता है. जिसे देने के लिए उसके पास पांच सौ रुपए भी नहीं होते, पत्नी भी नहीं देती. तब वह आहत होकर फिर से क्रिकेट खेलने का ऐलान करता है, लेकिन 10 साल बाद उसे खिलाड़ी कौन ले?  फिर वो कैसे पंजाब की टीम को रणजी ट्रॉफी दिलाकर भारतीय क्रिकेट टीम में अपनी जगह पक्की करता है, ये देखना काफी रोमांचक है.

फिल्म में लोचा क्या है?

इसकी दो-तीन वजहें हैं. भले ही स्टोरी 1995 में सेट की गई थी, ये आसानी से हजम नहीं होता कि हीरो कहीं से 500 रुपए का जुगाड़ नहीं कर पाता. उसके दोस्तों के पास मिलाकर भी 500 नहीं होते. आज की तारीख में मुद्रास्फीति की दर से भी ये गणना की जाए तो कुल 2500-2600 से ज्यादा नहीं होते. किसी भी तरह से ये इतनी बड़ी रकम नहीं है कि पूरा दिन बुलेट पर घूमने वाला, सिगरेट पर सिगरेट फूंकने वाला पिता अपने बेटे के लिए किसी से मांगकर भी 2500 रुपए ना जुगाड़ कर सके. वो भी कभी का रणजी प्लेयर. सो ये रकम थोड़ी बढ़ानी चाहिए थी.

सीन जो रीयल नहीं लगते

उसकी पत्नी का अजीबोगरीब सा रवैया तो जमता ही नहीं. उनके बीच के कई ऐसे सीन हैं, जो रीयल नहीं लगते. ये सब उसको गरीब दिखाने के लिए किया गया. जबकि इन सीन में कटौती करके 174 मिनट की मूवी बड़े आराम से 140 या 150 मिनट की हो सकती थी. इससे मूवी का एक पेस बना रहता. हालांकि मूवी का जोर क्रिकेट से ज्यादा इमोशंस पर था, बावजूद इसके छोटी होती तो ज्यादा मजा आता.

शाहिद की पिता पंकज कपूर के साथ तीसरी मूवी

लेकिन इंटरवल के बाद जैसे-जैसे मूवी आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे इसकी खामियां मूवी पर कोई असर नहीं डालतीं. अगर आप क्रिकेट लवर या शाहिद कपूर के फैन हैं, तो फिर तो दस सेकेंड के लिए नजरें नहीं हटा पाएंगे. सच में शाहिद कपूर ने इस रोल में अपनी जान डाल दी है. इस मूवी की एक और खास बात है और वो है शाहिद के पिता पंकज कपूर की बेटे के साथ हैट्रिक. दोनों की ये ‘मौसम’ और ‘शानदार’ के बाद ये तीसरी मूवी है. आप ‘जर्सी’ को इस जोड़ी की सबसे बेहतरीन मूवी मान सकते हैं. आपको ऐसा लगेगा कि जो जुगलबंदी ‘कजरारे कजरारे’ में अमिताभ-अभिषेक की थी, वैसी ही इन दोनों की इस मूवी में है. इसमें सिद्धार्थ-गरिमा के चुटीले डायलॉग्स की भी अहम भूमिका रही है. एक्टिंग के मामले में शाहिद हमेशा की तरह पंकज के सामने दबते ही दिखाई देते हैं, खासतौर पर जब उनका रोल लगातार 10-15 साल का लीप ले रहा है.

धीरे-धीरे निखर रहीं मृणाल ठाकुर

मृणाल ठाकुर का रोल कुछ-कुछ जॉन अब्राहम के साथ की ‘बाटला हाउस’ की हीरोइन जैसा है. वहां कामयाब पति से नाराज थीं. यहां नाकामयाब निठल्ले पति से परेशान. लेकिन वो धीरे-धीरे निखर रही हैं. मूवी में शाहिद कपूर के बेटे का रोल करने वाले दोनों लड़कों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. दोनों के सलेक्शन में कास्टिंग डायरेक्टर की तारीफ तो बनती है. मूवी के डायरेक्टर गौतम की इस बात के लिए तारीफ करनी ही होगी कि उन्होंने कम से कम क्लाइमेक्स आते-आते फिल्म को कायदे से समेटा है. दर्शक बंधा रहता है और हॉल से बाहर जाते वक्त सारे नेगेटिव ख्याल वहीं छोड़ जाता है.   

..तो शायद ज्यादा मजा आता

इस मूवी के डायरेक्टर ‘कबीर सिंह’ से काफी प्रभावित लगे हैं. इस मूवी में डायरेक्टर ने कबीर सिंह के म्यूजिक डायरेक्टर्स सचेत-परम्परा को मौका दिया है. सारे गाने इस तरह कम्पोज किए गए हैं कि वो फिल्म की कहानी का ही हिस्सा लगते हैं. भले ही वो अलग से लोगों की जुबान पर इतने ना चढ़ें, लेकिन फिल्म देखते वक्त जरुरी लगते हैं. मूवी में शाहिद कपूर ने अपने मजाकिया अंदाज को साइड में रखा है. लेकिन कबीर सिंह के एक दो सीन कॉपी जरूर मारे हैं, ताकि उनके जबरा फैन उनसे खुश रहें. इतना माना जा सकता है कि शाहिद को अगर अच्छी कहानी मिले तो वो कमाल दिखाने में पीछे नहीं रहते. हां अक्सर गलत मूवी जरुर चुन लेते हैं. लेकिन ‘जर्सी’ गलत मूवी तो कतई नहीं है, बस 20-25 मिनट और कम होती तो शायद ज्यादा मजा आता.





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