Covid Warrior: कोविड की दूसरी लहर में रह गया अपनों का गला सूखा… अब जरूरतमंदों को खिला-पिलाकर कर रहे हैं दुख हल्का h3>
विशेष संवाददाता, नई दिल्ली: वंश के चाचा की डेथ पिछले साल इसी वक्त चली कोविड की सेकंड वेव में हो गई थी। वंश अपने चाचा के साथ हुई उस आखिरी बातचीत को याद करते हैं जब उनके चाचा ने उनको हॉस्पिटल के बेड से लेटे-लेटे आखिरी बार फोन किया था। उन्होंने वंश से कहा था, ‘यार… गला बहुत सूख रहा है, थोड़ी कोल्ड ड्रिंक पिलवा दे।’ उसके कुछ घंटों बाद उनकी डेथ हो गई थी। उन्हें कुछ खिलाना-पिलाना तो दूर वंश उनका अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाए थे क्योंकि उस वक्त घर में सभी लोग कोविड से जूझ रहे थे। उस बात को याद करते हुए वंश ने इस साल के उन्हीं दिनों में कुछ जरूरतमंद लोगों को खाना खिलवाया और साथ में कोल्ड ड्रिंक भी सर्व की। उन्होंने बताया कि शायद दूसरों के लिए यह छोटी चीज हो सकती है लेकिन मुझे लगता है कि इस तरह से मैंने अपनी चाचा की उस आखिरी इच्छा को कुछ हद तक पूरा कर दिया।
वंश की तरह ऐसे हजारों-लाखों लोग हैं जो इन दिनों उन अपनों को याद कर रहे हैं जो कोविड की सेकंड वेव में दुनिया से चले गए। अपनों की याद में खाना खिलाना भारतीय सभ्यता में सबसे अच्छा काम माना जाता है। लेकिन काफी लोग इस काम को चाहते हुए भी नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें पता नहीं होता कि कैसे और कहां खाना खिलाया जाए या उनके पास टाइम नहीं होता। ऐसे में उदय फाउंडेशन उनकी मुश्किल को आसान कर रहा है। उदय फाउंडेशन के फाउंडर राहुल वर्मा कहते हैं कि ऐसी सैकड़ों कहानियां हैं जिनमें लोगों ने न सिर्फ अपनों को खोया बल्कि वो उनको आखिरी बार देख तक नहीं पाए क्योंकि उस वक्त पूरे-पूरे परिवार कोविड का शिकार बने हुए थे। ऐसे में लोगों के अंदर एक गिल्ट सा फंसा हुआ है। ये लोग उस वक्त हॉस्पिटल में भर्ती अपनों के लिए चाहकर भी कुछ नहीं कर पाए। अब लोग अपने उन लोगों की याद में कुछ करना चाहते हैं। इनमें से एक है जरूरतमंदों को खाना खिलाना और उसमें भी वो चीजें खिलाना जो उनके अपनों को बेहद पसंद थीं।
राहुल बताते हैं कि वैसे तो हम लोग साल भर ही मुहिम चलाते हैं जिसमें लोग सिर्फ 11 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से खाना खिलवा सकते हैं। लेकिन इन दिनों खास तौर पर ऐसी रिक्वेस्ट काफी आ रही हैं जब कुछ खाने के साथ कुछ और भी एड करना चाहते हैं। ये वो चीजें हैं जो वो लोग पसंद करते थे जिनको कोविड ने उनसे छीन लिया। मसलन कोई खाने के साथ मिठाई देना चाहता है, तो कोई लस्सी या जूस और कोई खीर बंटवाना चाहता है। हमारी टीम इन चीजों के लिए खासतौर से इंतजाम करती है क्योंकि इससे लोग अपनों को पॉजिटिव तरीके से याद कर पाते हैं। इन छोटी-छोटी बात से उनका वो दुख कम होता है जो उनके मन में बैठा हुआ है कि हम अपनों को आखिरी बार देख या मिल नहीं पाए या उनके लिए कुछ कर नहीं पाए।
हम और हमारी दुनिया काफी बदल गई है। ऐसे में अगर आपके पास है कुछ बताने को, किसी को याद करना चाहते हैं, कैसे लड़े थे सेकंड वेल से या कुछ यादगार किस्सा तो करें हमसे शेयर। हमें मेल करें nbtreader@timesgroup.com पर और सब्जेक्ट में लिखें COVIDWIN
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वंश की तरह ऐसे हजारों-लाखों लोग हैं जो इन दिनों उन अपनों को याद कर रहे हैं जो कोविड की सेकंड वेव में दुनिया से चले गए। अपनों की याद में खाना खिलाना भारतीय सभ्यता में सबसे अच्छा काम माना जाता है। लेकिन काफी लोग इस काम को चाहते हुए भी नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें पता नहीं होता कि कैसे और कहां खाना खिलाया जाए या उनके पास टाइम नहीं होता। ऐसे में उदय फाउंडेशन उनकी मुश्किल को आसान कर रहा है। उदय फाउंडेशन के फाउंडर राहुल वर्मा कहते हैं कि ऐसी सैकड़ों कहानियां हैं जिनमें लोगों ने न सिर्फ अपनों को खोया बल्कि वो उनको आखिरी बार देख तक नहीं पाए क्योंकि उस वक्त पूरे-पूरे परिवार कोविड का शिकार बने हुए थे। ऐसे में लोगों के अंदर एक गिल्ट सा फंसा हुआ है। ये लोग उस वक्त हॉस्पिटल में भर्ती अपनों के लिए चाहकर भी कुछ नहीं कर पाए। अब लोग अपने उन लोगों की याद में कुछ करना चाहते हैं। इनमें से एक है जरूरतमंदों को खाना खिलाना और उसमें भी वो चीजें खिलाना जो उनके अपनों को बेहद पसंद थीं।
राहुल बताते हैं कि वैसे तो हम लोग साल भर ही मुहिम चलाते हैं जिसमें लोग सिर्फ 11 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से खाना खिलवा सकते हैं। लेकिन इन दिनों खास तौर पर ऐसी रिक्वेस्ट काफी आ रही हैं जब कुछ खाने के साथ कुछ और भी एड करना चाहते हैं। ये वो चीजें हैं जो वो लोग पसंद करते थे जिनको कोविड ने उनसे छीन लिया। मसलन कोई खाने के साथ मिठाई देना चाहता है, तो कोई लस्सी या जूस और कोई खीर बंटवाना चाहता है। हमारी टीम इन चीजों के लिए खासतौर से इंतजाम करती है क्योंकि इससे लोग अपनों को पॉजिटिव तरीके से याद कर पाते हैं। इन छोटी-छोटी बात से उनका वो दुख कम होता है जो उनके मन में बैठा हुआ है कि हम अपनों को आखिरी बार देख या मिल नहीं पाए या उनके लिए कुछ कर नहीं पाए।
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