कलियुग के पहले दिन का मंदिर, जिसके नीचे छिपा है आकूत खजाना! | Temple of the first day of kalyug is very mysterious | Patrika News

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कलियुग के पहले दिन का मंदिर, जिसके नीचे छिपा है आकूत खजाना! | Temple of the first day of kalyug is very mysterious | Patrika News

कलियुग के पहले दिन का मंदिर, जिसके नीचे छिपा है आकूत खजाना! | Temple of the first day of kalyug is very mysterious | Patrika News

बिना ताला,जंजीर व नट-बोल्ट के बंद है यहां का दरवाजा

भोपाल

Published: April 16, 2022 12:52:19 pm

भारत में जगह जगह पर मंदिर मौजूद हैं, इनमें से जहां कुछ अभी कुछ समय पहले ही बने हैं तो कुछ कई हजार साल पुराने भी हैं। इन्हीं में से एक ऐसा मंदिर भी है जिसके संबंध में माना जाता है कि यह मंदिर कलियुग के पहले दिन स्थापित किया गया।

kalyug first day temple

दरअसल आज हम जिस मंदिर के बारे में बता रहे हैं वह मंदिर भारत के दक्षिण में मौजूद है। वहीं इस मंदिर के पास आकूत संपत्ति का खजाना भी है। कहा जाता है कि इस मंदिर में 2 लाख करोड़ रुपए की दौलत है। जिसके चलते इस मंदिर से सरकार की निगरानी में करीब एक लाख करोड़ रुपए मूल्य का खजाना निकाला जा चुका है। दरअसल ये मंदिर है केरल की राजधानी तिरूअनंतपुरम का पद्मनाभ स्वामी मंदिर। 2011 में सरकार की निगरानी में निकाले गए खजाने के बावजूद इस मंदिर का अभी एक तहखाना खुलना और बाकी है। यहां तक की इसे भारत का सर्वाधिक अमीर मंदिर भी कहा जाता है।

कहा जाता है कि पूर्व में सरकार द्वारा मंदिर के छठे तहखाने को नहीं खोला गया था। माना जाता है कि मंदिर के तहखानों में कोबरा जैसे जहरीले सांप मौजूद हैं, जो इस खजाने की रक्षा करते हैं और किसी को तहखाने में जाने की इजाजत नहीं है।

पद्मनाभ स्वामी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसके चारों ओर रहस्य ही रहस्य ही छिपे हुए हैं। लोक मत है कि इस सुप्रसिद्ध मंदिर का सातवां दरवाज़ा आज भी एक पहेली है। इसका कारण यह है कि ये दरवाज़ा आज तक किसी के द्वारा खोला नहीं जा सकता। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात तो ये है कि लकड़ी के इस दरवाज़े को खोलने या बंद करने के लिए किसी तरह का कोई ताला,जंजीर व नट-बोल्ट नहीं लगा हुआ यानि कि दरवाज़ा बंद भी कैसे है? इस बारे में भी किसी को कुछ पता नहीं,जो आज तक एक रहस्य ही बना हुआ है।

इस मंदिर के मौजूदा स्वरूप को त्रावणकाेर राजाओं ने बनवाया। कहा जाता है कि त्रावणकाेर के महाराजा मार्तण्ड वर्मा ने 1750 में स्वयं को पद्मनाभ स्वामी का दास बताया था, जिसके पश्चात मंदिर की सेवा में पूरा शाही खानदान लग गया था। मान्यता के अनुसार मंदिर में त्रावणकोर शाही खानदान की अकूत संपत्ति ही मौजूद है।

कहा जाता है कि त्रावणकोर राजघराने ने अपनी दौलत उस समय मंदिर में रख दी भारत सरकार जब 1947 में हैदराबाद के निजाम की संपत्ति अपने अधीन कर रही थी। जिसके पश्चात त्रावणकोर रियासत का भी भारत में विलय हो गया। इस दौरान रियासत की संपत्ति तो भारत सरकार के अधीन हो गई, लेकिन मंदिर शाही खानदान के पास ही रहा। कुल मिलाकर राजघराने ने इस तरह अपनी संपत्ति को बचा लिया, लेकिन इस कहानी का कोई भी प्रमाण अब तक सामने नहीं आया है। वहीं अब यह मंदिर शाही खानदान द्वारा बनाया गया ट्रस्ट चलाता है।

हमला भी हो चुका है मंदिर पर
इस मंदिर पर टीपू सुल्तान ने हमला भी किया था। कहा जाता है कि 1790 में टीपू सुल्तान ने मंदिर पर कब्जे के लिए हमला तो किया था, लेकिन कोच्चि के पास उसे हार का मुंह देखना पड़ा।

मंदिर की मान्यता
यह तो हर कोई मानता है कि यह मंदिर कई हजार साल पुराना है। लेकिन इसकी स्थापना को लेकर हर कोई एकराय नहीं है। इस मंदिर के संबंध में कई जानकारों का मानना है कि यह करीब दो हजार साल पुराना है। जबकि त्रावणकोर के इतिहासकार डॉ. एलए रवि वर्मा दावा करते हैं कि लियुग के पहले दिन इस मंदिर की स्थापना हुई थी। वहीं मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति के संबंध में माना जाता है कि इसकी स्थापना कलियुग के 950वें साल में हुई थी।

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