Explainer:अपने दम पर राजस्थान सरकार क्यों पूरा नहीं कर रही ईस्टर्न कैनाल परियोजना, क्या है केंद्र से मदद मांगने की वजह h3>
जयपुर: 13 जिलों की सिंचाई की आपूर्ति और जल संकट को दूर करने वाली ईस्टर्न राजस्थान कैनाल परियोजना (ERCP Rajasthan) इन दिनों राजनीति का अखाड़ा बन गई है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत (Gajendra singh shekawat) और सूबे के सीएम अशोक गहलोत (Ashok gehlot) एक- दूसरे के खिलाफ लगातार इस मामले पर बयानबाजी कर रहे हैं। दोनों ओर से वादे- दावे याद किए- करवाए जा रहे हैं। परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना (Eastern Rajasthan Canal Project) घोषित करवाने को लेकर पीएम के पुराने वीडियो भी वायरल किए जा रहे हैं। इधर सीएम गहलोत ने गजेंद्र सिंह शेखावत के जल शक्ति मंत्री होने की योग्यता पर सवाल उठाते हुए उन्हें इस मामले पर ‘औकात’ तक याद दिला दी है।
ईआरसीपी योजना क्या है, जानिए क्यों हो रही इस पर राजनीति
ईस्टर्न राजस्थान कैनाल योजना की घोषणा 2017-2018 के बजट में तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने की थी। जानकारों के अनुसार ईआरसीपी परियोजना के जरिए झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी , सवाई माधोपुर जैसे 13 जिलों की सिंचाई और पानी की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। रिपोर्ट्स की मानें, तो इस योजना के लिए मुख्यमंत्री पिछले दो साल में आधा दर्जन पत्र प्रधानमंत्री और जल शक्ति मंत्री को लिख चुके हैं। नीति आयोग की बैठक में भी इसका मुद्दा उठ चुका है। प्रोजेक्ट की डीपीआर बने पांच साल से भी ज्यादा समय हो चुका है, लेकिन फिर भी यह मुद्दा केंद्र और राज्य के बीच अटका हुआ है और अब इस पर सियासत भी हावी है।
अपने दम पर क्यों पूरा कर सकती राज्य सरकार इस योजना को पूरा
3.5 करोड़ लोगों की प्यास बुझाने वाली 4.31 लाख हेक्टेयर की सिंचाई असली मुद्दा खर्च का है। पूरी परियोजना 60 हजार करोड़ की है। केंद्र चाहता है कि 75 फीसदी खर्च राजस्थान उठाए। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि राजस्थान पहले मध्यप्रदेश से एनओसी लेकर आए। इधर प्रदेश की मांग परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की है, ताकि 90 फीसदी खर्च केंद्र उठाए।
इससे इस परियोजना का व्यापक लाभ प्रदेश की जनता को मिल सकेगा। राष्ट्रीय परियोजना घोषित होने के बाद राज्य सरकार को खर्च होने वाली राशि का 10 प्रतिशत वहन करना होगा। जानकारों का कहना है कि 21 हजार करोड़ कृषि-जलापूर्ति बजट रखने वाला राज्य (राजस्थान) 45 हजार करोड़ खर्चे होने वाली इस योजना को अपने दम पर पूरा नहीं करवा सकता है।
देश में कितनी है राष्ट्रीय परियोजना , क्या होता है इसके लिए क्राइटेरिया
बड़ी परियोजनाओं के लिए केंद्र ने 1996-97 में त्वरित सिंचाई लाभ परियोजना बनाई, ऐसी बड़ी परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना कहा गया। राष्ट्रीय परियोजना उन्हीं परियोजना को बनाया जा सकता है, जिसमें 2 लाख हेक्टेयर से अधिक की सिंचाई हो सके और जल बंटवारे का विवाद न हो। अभी तक देश में 16 राष्ट्रीय परियोजनाएं है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि सबसे ज्यादा पानी की कमी झेलने वाले राजस्थान में इनमें से एक भी परियोजना नहीं है।
ईस्टर्न कैनाल के राष्ट्रीय परियोजना बनने से लाभ
राजस्थान की लाइफलाइन कही जाने वाली ईस्टर्न कैनाल के राष्ट्रीय परियोजना बनने से प्रदेश को बड़ा लाभ होगा। इस योजना के तहत 13 जिलों की जल आपूर्ति पूरी होगी। पानी आने से पैदावार बढ़ेगी और किसानों की आय 3 गुना बढ़ जाएगी।दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे में उद्योगों को पानी मिल सकेगा तो औद्योगिक विकास भी तेज होगा। योजना से लगभग 62 लाख जनता को पेयजल की उपलब्धता भी बढ़ेगी।
क्यों अड़ रही है केंद्र- राज्य सरकार
राजनीति के जानकारों की मानें, तो केंद्र और राज्य सरकार के बीच अब यह मुद्दा पूरी तरह सियासी हो गया है। योजना की शुरुआत वसुंधरा राजे सरकार के दौरान हुई थी, लेकिन अब प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता है। आगामी साल में विधानसभा चुनाव है, लेकिन दोनों पार्टियां अपने- अपने तरीके से इसका राजनीतिक लाभ उठाने में लगे है। इसी सियासी गणित के बीच मुद्दा अटक रहा है और आरोप- प्रत्यारोप की राजनीति जारी है।
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ईआरसीपी योजना क्या है, जानिए क्यों हो रही इस पर राजनीति
ईस्टर्न राजस्थान कैनाल योजना की घोषणा 2017-2018 के बजट में तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने की थी। जानकारों के अनुसार ईआरसीपी परियोजना के जरिए झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी , सवाई माधोपुर जैसे 13 जिलों की सिंचाई और पानी की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। रिपोर्ट्स की मानें, तो इस योजना के लिए मुख्यमंत्री पिछले दो साल में आधा दर्जन पत्र प्रधानमंत्री और जल शक्ति मंत्री को लिख चुके हैं। नीति आयोग की बैठक में भी इसका मुद्दा उठ चुका है। प्रोजेक्ट की डीपीआर बने पांच साल से भी ज्यादा समय हो चुका है, लेकिन फिर भी यह मुद्दा केंद्र और राज्य के बीच अटका हुआ है और अब इस पर सियासत भी हावी है।
अपने दम पर क्यों पूरा कर सकती राज्य सरकार इस योजना को पूरा
3.5 करोड़ लोगों की प्यास बुझाने वाली 4.31 लाख हेक्टेयर की सिंचाई असली मुद्दा खर्च का है। पूरी परियोजना 60 हजार करोड़ की है। केंद्र चाहता है कि 75 फीसदी खर्च राजस्थान उठाए। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि राजस्थान पहले मध्यप्रदेश से एनओसी लेकर आए। इधर प्रदेश की मांग परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की है, ताकि 90 फीसदी खर्च केंद्र उठाए।
इससे इस परियोजना का व्यापक लाभ प्रदेश की जनता को मिल सकेगा। राष्ट्रीय परियोजना घोषित होने के बाद राज्य सरकार को खर्च होने वाली राशि का 10 प्रतिशत वहन करना होगा। जानकारों का कहना है कि 21 हजार करोड़ कृषि-जलापूर्ति बजट रखने वाला राज्य (राजस्थान) 45 हजार करोड़ खर्चे होने वाली इस योजना को अपने दम पर पूरा नहीं करवा सकता है।
देश में कितनी है राष्ट्रीय परियोजना , क्या होता है इसके लिए क्राइटेरिया
बड़ी परियोजनाओं के लिए केंद्र ने 1996-97 में त्वरित सिंचाई लाभ परियोजना बनाई, ऐसी बड़ी परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना कहा गया। राष्ट्रीय परियोजना उन्हीं परियोजना को बनाया जा सकता है, जिसमें 2 लाख हेक्टेयर से अधिक की सिंचाई हो सके और जल बंटवारे का विवाद न हो। अभी तक देश में 16 राष्ट्रीय परियोजनाएं है, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि सबसे ज्यादा पानी की कमी झेलने वाले राजस्थान में इनमें से एक भी परियोजना नहीं है।
ईस्टर्न कैनाल के राष्ट्रीय परियोजना बनने से लाभ
राजस्थान की लाइफलाइन कही जाने वाली ईस्टर्न कैनाल के राष्ट्रीय परियोजना बनने से प्रदेश को बड़ा लाभ होगा। इस योजना के तहत 13 जिलों की जल आपूर्ति पूरी होगी। पानी आने से पैदावार बढ़ेगी और किसानों की आय 3 गुना बढ़ जाएगी।दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे में उद्योगों को पानी मिल सकेगा तो औद्योगिक विकास भी तेज होगा। योजना से लगभग 62 लाख जनता को पेयजल की उपलब्धता भी बढ़ेगी।
क्यों अड़ रही है केंद्र- राज्य सरकार
राजनीति के जानकारों की मानें, तो केंद्र और राज्य सरकार के बीच अब यह मुद्दा पूरी तरह सियासी हो गया है। योजना की शुरुआत वसुंधरा राजे सरकार के दौरान हुई थी, लेकिन अब प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता है। आगामी साल में विधानसभा चुनाव है, लेकिन दोनों पार्टियां अपने- अपने तरीके से इसका राजनीतिक लाभ उठाने में लगे है। इसी सियासी गणित के बीच मुद्दा अटक रहा है और आरोप- प्रत्यारोप की राजनीति जारी है।
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