Sri Lanka Crisis Explained : श्रीलंका की संसद कैसे काम करती है और राष्ट्रपति के पास अब क्या विकल्प है, पूरा अंकगणित समझिए

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Sri Lanka Crisis Explained : श्रीलंका की संसद कैसे काम करती है और राष्ट्रपति के पास अब क्या विकल्प है, पूरा अंकगणित समझिए

Sri Lanka Crisis Explained : श्रीलंका की संसद कैसे काम करती है और राष्ट्रपति के पास अब क्या विकल्प है, पूरा अंकगणित समझिए

कोलंबो: श्रीलंका में आर्थिक संकट (Sri Lanka Crisis Explained) गहराने के साथ-साथ राजपक्षे सरकार पर खतरा बढ़ता जा रहा है। सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल पार्टियों के साथ छोड़ने से राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की सरकार अल्पमत में आ गई है। 2020 में महिंदा राजपक्षे (Sri Lanka Crisis in Hindi) ने अपने भाई गोटबाया के राष्ट्रपति रहते हुए श्रीलंका के प्रधानमंत्री बनने के लिए चुनाव जीता था। 2021 में उन्होंने श्रीलंका की सत्ता पर परिवार की पकड़ मजबूत करते हुए अपने दूसरे भाई बेसिल राजपक्षे को देश का वित्त मंत्री मनोनीत किया था। लेकिन, उसके बाद एक साल से भी कम समय में राजपक्षे परिवार के खिलाफ श्रीलंका में भारी विरोध (2022 Sri Lankan protests) देखा जा रहा है। सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल सांसदों की मांग पर बेसिल का इस्तीफा तो ले लिया गया, लेकिन उनके बाद नए वित्त मंत्री बने अली साबरी ने 24 घंटे में ही इस्तीफा दे दिया।

राजपक्षे सरकार के सहयोगियों ने छोड़ा साथ
मंगलवार को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने श्रीलंका में आपातकाल के ऐलान के बाद पहली बार संसद का सत्र बुलाया था। लेकिन, इस सत्र में विपक्ष तो दूर, सरकार के कई गठबंधन सहयोगी ही शामिल नहीं हुए। महिंदा राजपक्षे के नेतृत्व में सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) गठबंधन ने 2020 के आम चुनावों में 150 सीटें जीती थीं। इसके बाद पूर्व राष्ट्रपति सिरीसेना की अगुवाई में श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के असंतुष्ट सांसद पाला बदलते हुए सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना गठबंधन में शामिल हो गए थे।

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श्रीलंकाई संसद का अंकगणित समझिए
श्रीलंका की संसद में कुल सदस्यों की संथ्या 225 है। ऐसे में किसी भी गठबंधन या दल को बहुमत के लिए 113 सदस्यों के समर्थन की जरूरत है। श्रीलंकाई मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सत्तारूढ़ गठबंधन के कम से कम 41 सदस्यों ने समर्थन वापस लेने का ऐलान किया है। ऐसे में महिंदा राजपक्षे सरकार के पास 109 सदस्यों का समर्थन है, जो बहुमत से चार कम है। वहीं, पाला बदलकर महिंदा राजपक्षे का समर्थन करने वाले 14 सांसदों ने सत्तारूढ़ गठबंधन को छोड़ने का ऐलान किया है। ऐसे में राजपक्षे सरकार के पास सांसदों की संख्या और ज्यादा कम हो सकती है।

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किस पार्टी के पास कितने सांसद

पार्टी सांसदों की संख्या
श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना 145
समागी जाना बालवेगया 54
इलंकाई तमिल अरसु कड़ची 10
जाथिका जाना बालवेगया 3
ईलम पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी 2
अहिला इलांकई तमिल कांग्रेस 2
थमिल मक्कल विदुथलाई पुलिकल 1
श्रीलंका फ्रीडम पार्टी 1
मुस्लिम राष्ट्रीय गठबंधन 1
थमिल मक्कल थेसिया कुट्टनी 1
ऑल सीलोन मक्कल कांग्रेस 1
नेशनल कांग्रेस 1
श्रीलंका मुस्लिम कांग्रेस 1
यूनाइटेड नेशनल पार्टी 1
ऑवर पावर ऑफ पीपुल पार्टी 1

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भारत के जैसे ही है श्रीलंका की संसद की शक्तियां

श्रीलंका की संसद देश का सर्वोच्च विधायी निकाय है। इसे ब्रिटिश पार्लियामेंट की तर्ज पर तैयार किया गया है। इसमें 225 सदस्य होते हैं जिन्हें संसद सदस्य (सांसद) के रूप में जाना जाता है। श्रीलंका में सांसदों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के जरिए पांच साल के लिए किया जाता है। श्रीलंका के राष्ट्रपति के पास संसद सत्र को बुलाने, निलंबित करने, सत्रावसान करने या समाप्त करने और संसद को भंग करने की शक्ति होती है। राष्ट्रपति सरकार के ढाई साल पूरा होने के बाद या दो तिहाई सदस्यों के बहुमत के अनुरोध के बाद ही संसद को भंग कर सकते हैं। श्रीलंका की संसद के पास भी भारत के जैसे ही शक्तियां हैं।

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गोटबाया राजपक्षे का इस्तीफे से इनकार
श्रीलंका की सरकार ने बुधवार को कहा कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे किसी भी परिस्थिति में इस्तीफा नहीं देंगे और वह मौजूदा मुद्दों का सामना करेंगे। सरकार ने आपातकाल लगाने के राजपक्षे के निर्णय का भी बचाव किया, जिसे बाद में हटा लिया गया। मुख्य सरकारी सचेतक मंत्री जॉनसन फर्नांडो ने संसद को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार इस समस्या का सामना करेगी और राष्ट्रपति के इस्तीफे का कोई कारण नहीं है क्योंकि उन्हें इस पद के लिये चुना गया था।

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विपक्षी पार्टियों पर लोगों को भड़काने का आरोप
फर्नांडो ने दावा किया कि देश में हिंसा के पीछे विपक्षी जनता विमुक्ति पेरामुनावास (जेवीपी) पार्टी का हाथ था। फर्नांडो ने कहा कि इस प्रकार की ‘घातक राजनीति’ की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए और लोगों से हिंसा की समाप्ति का आह्वान किया। सरकार ने आपातकाल लागू करने के राष्ट्रपति के फैसले का भी बचाव किया। सरकार ने कहा कि राष्ट्रपति कार्यालय और अन्य सार्वजनिक संपत्ति पर हमले के प्रयास के बाद आपातकाल घोषित किया गया था।



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