त्रिपुरा, मेघालय से हटा, जल्द असम और मणिपुर से भी AFSPA की विदाई! नॉर्थ ईस्ट में मोदी का प्लान समझिए h3>
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने नगालैंड, असम और मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत आने वाले अशांत इलाकों को कम करने का फैसला किया है। सरकार ने कहा कि पूर्वोत्तर में सुरक्षा की दृष्टि से हालात लगातार बेहतर हो रहे हैं। असम, मणिपुर और नगालैंड के अशांत क्षेत्रों को कम करना बस शुरुआत है। जितनी तेजी से घुसपैठ को खत्म करने के लिए समझौते हो रहे हैं, जल्द ही असम और मणिपुर में AFSPA की जरूरत नहीं पड़ेगी। हालांकि नगालैंड में अभी NSCN (IM) और NSCN (Khaplang) जैसे घुसपैठी समूहों से बातचीत और एक स्थायी सेटलमेंट पर चर्चा हो रही है। पूर्वोत्तर के राज्यों से AFSPA हटाने की मांग पुरानी है लेकिन 2004 में कथित रूप से मणिपुरी महिला से बलात्कार और फिर हत्या के बाद मांग तेज हो गई।
पूर्वोत्तर में काम कर रही मोदी-शाह की नीति
सत्ता में आने के साथ ही मोदी सरकार ने AFSPA वाले इलाकों की समीक्षा शुरू कर दी थी। सबसे पहले, मई 2015 में त्रिपुरा से ‘अशांत क्षेत्र’ पूरी तरह खत्म कर दिए गए। मार्च 2018 में मेघालय से भी AFSPA को पूरी तरह हटा लिया गया।केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की लगातार बातचीत के बाद उत्तर-पूर्व के राज्यों में अधिकतर उग्रवादी संगठनों ने हथियार डाल दिए हैं। पिछले कुछ वर्षों में करीब 7000 उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। इन राज्यों में 2014 की तुलना में 2021 में उग्रवादी घटनाओं में 74 फीसदी की कमी आई है। सुरक्षाकर्मियों और नागरिकों की मृत्यु में भी 60 फीसदी और 84 फीसदी की कमी आई है।
3 साल में केंद्र सरकार ने किए कई समझौते
- जनवरी 2020 में बोडो समझौता। इसके तहत असम की 5 दशक पुरानी बोडो समस्या का समाधान किया गया।
- 4 सितंबर 2021 का करबी-आंगलांग समझौता। इसके तहत लंबे समय से चल रहे असम के करबी क्षेत्र के विवाद को हल किया गया है।
- त्रिपुरा में उग्रवादियों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए अगस्त 2019 में एनएलएफटी (एसडी) समझौता किया गया।
- 16 जनवरी 2020 को 23 साल पुराने ब्रु-रिआंग शरणार्थी संकट को सुलझाने के लिए एक ऐतिहासिक समझौता किया गया। इसके तहत 37000 आंतरिक विस्थापित लोगों को त्रिपुरा में बसाया जा रहा है।
- 29 मार्च 2022 को असम और मेघालय की सीमा के मामले में एक और अहम समझौता हुआ है।
अभी AFSPA का क्या स्टेटस है?
1 अप्रैल, 2022 से असम के 33 जिलों में से 23 से AFSPA हट जाएगा। एक जिले में आंशिक रूप से AFSPA हटाया जाएगा। पूरा मणिपुर (इंफाल नगर पालिका क्षेत्र को छोड़कर) 2004 से अशांत क्षेत्र घोषित है। अब 6 जिलों के 15 पुलिस स्टेशन क्षेत्र को 1 अप्रैल, 2022 से अशांत क्षेत्रों की सूची से बाहर किया जा रहा है। अरुणाचल प्रदेश में 2015 में 3 जिले, असम से लगने वाली 20 किलोमीटर की पट्टी और 9 अन्य जिलों के 16 पुलिस स्टेशन क्षेत्र में अफस्पा लागू था। अब सिर्फ 3 जिलों और 1 अन्य जिले के 2 पुलिस स्टेशन क्षेत्र में लागू है। पूरे नगालैंड में अशांत क्षेत्र अधिसूचना 1995 से लागू है। केंद्र सरकार ने इस मामले में गठित कमिटी की चरणबद्ध तरीके से अफ्सपा हटाने की सिफारिश को मान लिया है। नगालैंड में 1 अप्रैल 2022 से 7 जिलों के 15 पुलिस स्टेशनों से अशांत क्षेत्र को हटाया जा रहा है।
हटाने के लिए होते रहे हैं प्रदर्शन
अफस्पा कानून को हटाने के लिए पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर में प्रदर्शन होते रहे हैं। कई मामलों में सैन्य बलों पर इस कानून के दुरुपयोग का आरोप लगा है। पिछले साल 5 दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 आम लोग मारे गए थे। इस घटना के बाद से अफस्पा हटाने की मांग तेज हो गई थी।
क्या है अफस्पा?
पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू कश्मीर में अफस्पा कानून वर्षों से लागू हैं। अफस्पा के तहत ‘अशांत क्षेत्र’ में शांति और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए सशस्त्र बलों को विशेष अधिकार दिए गए हैं।
इसके तहत कौन-से विशेष अधिकार सुरक्षा बलों को मिले हैं?
अफस्पा सशस्त्र बलों को कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को चेतावनी देने के बाद बल प्रयोग करने यहां तक कि गोली चलाने का अधिकार देता है। बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और तलाशी लेने का भी अधिकार होता है।
किन सुरक्षाबलों के पास होता है यह अधिकार?
अफस्पा सुरक्षा बलों को कानूनी कार्यवाही से भी बचाता है। यह कानून न केवल तीनों सेनाओं, बल्कि अर्धसैनिक बलों जैसे सीआरपीएफ और बीएसएफ पर भी लागू होता है।
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पूर्वोत्तर में काम कर रही मोदी-शाह की नीति
सत्ता में आने के साथ ही मोदी सरकार ने AFSPA वाले इलाकों की समीक्षा शुरू कर दी थी। सबसे पहले, मई 2015 में त्रिपुरा से ‘अशांत क्षेत्र’ पूरी तरह खत्म कर दिए गए। मार्च 2018 में मेघालय से भी AFSPA को पूरी तरह हटा लिया गया।केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की लगातार बातचीत के बाद उत्तर-पूर्व के राज्यों में अधिकतर उग्रवादी संगठनों ने हथियार डाल दिए हैं। पिछले कुछ वर्षों में करीब 7000 उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। इन राज्यों में 2014 की तुलना में 2021 में उग्रवादी घटनाओं में 74 फीसदी की कमी आई है। सुरक्षाकर्मियों और नागरिकों की मृत्यु में भी 60 फीसदी और 84 फीसदी की कमी आई है।
3 साल में केंद्र सरकार ने किए कई समझौते
- जनवरी 2020 में बोडो समझौता। इसके तहत असम की 5 दशक पुरानी बोडो समस्या का समाधान किया गया।
- 4 सितंबर 2021 का करबी-आंगलांग समझौता। इसके तहत लंबे समय से चल रहे असम के करबी क्षेत्र के विवाद को हल किया गया है।
- त्रिपुरा में उग्रवादियों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए अगस्त 2019 में एनएलएफटी (एसडी) समझौता किया गया।
- 16 जनवरी 2020 को 23 साल पुराने ब्रु-रिआंग शरणार्थी संकट को सुलझाने के लिए एक ऐतिहासिक समझौता किया गया। इसके तहत 37000 आंतरिक विस्थापित लोगों को त्रिपुरा में बसाया जा रहा है।
- 29 मार्च 2022 को असम और मेघालय की सीमा के मामले में एक और अहम समझौता हुआ है।
अभी AFSPA का क्या स्टेटस है?
1 अप्रैल, 2022 से असम के 33 जिलों में से 23 से AFSPA हट जाएगा। एक जिले में आंशिक रूप से AFSPA हटाया जाएगा। पूरा मणिपुर (इंफाल नगर पालिका क्षेत्र को छोड़कर) 2004 से अशांत क्षेत्र घोषित है। अब 6 जिलों के 15 पुलिस स्टेशन क्षेत्र को 1 अप्रैल, 2022 से अशांत क्षेत्रों की सूची से बाहर किया जा रहा है। अरुणाचल प्रदेश में 2015 में 3 जिले, असम से लगने वाली 20 किलोमीटर की पट्टी और 9 अन्य जिलों के 16 पुलिस स्टेशन क्षेत्र में अफस्पा लागू था। अब सिर्फ 3 जिलों और 1 अन्य जिले के 2 पुलिस स्टेशन क्षेत्र में लागू है। पूरे नगालैंड में अशांत क्षेत्र अधिसूचना 1995 से लागू है। केंद्र सरकार ने इस मामले में गठित कमिटी की चरणबद्ध तरीके से अफ्सपा हटाने की सिफारिश को मान लिया है। नगालैंड में 1 अप्रैल 2022 से 7 जिलों के 15 पुलिस स्टेशनों से अशांत क्षेत्र को हटाया जा रहा है।
हटाने के लिए होते रहे हैं प्रदर्शन
अफस्पा कानून को हटाने के लिए पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर में प्रदर्शन होते रहे हैं। कई मामलों में सैन्य बलों पर इस कानून के दुरुपयोग का आरोप लगा है। पिछले साल 5 दिसंबर को नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 आम लोग मारे गए थे। इस घटना के बाद से अफस्पा हटाने की मांग तेज हो गई थी।
क्या है अफस्पा?
पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू कश्मीर में अफस्पा कानून वर्षों से लागू हैं। अफस्पा के तहत ‘अशांत क्षेत्र’ में शांति और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए सशस्त्र बलों को विशेष अधिकार दिए गए हैं।
इसके तहत कौन-से विशेष अधिकार सुरक्षा बलों को मिले हैं?
अफस्पा सशस्त्र बलों को कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को चेतावनी देने के बाद बल प्रयोग करने यहां तक कि गोली चलाने का अधिकार देता है। बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और तलाशी लेने का भी अधिकार होता है।
किन सुरक्षाबलों के पास होता है यह अधिकार?
अफस्पा सुरक्षा बलों को कानूनी कार्यवाही से भी बचाता है। यह कानून न केवल तीनों सेनाओं, बल्कि अर्धसैनिक बलों जैसे सीआरपीएफ और बीएसएफ पर भी लागू होता है।