Organ Donation : अंगदान के आधे ऑर्गन क्यों हो जाते हैं बेकार, डॉक्टर ने बताई वजह

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Organ Donation : अंगदान के आधे ऑर्गन क्यों हो जाते हैं बेकार, डॉक्टर ने बताई वजह

Organ Donation : अंगदान के आधे ऑर्गन क्यों हो जाते हैं बेकार, डॉक्टर ने बताई वजह

नई दिल्ली : ऑर्गन डोनेशन के मामले में देश पहले से ही पिछड़ा हुआ है, तो वहीं डॉक्टरों का कहना है कि ठोस नीति, समय पर अलर्ट नहीं मिल पाने के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट में होने वाले खर्च की वजह से लगभग 50 पर्सेंट अंग बर्बाद हो रहे हैं। देश के जाने-माने हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जन और अब तक 500 से ज्यादा हार्ट ट्रांसप्लांट कर चुके डॉक्टर के. आर. बालाकृष्णन ने कहा कि नेटवर्क सिस्टम के ठीक से काम नहीं करने की वजह से ऑर्गन डोनेशन से मिलने वाले अंग बर्बाद हो रहे हैं। समय पर उनका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। इसके लिए काम करने की जरूरत है, ताकि जो अंगदान कर रहे हैं, उससे लोगों को नया जीवन मिल सके।

एक ही दिन में मिल जाते हैं 5-6 डोनर
एमजीएम हेल्थकेयर चेन्नै के इंस्टिट्यूट ऑफ हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट एंड मैकेनिकल सर्कुलेटरी सपोर्ट के डायरेक्टर डॉक्टर बालाकृष्णन ने कहा कि कई बार एक ही दिन में 5 से 6 डोनर मिल जाते हैं। एक चंडीगढ़ में तो दूसरा बेंगलुरु में, तीसरा गुजरात में… ऐसी स्थिति में नेटवर्क सिस्टम मजबूत होना चाहिए। क्योंकि यह एक ऐसा काम है जिसमें समय की पाबंदी है। समय पर मुहैया ना होने के कारण ऑर्गन का इस्तेमाल नहीं हो पाता और वह एक तरह से बर्बाद हो जाता है। इसके लिए काम करना होगा।
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दिल्ली-एनसीआर में हार्ट और लंग ट्रांसप्लांट को बढ़ावा देने के लिए एमजीएम हेल्थकेयर ने एशियन हॉस्पिटल के साथ हाथ मिलाया है। इस दौरान एमजीएम हेल्थकेयर चेन्नै के हार्ट फेल्योर प्रोग्राम के डॉक्टर रवि कुमार ने कहा कि औसतन देश में 5 लाख हार्ट फेल्योर के मरीज हैं, जो बहुत बीमार हैं। औसतन साल में 140 से 150 हार्ट ट्रांसप्लांट हो पा रहे हैं। यही स्थिति लंग की भी है। हार्ट फेल मरीजों के लिए अंग के इंतजार का समय बढ़ता जा रहा है। उन्हें सही समय पर अंग नहीं मिल पा रहा है। इसकी एक वजह यह है कि देश में अंगदान कम होता है, लेकिन दूसरी वजह यह भी है कि जो लोग अंगदान के लिए तैयार होते हैं, उनका अंग भी समय पर ले नहीं पाते और वह बर्बाद हो जाता है।

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आधे ऑर्गन ही समय से पहुंच पाते हैं
एनबीटी से बात करते हुए डॉक्टर रवि कुमार ने बताया कि साल 2014 से 2018 के बीच हमने एक स्टडी की, जिसमें पाया कि अंगदान के लिए तैयार हुए मामलों में से केवल 50 पर्सेंट का इस्तेमाल हो पाया, बाकी 50 फीसदी बर्बाद हो गया। इसकी सबसे बड़ी वजह अस्पतालों के बीच कनेक्टिविटी की कमी है। सही समय पर अस्पतालों को अलर्ट नहीं पहुंच पाता है। डोनर मैनेजमेंट, ट्रांसपोर्ट की कमी है। हार्ट निकालने के बाद 2 से 3 घंटे में अस्पताल पहुंचना जरूरी है, हर बार कमर्शल फ्लाइट से इसे लाना संभव नहीं है, इसलिए समय पर अंग का ट्रांसपोर्ट नहीं हो पाता है। इसके लिए स्पेशल फ्लाइट या चार्टर प्लेन की सुविधा की जरूरत है।

उन्होंने ‘नोट्टो’ पर सवाल उठाते हुए कहा कि जहां तक अलर्ट की बात है तो इसके लिए नोट्टो को और काम करना होगा। तमिलनाडु में राज्य स्तर पर ग्रीफ काउंसलर है, जो ब्रेन डेड मरीज के परिजनों को अंगदान के लिए तैयार करता है। यहां पर अलर्ट के लिए सिस्टम 24 घंटे दिन-रात काम करता है। इसके लिए अलग से टीम है, जिस पर खर्च होता है। राज्य की टीम हमेशा ऑनलाइन कनेक्ट रहती है, रिप्लाई करती है। जबकि नॉर्थ में ऐसा नहीं है। एक अंग अगर 2 बजे रात को मिल रहा है तो उसके लिए सुबह तक का इंतजार नहीं किया जा सकता है। इसके लिए रात में ही काम करना होगा। उन्होंने कहा कि इस बाबत स्वास्थ्य मंत्रालय तक बात पहुंचाई गई है, लेकिन हल अभी तक नहीं निकला है।

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