कश्मीरी पंडितों पर सिर्फ सियासत या वाकई गंभीर है मोदी सरकार? जानिए इस सवाल का सच h3>
The Kashmir Files: फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ आने के बाद देशभर में कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) की चर्चा है। कश्मीरी पंडितों के नरसंहार (Kashmiri Pandits Genocide) और वादी से उनके जबरन पलायन (Kashmiri Pandits Exodus) के जख्म हरे हो गए हैं। फिल्म को लेकर सियासत (Politics on Kashmiri Pandits) भी गरम हो गई है। विपक्ष के कई नेताओं ने इसे बीजेपी का प्रॉपगेंडा तक करार दिया है। उनका कहना है कि भगवा पार्टी (BJP) इस पूरे मामले को राजनीतिक फायदे के लिए तूल दे रही है। जबकि सच यह है कि उसने सत्ता में रहते हुए खुद कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ भी नहीं किया। क्या विपक्ष के ये आरोप सही हैं? क्या वाकई मौजूदा सरकार ने कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ नहीं किया है? क्या बीजेपी कश्मीरी पंडितों का मुद्दा उठाकर सिर्फ हिंदुओं का वोट पाना चाहती है? आइए, यहां इस सवाल का सच जानने की कोशिश करते हैं।
मोदी सरकार आने के बाद जम्मू-कश्मीर को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया। अगस्त 2019 में सरकार ने जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। उसने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत प्रदेश को मिला विशेष दर्जा खत्म कर दिया था। यह जम्मू-कश्मीर को लेकर मोदी सरकार के फोकस का सबूत था।
कश्मीरी पंडितों को क्या सहूलियत मिलती है?
हालांकि, हम यहां जम्मू-कश्मीर की चर्चा में नहीं पड़ेंगे। सिर्फ कश्मीरी पंडितों की बात करेंगे। उनके लिए मोदी सरकार ने क्या किया, उसकी बात करेंगे। पिछले साल जम्मू-कश्मीर से जुड़े एक बिल पर चर्चा करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कई अहम जानकारी दी थीं। तब फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ का कहीं कोई जिक्र तक नहीं था। उन्होंने बताया था कि सरकार 44 हजार कश्मीरी पंडित परिवारों को हर महीने 13 हजार रुपये देती है। ये वो कश्मीरी पंडित परिवार हैं जिनके पास रिलीफ कार्ड हैं। तब गृह मंत्री ने यह भी कहा था कि सरकार का 2022 तक सभी विस्थापित कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का लक्ष्य है।
रजिस्टर्ड कश्मीरी प्रवासियों को प्रति परिवार 13,000 रुपये की सीमा के साथ ही 3,250 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह सूखा राशन और नकद राहत मिलती है। दिल्ली में बसे कश्मीरी प्रवासियों के मामले में भारत सरकार और दिल्ली सरकार पंडित समुदाय को दिए जाने वाले पैसे को बांटती है।
2020 के संसदीय पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में 64,827 पंजीकृत प्रवासी परिवार हैं। इनमें 60,489 हिंदू परिवार, 2,609 मुस्लिम परिवार और 1,729 सिख परिवार शामिल हैं। 64,827 परिवारों में से 43,494 परिवार जम्मू में पंजीकृत हैं। 19,338 दिल्ली और 1,995 परिवार अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बसे हुए हैं। 43,494 प्रवासी परिवारों में से 5,248 परिवार प्रवासी शिविरों में रह रहे हैं।
नौकरी के साथ घर देने का बंदोबस्त भी कर रही सरकार
केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले सात सालों में कश्मीरी पंडितों के लिए प्रस्तावित घरों का सिर्फ 17 फीसदी ही पूरा हुआ है। हालांकि, इसके पीछे कई कारण रहे। अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद कश्मीर में कर्फ्यू, कोविड के कारण निर्माण कार्य प्रभावित होना, भूमि की उपलब्धता, सर्दियों के कारण काम न हो पाना इनमें शामिल हैं।
2015 में घोषित प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत केंद्र सरकार ने कश्मीरी प्रवासियों के लिए 3,000 सरकारी नौकरियों की भी मंजूरी दी थी। अब तक 1,739 प्रवासियों को नियुक्त किया गया है। वहीं, 1,098 अन्य को नौकरियों के लिए चुना गया है।
आतंकवादी हमलों और हिंसा के कारण 1990 के बाद से बड़ी संख्या में पंडितों को कश्मीर घाटी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। गृह मंत्रालय के मुताबिक, कई कश्मीरी प्रवासी घाटी के ही अलग-अलग इलाकों में रह रहे हैं। इनमें वेसु (कुलगाम), मट्टन (अनंतनाग), हवल (पुलवामा), नटनसा (कुपवाड़ा), शेखपोरा (बडगाम) और वीरवान (बारामूला) में मौजूदा ट्रांजिट आवास शामिल हैं।
लोगों का कहना है कि सिर्फ मकान बनाकर दे देना काफी नहीं होगा। यह कश्मीरी पंडितों को पिंजरे में डालने जैसा होगा। दहशत तो तब भी रहेगी। लोग काम कैसे करेंगे। अपनी रोजी-रोटी कैसे चलाएंगे। सरकार को इस चीज को भी देखना होगा। यह उसके सामने बड़ी चुनौती है।
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मोदी सरकार आने के बाद जम्मू-कश्मीर को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया। अगस्त 2019 में सरकार ने जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। उसने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत प्रदेश को मिला विशेष दर्जा खत्म कर दिया था। यह जम्मू-कश्मीर को लेकर मोदी सरकार के फोकस का सबूत था।
कश्मीरी पंडितों को क्या सहूलियत मिलती है?
हालांकि, हम यहां जम्मू-कश्मीर की चर्चा में नहीं पड़ेंगे। सिर्फ कश्मीरी पंडितों की बात करेंगे। उनके लिए मोदी सरकार ने क्या किया, उसकी बात करेंगे। पिछले साल जम्मू-कश्मीर से जुड़े एक बिल पर चर्चा करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कई अहम जानकारी दी थीं। तब फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ का कहीं कोई जिक्र तक नहीं था। उन्होंने बताया था कि सरकार 44 हजार कश्मीरी पंडित परिवारों को हर महीने 13 हजार रुपये देती है। ये वो कश्मीरी पंडित परिवार हैं जिनके पास रिलीफ कार्ड हैं। तब गृह मंत्री ने यह भी कहा था कि सरकार का 2022 तक सभी विस्थापित कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का लक्ष्य है।
रजिस्टर्ड कश्मीरी प्रवासियों को प्रति परिवार 13,000 रुपये की सीमा के साथ ही 3,250 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह सूखा राशन और नकद राहत मिलती है। दिल्ली में बसे कश्मीरी प्रवासियों के मामले में भारत सरकार और दिल्ली सरकार पंडित समुदाय को दिए जाने वाले पैसे को बांटती है।
2020 के संसदीय पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में 64,827 पंजीकृत प्रवासी परिवार हैं। इनमें 60,489 हिंदू परिवार, 2,609 मुस्लिम परिवार और 1,729 सिख परिवार शामिल हैं। 64,827 परिवारों में से 43,494 परिवार जम्मू में पंजीकृत हैं। 19,338 दिल्ली और 1,995 परिवार अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बसे हुए हैं। 43,494 प्रवासी परिवारों में से 5,248 परिवार प्रवासी शिविरों में रह रहे हैं।
नौकरी के साथ घर देने का बंदोबस्त भी कर रही सरकार
केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले सात सालों में कश्मीरी पंडितों के लिए प्रस्तावित घरों का सिर्फ 17 फीसदी ही पूरा हुआ है। हालांकि, इसके पीछे कई कारण रहे। अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद कश्मीर में कर्फ्यू, कोविड के कारण निर्माण कार्य प्रभावित होना, भूमि की उपलब्धता, सर्दियों के कारण काम न हो पाना इनमें शामिल हैं।
2015 में घोषित प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत केंद्र सरकार ने कश्मीरी प्रवासियों के लिए 3,000 सरकारी नौकरियों की भी मंजूरी दी थी। अब तक 1,739 प्रवासियों को नियुक्त किया गया है। वहीं, 1,098 अन्य को नौकरियों के लिए चुना गया है।
आतंकवादी हमलों और हिंसा के कारण 1990 के बाद से बड़ी संख्या में पंडितों को कश्मीर घाटी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। गृह मंत्रालय के मुताबिक, कई कश्मीरी प्रवासी घाटी के ही अलग-अलग इलाकों में रह रहे हैं। इनमें वेसु (कुलगाम), मट्टन (अनंतनाग), हवल (पुलवामा), नटनसा (कुपवाड़ा), शेखपोरा (बडगाम) और वीरवान (बारामूला) में मौजूदा ट्रांजिट आवास शामिल हैं।
लोगों का कहना है कि सिर्फ मकान बनाकर दे देना काफी नहीं होगा। यह कश्मीरी पंडितों को पिंजरे में डालने जैसा होगा। दहशत तो तब भी रहेगी। लोग काम कैसे करेंगे। अपनी रोजी-रोटी कैसे चलाएंगे। सरकार को इस चीज को भी देखना होगा। यह उसके सामने बड़ी चुनौती है।