Akash Anand: लंदन से MBA, युवा चेहरा, आकाश आनंद को बसपा का नेशनल कोआर्डिनेटर बनाने से मायावती को क्या फायदा?

171
Akash Anand: लंदन से MBA, युवा चेहरा, आकाश आनंद को बसपा का नेशनल कोआर्डिनेटर बनाने से मायावती को क्या फायदा?

Akash Anand: लंदन से MBA, युवा चेहरा, आकाश आनंद को बसपा का नेशनल कोआर्डिनेटर बनाने से मायावती को क्या फायदा?

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में बहुजन समाजपार्टी ने सतीशचंद्र मिश्रा को आगे करके हर जिले में प्रबुद्ध सम्मेलन के माध्यम से ब्राह्मणों को साथ लाने की रणनीति मायावती की असफल रही है। सबसे बड़ी बात उनका कोर वोटर, जो ये कहा जाता है कि वह बसपा इतर कहीं जा ही नहीं सकता है, उसने 2022 के यूपी चुनाव में बहुत बड़ा झटका दिया है। दलित का गढ़ कहे जाने वाले आगरा में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली है। वहीं, दलित बहुल सीटों पर मायावती को बहुत कम वोट मिले हैं। अब बसपा सुप्रीमो अपने कोर वोटर की तरफ पूरी तरह से लौटने का मन बना चुकी हैं और इसकी शुरुआत उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोआर्डिनेडर बनाकर कर दी है। 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। साथ ही युवा चेहरे को आगे करके कहीं बड़ा दांव तो नहीं चल दिया। मायावती ने एक तीर से कई निशाने साध दिए हैं।

2022 यूपी चुनाव में बसपा को मिले 13 फीसदी वोट
उत्तर प्रदेश में अगर दलित वोटरों की बात करें तो लगभग 22 फीसदी दलित वोटर यूपी में हैं। इतने फीसदी दलित वोटर होने का बावजूद भी बसपा को इस बार मात्र 13 फीसदी वोट मिला है, जोकि 1993 के बाद अबतक का सबसे कम वोट शेयर है। मायावती ने भतीजे को आगे करके एक साफ संदेश दिया है कि वह ही दलित मसीहा हैं। आनंद को आगे कर उन्होंने युवा और दलित वोटरों को साधने की कोशिश की है।

बसपा 2007 में ब्राह्मण और मुस्लिमों को जोड़कर सत्ता पर काबिज जरूर हो गई, लेकिन पार्टी को इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। यही कारण रहा है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर 10 फीसदी तक गिर गया। 80 लोकसभा सीटों पर पार्टी के एक भी सांसद जीत नहीं दर्ज कर सके, जबकि कुछ सीटों पर दलितों के वोट के सहारे सांसद जीत भी सकते थे। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन का फायदा बसपा को जरूर मिला और पार्टी 10 सीटें जीतने में सफल रही, लेकिन इस बार भी बसपा का वोट शेयर नहीं बढ़ा।

एक बार फिर ब्राह्मणों और मुस्लिमों के सहार यूपी की सत्ता आने का सपना नहीं हुआ पूरा
मायावती ने एक बार फिर यूपी में ब्राह्मणों और मुस्लिमों को साथ लेकर सत्ता में आने का सपना देखा और राज्य के हर जिले में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन आयोजित कराया, लेकिन बसपा को इसका कोई फायदा नहीं हुआ, जबकि उसका कोर वोटर दलित उससे छिटक गया। हाल ये हुआ कि दलितों का गढ़ आगरा में बसपा को एक भी सीट उसको नहीं मिली। कई दलित सुरक्षित सीटों पर बसपा को हार का सामना करना पड़ा। यही नहीं उसको उम्मीद से भी कम वोट मिले।

बसपा से दलित कहीं नहीं जाएंगे सोच पड़ी भारी
मायावती की दलितों को लेकर बसपा छोड़कर कहीं न जाने की सोच 2022 के यूपी चुनाव में भारी पड़ गई और पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ गया। पार्टी के कई उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। मायावती को ये बात अब समझ में आ गई। इसी को देखते हुए उन्होंने भतीजे को आगे करके एक चाल चल दी है।

डुबती बसपा की नैया को आनंद नाम की पतवार क्या किनारे लगा पाएगी?
आकाश आनंद का राजनीतिक करियर यूपी विधानसभा चुनाव 2017 से शुरू हुआ। जब मायावती ने उन्हें सहारनपुर की एक रैली से लॉन्च किया। 2017 में मायावती-अखिलेश की संयुक्त रैलियों में आनंद मंच पर दिखे थे। अब सवाल उठता है कि क्या आकाश आनंद 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर दलित युवा वोटरों को लुभाने में सफल रह सकते हैं। हालांकि, अभी तक आकाश आनंद की कोई रैली यूपी में नहीं हुई है। अब जब मायावती ने उन्हें नेशनल कोआर्डिनेटर बना दिया है तो हो सकता है कि वो अब खुलकर राजनीति की पिच पर बैटिंग भी करें। देखने वाली बात ये होगी कि क्या आकाश आनंद अपनी भाषण शैली से कितना विरोधी पार्टियों का मुंह बंद करा सकते हैं।

लंदन से MBA, युवा चेहरा, अब लोकसभा चुनाव में होगी परीक्षा
आकाश आनंद मायावती के भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। आकाश आनंद लंदन के एक कॉलेज से MBA की पढ़ाई की है। आनंद ने ही 2019 में बसपा को सोशल इंजीनियरिंग से जोड़ा था और ट्विटर, फेसबुक पर बसपा की मौजूदगी दिखने लगी। बता दें कि मायावती 2019 के लोकसभा चुनाव में स्टार प्रचारक आनंद को बनाया था। 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी लगभग 2 साल हैं और मायावती ने अभी से भतीजे को आगे करके ये सियासी पिच पर खुलकर बैटिंग करने का हिंट दे दिया है।

राजनीति की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – राजनीति
News