Hijab Judgement : कर्नाटक हाई कोर्ट ने मुस्लिम लड़कियों को क्यों नहीं दी क्लास में हिजाब पहनने की अनुमति, जानें फैसले की 10 बड़ी बातें h3>
नई दिल्ली/बेंगलुरु: कर्नाटक हाई कोर्ट ने क्लास में हिजाब पहनने की मांग को सिरे से खारिज करते हुए कई बड़ी बातें कही हैं। उच्च न्यायायल के तीन जजों की पीठ ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से दी गई एक-एक दलील पर विस्तार से फैसले दिए। हाई कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए जो बातें कहीं, उन्हें हम सभी को ठीक से समझना चाहिए। कोर्ट ने अपने फैसले में सभी बड़े बिंदुओं को शामिल किया। स्कूल यूनिफॉर्म लागू करने के मकसद से लेकर अंतरात्मा की आवाज पर हिजाब पहनने की मांग तक, आपने भी कई दलीलें सुनीं होंगी। अब कोर्ट की दलीलें पढ़कर स्थिति स्पष्ट कर लीजिए। हम उन 10 बड़ी दलीलों को यहां रख रहे हैं जिनके आधार पर क्लास में हिजाब पहनने की अनुमति मांगी गई थी लेकिन कोर्ट ने उन्हें खारिज कर दिया…
1. ड्रेस कोड हटाने की मांग पर: स्कूल ड्रेस कोड संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद 15 (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध), अनुच्छेद 19 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है, यह दलील पूरी तरह आधारहीन है।
2. स्कूल यूनिफॉर्म पर: स्कूल यूनिफॉर्म सद्भाव और आम भाईचारे की भावना को बढ़ावा देते हैं जिनसे धार्मिक या वर्गीय विविधताओं को बल मिलता है। वैसे भी जब तक हिजाब या भगवा को धार्मिक रूप से पवित्र मानते हुए इस पर सवाल उठाने से इनकार किया जाएगा तब तक युवाओं के मन में वैज्ञानिक सोच विकसित करना असंभव हो जाएगा जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 51(ए)(एच) के तहत मानवतावाद, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा ज्ञानार्जन एवं सुधार की भावना का विकास करने की उम्मीद की गई है। सभी विद्यार्थियों को एक सजातीय समूह के रूप में प्रस्तुत करने के लिए स्कूल के नियम संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता की धारणा को ही पुष्ट करते हैं।
3. हिजाब अनिवार्य धार्मिक प्रथा है: इसकी कोई दलील नहीं हो सकती कि पोशाक के तौर पर हिजाब को इस्लाम धर्म का मौलिक अंग माना जाए। ऐसा नहीं है कि हिजाब पहनने की कथित प्रथा का पालन नहीं हो और कोई हिजाब नहीं पहने तो पाप हो जाता है या इस्लाम के मान-सम्मान में बट्टा लग जाता। हिजाब पहनना धर्म नहीं हो सकता है।
4. समान अवसर और सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता: स्कूल ड्रेस कोड से हिजाब, भगवा या धार्मिक प्रतीक के किसी और पोशाक को निकालना रूढ़िवादिता से मुक्ति और खासकर शिक्षा की तरफ बढ़ा एक कदम हो सकता है। यह संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत मिले अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत मिले निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि यह महिला से उनकी स्वायत्तता या उनसे शिक्षा का अधिकार नहीं छीनता क्योंकि वो क्लासरूम से बाहर अपनी पंसद का कोई भी पोशाक पहन सकती हैं।
5. ‘अधिकारों’ को संदर्भों के तहत देखना चाहिए: सभी अधिकारों को उन संदर्भों और परिस्थितियों के आईने में ही देखा जाना चाहिए जिनके तहत इन्हें संविधान में शामिल किया गया था और जिन परिस्थितियों में इनका उभार हुआ। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि मौलिक अधिकारों के उपयोग की मांग किन परिस्थितियों और किन संदर्भों में किया जा रहा है, उसी के आधार पर इसके प्रभाव का दायरा तय होता है।
6. ड्रेस कोड के अनुकूल हिजाब पहनने की अनुमति की मांग: याचिकाकर्ताओं के एक वकील ने बहुत जोर देकर मांग की थी कि ड्रेस कोड के रंग का ही हिजाब पहनने की अनुमति दी जाए। इस पर कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। इससे स्कूल यूनिफॉर्म का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। अगर हिजाब की अनुमति दी गई तो छात्राओं का दो वर्ग बन जाएगा- जो स्कूल ड्रेस के साथ हिजाब पहनेंगी और जो हिजाब के बिना होंगी। इससे सामाजिक-अलगाव की भावना को बल मिलेगा जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है।
7. यूनिफॉर्म लागू करने का मकसद: अगर यूनिफॉर्म के मामले में भी समानता नहीं बरती गई तो यूनिफॉर्म लागू करने का मकसद ही बेकार हो जाएगा। शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध भी संविधान में वर्णित तार्किक प्रतिबंध (Reasonable Restrictions) के अनुकूल हैं जिसे छात्राएं इनकार नहीं कर सकती हैं।
8. अंतरात्मा की आवाज सुनने की स्वतंत्रता: हिजाब पहनना मुस्लिम लड़कियों की अंतरात्मा की आवाज है और उन्हें हिजाब उतारने को मजबूर करना उनकी अंतरआत्मा की आवाज सुनने की आजादी छीनना है। इस दलील में कोई दम नहीं है, इसलिए मामले में राहत देने का कोई आधार नहीं हो सकता है।
9. अंतरआत्मा की आवाज सुनने की स्वतंत्रता और संविधान सभा में हुई बहस: डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा में बहस के दौरान कहा था कि अंतरात्मा की आवाज सुनने की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वंत्रता के अधिकार के दायरे में नहीं आती है। अंतरात्मा की आवाज सुनने की स्वंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार परस्पर आधारित हैं, इस पर वाद-विवाद की पूरी गुंजाइश है।
10. दलीलों का कोई आधार नहीं: मुस्लिम छात्राएं हिजाब के जरिए दुनिया के सामने कोई तार्किक विचार पेश करना चाहती हैं या फिर उनकी इस पर आस्था है या फिर यह उनका सांकेतिक उद्गार, इसका कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया है। छात्राएं यह साबित नहीं कर सकी हैं कि आखिर उनकी अंतरआत्मा ने हिजाब पहनने को क्यों कहा?
हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला।
1. ड्रेस कोड हटाने की मांग पर: स्कूल ड्रेस कोड संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद 15 (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध), अनुच्छेद 19 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है, यह दलील पूरी तरह आधारहीन है।
2. स्कूल यूनिफॉर्म पर: स्कूल यूनिफॉर्म सद्भाव और आम भाईचारे की भावना को बढ़ावा देते हैं जिनसे धार्मिक या वर्गीय विविधताओं को बल मिलता है। वैसे भी जब तक हिजाब या भगवा को धार्मिक रूप से पवित्र मानते हुए इस पर सवाल उठाने से इनकार किया जाएगा तब तक युवाओं के मन में वैज्ञानिक सोच विकसित करना असंभव हो जाएगा जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 51(ए)(एच) के तहत मानवतावाद, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा ज्ञानार्जन एवं सुधार की भावना का विकास करने की उम्मीद की गई है। सभी विद्यार्थियों को एक सजातीय समूह के रूप में प्रस्तुत करने के लिए स्कूल के नियम संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता की धारणा को ही पुष्ट करते हैं।
3. हिजाब अनिवार्य धार्मिक प्रथा है: इसकी कोई दलील नहीं हो सकती कि पोशाक के तौर पर हिजाब को इस्लाम धर्म का मौलिक अंग माना जाए। ऐसा नहीं है कि हिजाब पहनने की कथित प्रथा का पालन नहीं हो और कोई हिजाब नहीं पहने तो पाप हो जाता है या इस्लाम के मान-सम्मान में बट्टा लग जाता। हिजाब पहनना धर्म नहीं हो सकता है।
4. समान अवसर और सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता: स्कूल ड्रेस कोड से हिजाब, भगवा या धार्मिक प्रतीक के किसी और पोशाक को निकालना रूढ़िवादिता से मुक्ति और खासकर शिक्षा की तरफ बढ़ा एक कदम हो सकता है। यह संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत मिले अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत मिले निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि यह महिला से उनकी स्वायत्तता या उनसे शिक्षा का अधिकार नहीं छीनता क्योंकि वो क्लासरूम से बाहर अपनी पंसद का कोई भी पोशाक पहन सकती हैं।
5. ‘अधिकारों’ को संदर्भों के तहत देखना चाहिए: सभी अधिकारों को उन संदर्भों और परिस्थितियों के आईने में ही देखा जाना चाहिए जिनके तहत इन्हें संविधान में शामिल किया गया था और जिन परिस्थितियों में इनका उभार हुआ। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि मौलिक अधिकारों के उपयोग की मांग किन परिस्थितियों और किन संदर्भों में किया जा रहा है, उसी के आधार पर इसके प्रभाव का दायरा तय होता है।
6. ड्रेस कोड के अनुकूल हिजाब पहनने की अनुमति की मांग: याचिकाकर्ताओं के एक वकील ने बहुत जोर देकर मांग की थी कि ड्रेस कोड के रंग का ही हिजाब पहनने की अनुमति दी जाए। इस पर कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। इससे स्कूल यूनिफॉर्म का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। अगर हिजाब की अनुमति दी गई तो छात्राओं का दो वर्ग बन जाएगा- जो स्कूल ड्रेस के साथ हिजाब पहनेंगी और जो हिजाब के बिना होंगी। इससे सामाजिक-अलगाव की भावना को बल मिलेगा जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है।
7. यूनिफॉर्म लागू करने का मकसद: अगर यूनिफॉर्म के मामले में भी समानता नहीं बरती गई तो यूनिफॉर्म लागू करने का मकसद ही बेकार हो जाएगा। शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध भी संविधान में वर्णित तार्किक प्रतिबंध (Reasonable Restrictions) के अनुकूल हैं जिसे छात्राएं इनकार नहीं कर सकती हैं।
8. अंतरात्मा की आवाज सुनने की स्वतंत्रता: हिजाब पहनना मुस्लिम लड़कियों की अंतरात्मा की आवाज है और उन्हें हिजाब उतारने को मजबूर करना उनकी अंतरआत्मा की आवाज सुनने की आजादी छीनना है। इस दलील में कोई दम नहीं है, इसलिए मामले में राहत देने का कोई आधार नहीं हो सकता है।
9. अंतरआत्मा की आवाज सुनने की स्वतंत्रता और संविधान सभा में हुई बहस: डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा में बहस के दौरान कहा था कि अंतरात्मा की आवाज सुनने की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वंत्रता के अधिकार के दायरे में नहीं आती है। अंतरात्मा की आवाज सुनने की स्वंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार परस्पर आधारित हैं, इस पर वाद-विवाद की पूरी गुंजाइश है।
10. दलीलों का कोई आधार नहीं: मुस्लिम छात्राएं हिजाब के जरिए दुनिया के सामने कोई तार्किक विचार पेश करना चाहती हैं या फिर उनकी इस पर आस्था है या फिर यह उनका सांकेतिक उद्गार, इसका कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया है। छात्राएं यह साबित नहीं कर सकी हैं कि आखिर उनकी अंतरआत्मा ने हिजाब पहनने को क्यों कहा?
हिजाब विवाद पर कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला।