UP Chunav Result: मोदी के राशन, योगी के प्रशासन ने तोड़ी विपक्ष की दीवार और अखिलेश-मायावती की गलतियां भी पता हैं क्या?

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UP Chunav Result: मोदी के राशन, योगी के प्रशासन ने तोड़ी विपक्ष की दीवार और अखिलेश-मायावती की गलतियां भी पता हैं क्या?

UP Chunav Result: मोदी के राशन, योगी के प्रशासन ने तोड़ी विपक्ष की दीवार और अखिलेश-मायावती की गलतियां भी पता हैं क्या?

लखनऊ: छठे चरण के चुनाव के दौरान एसपी के उत्साह और वोटरों के एक बड़े वर्ग की चुप्पी पर संघ के प्रचारक की टिप्पणी थी ‘प्रतिक्रिया जब निर्णयात्मक नहीं होती तो उसमें उत्तेजना होती है। निर्णयात्मक प्रतिक्रिया सागर की तरह शांत होती है। यूपी का चुनाव (UP Election 2022) इस बार ऐसा ही है।’ चुनाव के नतीजों ने इस आकलन पर मुहर लगा दी है। वेस्ट यूपी (West UP) से लेकर पूर्वांचल (East UP) तक किसान आंदोलन के शोर, कोविड की अव्यवस्था के सवाल, निघासन में किसानों के हत्या के आरोपों, बेरोजगारी और महंगाई के सवालों के जवाब वोटरों की चुप्पी में छुपे थे। जिसे पढ़ने के लिए शोर से अधिक सन्नाटे की जरूरत थी। विपक्ष की जातीय गोलबंदी की दीवार को मोदी के राशन (narendra modi ration) और योगी के बुलडोजर (yogi bulldozer) वाले प्रशासन ने पश्चिम से पूरब तक तोड़ दिया।

2017 में प्रचंड लहर में गठबंधन के साथ 325 सीटें जीतने वाली बीजेपी की इस बार सीटों का आंकड़ा जरूर कम हुआ है, लेकिन हौसलों की उड़ान कई गुना बढ़ी है। खासकर तब जब प्रदेश के हर कोने में बीजेपी सरकार के लिए हवा में सवाल तैर रहे थे। लेकिन, बीजेपी ने इसे अपनी वोट की फसल गिरने नहीं दी। एसपी ने 32% से अधिक और गठबंधन ने 35% से अधिक वोट हासिल किए जो उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। 2017 में एसपी को 22% और गठबंधन को 29% वोट मिले थे। लेकिन, बीजेपी गठबंधन ने करीब 5% वोट बढ़ाकर नतीजे अपने पक्ष में कर लिए।

अखिलेश यादव नहीं साध पाए क्षेत्रवार गणित
बीजेपी को रोकने के लिए विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा बने अखिलेश यादव ने क्षेत्रवार जातीय गणित तो ठीक सजाई, लेकिन, केमिस्ट्री नहीं साध पाए। किसान आंदोलन की आंच में तप रहे वेस्ट यूपी में बीजेपी को झुलसाने के लिए उन्होंने जयंत चौधरी की आरएलडी के साथ गठजोड़ किया। मुस्लिम-जाट वोटरों का यह समीकरण कागजों में काफी मजबूत था। किसान आंदोलन से भी वोटों का दायरा इससे आगे बढ़ने की उम्मीद थी। लेकिन, बीजेपी चुनाव के ठीक पहले किसान कानून वापस लेकर आंदोलन के ताप को ठंडा कर गई। आंदोलनकारियों के ‘अहम’ को संतुष्ट करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने माफी तक मांगी, दूसरी ओर अखिलेश के मंच पर पार्टी के कई नेताओं को चढ़ने तक की मशक्कत करनी पड़ती थी। नेता तो एक साथ हुए लेकिन उनका वोटर उस शिद्दत से नहीं जुड़ सका।

दंगों के मुद्दे को बीजेपी ने नहीं छोड़ा
बीजेपी ने शामली के पलायन से लेकर मुजफ्फरनगर दंगे के जख्म भरने नहीं दिए। लिहाजा जहां भी एसपी गठबंधन का मुस्लिम उम्मीदवार था, वहां जाटों के वोट ट्रांसफर नहीं हुए। योगी आदित्यनाथ ने पलायन कानून-व्यवस्था के सवाल के जरिए ‘एक वर्ग को ठीक रखने की’ सोच को लगातार खाद-पानी दी। इस पर मुखौटा सुरक्षा का था। शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ आदि में कुछ सीटों की नुकसान की कीमत पर इसका सीधा फायदा अलीगढ़, आगरा, बागपत, नोएडा, गाजियाबाद, हापुड़, शाहजहांपुर सहित कई जिलों में साफ मिला। सरकार के खिलाफ हवा बना रहे मुद्दों की जमीनी पकड़ इतनी कमजोर थी कि लखीमपुर जिले की जिस निघासन विधानसभा में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे पर 4 किसानों सहित 5 लोगों को जीप से कुचलकर मारने का आरोप लगा, उसके सहित जिले की सभी सीटें बीजेपी जीत गई।

वोटरों की नई ‘जाति’ बनी लाभार्थी
बुंदेलखंड सहित पूर्वांचल के तमाम हिस्सों में अखिलेश ने जातीय गुलदस्ता सजाया। महान दल के केशव मौर्य साथ आए, बीजेपी से स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी सहित तीन कैबिनेट मंत्री और कई विधायक तोड़े। बीजेपी के साथी रहे ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा के साथ गठबंधन किया। लेकिन, अखिलेश के इस दांव को विफल करने के लिए बीजेपी ने अपना पूरा जोर गैर-यादव ओबीसी गोलबंदी के जरिए उससे बड़ा वोटर वर्ग बनाने पर लगा दिया। मुफ्त राशन, आवास, खाते में पहुंचते पैसों और हर दिन इसका एहसास कराते बीजेपी कार्यकर्ताओं ने वोटरों को जाति की दहलीज से बाहर निकालकर बीजेपी के पाले में खड़ा कर दिया। बेरोजगारी और महंगाई जैसे सवाल ‘शाश्वत’ मान लिए गए और आवारा पशुओं की समस्याओं के साथ एक बड़े तबके ने यह ‘गिल्ट’ जोड़ लिया कि जानवर तो हमारे ही हैं। इसलिए, यह मुद्दे अपना असर नहीं दिखा पाए।

पीएम मोदी रहे यूपी चुनाव जीत का बड़ा फैक्टर
पीएम नरेंद्र मोदी ने तीसरे चरण के चुनाव के साथ ही आवारा पशुओं के समाधान का आश्वासन देना भी शुरू कर दिया था। योजनाओं के अमल में ‘ट्रस्टेड व ट्रायड’ मोदी-योगी के आश्वासन एसपी के लुभावने घोषणापत्र से अधिक मुफीद रहे। लाभार्थी परक योजनाओं के साथ ही एसपी सरकार में दबंगई और गुंडई के किस्से बीजेपी ने हर मंच पर सुना कर उसकी ‘रिकॉल’ वैल्यू बनाए रखी। असर यह हुआ कि एसपी के कोर वोटर जितने मुखर हुए उसके खिलाफ दूसरी जातियां भी उतनी ही एकजुट हुईं। योजनाओं और सुरक्षा के मुद्दे ने महिला वोटरों को खास तौर पर मोदी से जोड़ा।

सीधी लड़ाई ने बदले समीकरण
2017 के विधानसभा चुनाव में यूपी की लड़ाई त्रिकोणीय थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य पर रही बीएसपी विधानसभा चुनाव में एक अहम दावेदार थी। इसलिए बीजेपी ने लड़ाई का रुख त्रिकोणीय करने के लिए किए हर मंच से बीएसपी को मुख्य लड़ाई बताया। नतीजा यह रहा कि 40% वोट शेयर के साथ बीजेपी तीन-चौथाई सीटें जीत गई थी। इस बार बीजेपी को साफ दिख रहा था कि एसपी का कोर वोटर मुस्लिम-यादव एकजुट है। कुछ ओर छोटे दलों के साथ वोट बेस को एसपी विस्तार देने में लगी हैं। ऐसे में लड़ाई त्रिकोणीय हुई तो नए वोटर जोड़ने की उसकी राह मुश्किल होगी। इसलिए, बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व में लगातार अखिलेश यादव को निशाने पर लिया और बीएसपी पर एक तरह से चुप्पी रही।

मायावती के सक्रिय न होने का भी पड़ा असर
बीएसपी प्रमुख मायावती की न के बराबर सक्रियता ने भी चुनाव को दो ध्रुवीय बना दिया। जातीय गठजोड़ को मजबूत करने के लिए एसपी के साथ आए अधिकांश चेहरों को अखिलेश ने उनकी विधानसभा सीट तक ही सीमित कर दिया। इसलिए, इन दलों का असर काफी हद तक उन सीटों तक ही सीमित रहा, जहां इनके नेता चुनाव लड़ रहे थे। स्वामी प्रसाद मौर्य, धर्म सिंह सैनी सहित बड़े नाम अपनी सीठ तक नहीं बचा पाए। जहां, वोटों की गोलबंदी एक दम मुफीद बैठी वहां, योगी सरकार के सात मंत्री सहित कई बड़े चेहरे तक चुनाव हारे, लेकिन, इसका विस्तार बाकी सीटों पर नहीं हुआ। वहीं, बीजेपी ने बीएसपी के दलित वोट बैंक में बड़ी सेंध लगा डाली। एसपी की उम्मीदों की अगुवाई अखिलेश अकेले कर रहे थे, दूसरी ओर बनारस में एक-एक सीट सहेजने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी गली-गली घूम रहे थे।

योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी

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