बिहारः इस स्कूल में आज भी गुरुकुल की तरह चलते हैं क्लास, जानिए- क्या है वजह h3>
बिहार के पश्चिमी चंपारण के योगापट्टी में पीपल के विशाल पेड़ के नीचे सैकड़ो की संख्या में बैठे बच्चों द्वारा स्वर और व्यंजन के वर्णों के उच्चारण की ध्वनि जब उठती है तो निगाहे बरबस हीं बच्चों की ओर चली जाती है। रास्ते से गुजरने वालों को तो कतई इसका आभास नहीं होता कि पीपल के पेड़ के नीचे जमीन पर बैठे छात्र व छात्राएं 21वी सदी के विद्यालय में अपने बेहतर भविष्य को सवारने में जुटे हैं।शायद सिस्टम भी यही चाहता है कि पेड़ के नीचे ही पढ़कर कई महान लोगों को ज्ञान की प्राप्ति हुई है तो यहां के बच्चे भी इसी व्यवस्था में तपकर सोना बन जाए।विभाग व्यस्था के प्रति कितना संजीदा है कि चार कमरे में 10 वर्ग तक की पढ़ाई के लिए अनुमति दे देता है।लेकिन यह कभी नहीं सोचता की आखिर बच्चे कहा बैठेंगे और मात्र 9 शिक्षक इतने सारे बच्चो को कैसे पढ़ा पाएंगे।
4 जर्जर कमरों में 10 क्लास और 682 विद्यार्थी
बेतिया के योगापट्टी प्रखंड के चौमुखा पंचायत के राजकीय उत्क्रमित हाई स्कूल जहां बुनियादी सुविधाओं के अभाव में नन्हे-मुन्ने बच्चे प्राचीन गुरुकुलों की तरह पेड़ के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं। अब जिसका वर्तमान ही बर्बाद हो रहा है उन बच्चों का भविष्य कैसा होगा इसका अंदाजा लगाना सहज है। माता-पिता बच्चों को पढ़ने भेजते हैं,बच्चे स्कूल आते हैं और शिक्षक उन्हें पढ़ाते हैं।यानि सभी अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं।परंतु शिक्षा विभाग और हमारे स्थानीय जनप्रतिनिधि बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अपने हिस्से के कर्तव्यों का पालन क्यों नहीं कर पाते।विद्यालय में 682 छात्र-छात्राओं के लिए मात्र चार कमरे है,और जो भी कमरा बचा है वह भी जर्जर हो चुका है।न तो किचेन शेड है और न ही शौचालय।चार दिवारी नहीं होने के कारण आवारा पशुओं का भी जमवाड़ा लगता है। स्कूल की जमीन पर कई लोगों अतिक्रमण कर रखा है। इन हालातों में विद्यालय के करीब 60 प्रतिशत छात्र पीपल के पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर अपनी पढ़ाई करते हैं।
विद्यालय में छात्राओं की संख्या अच्छी खासी है। लिहाजा शौचालय नहीं होने के कारण उन्हें काफी परेशानी झेलनी पड़ती है।हल्की बारिस में भी बच्चे और उनके पठन-पाठन की सामग्री भींग जाती है और विद्यालय प्रशासन को मजबूरन बच्चों को छोड़ना पड़ता है।आखिर बच्चे बैठेंगे भी तो कहां। आधुनिक और तकनीकी शिक्षा के दौर में पिछड़ते जा रहे इन बच्चों के अंधकारमय भविष्य का जिम्मेदार कौन होगा।विद्यालय में भवन व चारदीवारी नहीं होने का खामियाजा सैकड़ों बच्चों को अपना भविष्य दाव पर लगाकर चुकाना पड़ रहा है।
छात्रों से अधिक छात्राएं
राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय चौमुखा में कुल 682 छात्र-छात्राएं नामाकित है जो वर्ग एक से दस वर्ग में पढ़ते हैं।जिसमें 305 छात्राएं 377 छात्र है जिनको पढ़ाने के लिए मात्र 9 शिक्षक है। विद्यालय में भवन के नाम पर मात्र पांच कमरे हैं।जिसमें वर्ग आठ व नवम, दसम की छात्राएं पढ़ती है।शेष करीब 300 बच्चे विद्यालय के आगे पीपल के पेड़ के नीचे पढ़ते है।विद्यालय में न तो किचेन शेड है और न हीं शौचालय है और ना ही चार दिवारी।
क्या कहते हैं प्रधानाध्यापक
विद्यालय के प्रधानाध्यापक रामा प्रसाद ने बताया कि विद्यालय में जो भवन हैं वे भी जर्जर हो गए हैं।वही विद्यालय में किचेन शेड तथा चार दिवारी शिक्षकों की कमी के कारण भारी समस्या है।भवन नहीं बनने से पेड़ के नीचे किसी तरह छात्रों को पढ़ाया जा रहा है।शौचालय नहीं होने के कारण छात्राओं को काफी परेशानी है उनका पढ़ाई बाधित होता है। विभाग को इसकी सूचना दी जा चुकी है। इस दिशा में कोई आदेश अभी तक नहीं दिया गया है।
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बिहार के पश्चिमी चंपारण के योगापट्टी में पीपल के विशाल पेड़ के नीचे सैकड़ो की संख्या में बैठे बच्चों द्वारा स्वर और व्यंजन के वर्णों के उच्चारण की ध्वनि जब उठती है तो निगाहे बरबस हीं बच्चों की ओर चली जाती है। रास्ते से गुजरने वालों को तो कतई इसका आभास नहीं होता कि पीपल के पेड़ के नीचे जमीन पर बैठे छात्र व छात्राएं 21वी सदी के विद्यालय में अपने बेहतर भविष्य को सवारने में जुटे हैं।शायद सिस्टम भी यही चाहता है कि पेड़ के नीचे ही पढ़कर कई महान लोगों को ज्ञान की प्राप्ति हुई है तो यहां के बच्चे भी इसी व्यवस्था में तपकर सोना बन जाए।विभाग व्यस्था के प्रति कितना संजीदा है कि चार कमरे में 10 वर्ग तक की पढ़ाई के लिए अनुमति दे देता है।लेकिन यह कभी नहीं सोचता की आखिर बच्चे कहा बैठेंगे और मात्र 9 शिक्षक इतने सारे बच्चो को कैसे पढ़ा पाएंगे।
4 जर्जर कमरों में 10 क्लास और 682 विद्यार्थी
बेतिया के योगापट्टी प्रखंड के चौमुखा पंचायत के राजकीय उत्क्रमित हाई स्कूल जहां बुनियादी सुविधाओं के अभाव में नन्हे-मुन्ने बच्चे प्राचीन गुरुकुलों की तरह पेड़ के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं। अब जिसका वर्तमान ही बर्बाद हो रहा है उन बच्चों का भविष्य कैसा होगा इसका अंदाजा लगाना सहज है। माता-पिता बच्चों को पढ़ने भेजते हैं,बच्चे स्कूल आते हैं और शिक्षक उन्हें पढ़ाते हैं।यानि सभी अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं।परंतु शिक्षा विभाग और हमारे स्थानीय जनप्रतिनिधि बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अपने हिस्से के कर्तव्यों का पालन क्यों नहीं कर पाते।विद्यालय में 682 छात्र-छात्राओं के लिए मात्र चार कमरे है,और जो भी कमरा बचा है वह भी जर्जर हो चुका है।न तो किचेन शेड है और न ही शौचालय।चार दिवारी नहीं होने के कारण आवारा पशुओं का भी जमवाड़ा लगता है। स्कूल की जमीन पर कई लोगों अतिक्रमण कर रखा है। इन हालातों में विद्यालय के करीब 60 प्रतिशत छात्र पीपल के पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर अपनी पढ़ाई करते हैं।
विद्यालय में छात्राओं की संख्या अच्छी खासी है। लिहाजा शौचालय नहीं होने के कारण उन्हें काफी परेशानी झेलनी पड़ती है।हल्की बारिस में भी बच्चे और उनके पठन-पाठन की सामग्री भींग जाती है और विद्यालय प्रशासन को मजबूरन बच्चों को छोड़ना पड़ता है।आखिर बच्चे बैठेंगे भी तो कहां। आधुनिक और तकनीकी शिक्षा के दौर में पिछड़ते जा रहे इन बच्चों के अंधकारमय भविष्य का जिम्मेदार कौन होगा।विद्यालय में भवन व चारदीवारी नहीं होने का खामियाजा सैकड़ों बच्चों को अपना भविष्य दाव पर लगाकर चुकाना पड़ रहा है।
छात्रों से अधिक छात्राएं
राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय चौमुखा में कुल 682 छात्र-छात्राएं नामाकित है जो वर्ग एक से दस वर्ग में पढ़ते हैं।जिसमें 305 छात्राएं 377 छात्र है जिनको पढ़ाने के लिए मात्र 9 शिक्षक है। विद्यालय में भवन के नाम पर मात्र पांच कमरे हैं।जिसमें वर्ग आठ व नवम, दसम की छात्राएं पढ़ती है।शेष करीब 300 बच्चे विद्यालय के आगे पीपल के पेड़ के नीचे पढ़ते है।विद्यालय में न तो किचेन शेड है और न हीं शौचालय है और ना ही चार दिवारी।
क्या कहते हैं प्रधानाध्यापक
विद्यालय के प्रधानाध्यापक रामा प्रसाद ने बताया कि विद्यालय में जो भवन हैं वे भी जर्जर हो गए हैं।वही विद्यालय में किचेन शेड तथा चार दिवारी शिक्षकों की कमी के कारण भारी समस्या है।भवन नहीं बनने से पेड़ के नीचे किसी तरह छात्रों को पढ़ाया जा रहा है।शौचालय नहीं होने के कारण छात्राओं को काफी परेशानी है उनका पढ़ाई बाधित होता है। विभाग को इसकी सूचना दी जा चुकी है। इस दिशा में कोई आदेश अभी तक नहीं दिया गया है।