कचरे में कमाई का गणित: आधे भुगतान के बावजूद बीवीजी की कचरे से होती रही ‘बल्ले-बल्ले’ | jaipur news bvg nagar nigam heritage greater | Patrika News h3>
फायदे का गणित : शहर गंदा ही रहा और निगम का खजाना हो गया साफ
निगम ने कंपनी को 50 फीसदी दिया और कंपनी ने वेंडर्स को 60 फीसदी देकर हर माह सवा करोड़ बनाए, 55 माह में कंपनी ने ठेका सबलेट कर 50 करोड़ रुपए से अधिक कमाए, कई वेंडर्स को नहीं दिए पूरे पैसे
जयपुर
Published: January 24, 2022 09:44:02 am
जयपुर. घर-घर कचरा संग्रहण करने वाली कंपनी बीवीजी का ध्यान शहर की सफाई पर कम और पैसा कमाने पर ज्यादा रहा। इसके लिए निगम के अधिकारियों का भी समय-समय पर पूरा साथ मिला। तभी तो कंपनी ने न सिर्फ अनुबंध की शर्तों को तोड़कर थर्ड पार्टी को काम बांट दिया, बल्कि बिना कुछ किए ही सालाना एक से सवा करोड़ रुपए कमाती रही। यही वजह है कि पांच वर्ष से कंपनी बिना पूरा पैसा मिले हुए भी काम करती रही। बीवीजी कंपनी ने कचरे में कमाई का रास्ता निकाल लिया और इसी से निगम का खजाना साफ होता रहा। राजधानी में काम शुरू करने से अब तक बीवीजी ने ऐसा कर अब तक 50 करोड़ रुपए से अधिक कमा चुकी है।
दरअसल, कंपनी ने जयपुर नगर निगम से घर-घर कचरा संग्रहण का काम लेने के बाद ठेका दूसरे वेंडर्स को सबलेट कर दिया। निगम से एक टन कचरा उठाने के 1800 रुपए लिए गए हैं तो वेंडर्स को महज 1000 रुपए प्रति टन का अनुबंध किया गया। निगम में बीवीजी कंपनी जो बिल पेश करती उसका 50 फीसदी सामान्य तौर पर भुगतान कर दिया जाता। इसमें से कंपनी अपने वेंडर्स को 60 फीसदी भुगतान कर देती।
ऐसे समझें कमाई का गणित – बीवीजी कंपनी शहरभर से 1500 टन कचरा प्रतिदिन उठाती है। प्रतिदिन करीब 1800 रुपए निगम ने रेट निर्धारित कर रखी है। ऐसे में प्रतिदिन का खर्चा 27 लाख रुपए हो जाता है। महीने में यह आठ करोड़ रुपए बैठ जाता है। इसमें से निगम से 50 फीसदी यानी करीब चार करोड़ रुपए का भुगतान हो जाता है।
– बीवीजी अपने वेंडर्स को औसतन 1000 रुपए प्रति टन का भुगतान करती है। ऐसे में प्रतिदिन 15 लाख और महीने का 4.5 करोड़ रुपए हो जाता है। इसमें से बीवीजी 60 फीसदी यानी 2.7 करोड़ रुपए का भुगतान कर देती है। ऐसा कर कंपनी को एक से सवा करोड़ रुपए तक का सीधा फायदा हो जाता है।
इसलिए विवाद पहुंचा कोर्ट में श्री गरुणा मैनेजमेंट सर्विस प्रा.लि. ने वर्ष 2017 से 2019 तक बीवीजी के साथ काम किया। इस समयावधि का बीवीजी पर 4.88 करोड़ रुपए बकाया है। इसके लिए कंपनी के निदेशक रिषिकांत यादव बीवीजी से लेकर नगर निगम के आला अधिकारियों को कई बार लिख चुके हैं। लेकिन, अब तक कोई कार्रवाई नहीं हई।
ठेका सबलेट के बावजूद कार्रवाई नहीं गौर करने वाली बात यह है कि जब निगम को पता चला कि बीवीजी ने काम को दूसरों को दे दिया है, इसके बाद भी कंपनी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि, यह शर्तों का उल्लंघन है। बीवीजी और नगर निगम के अनुबंध पर गौर करें तो उसमें काम को सबलेट करने का अधिकार नहीं है।
हैरिटेज में काम खत्म, ग्रेटर का मामला कोर्ट में अनुबंध की अनदेखी के चलते हैरिटेज नगर निगम प्रशासन ने पिछले महीने कंपनी से करार खत्म कर लिया। कचरा उठाने के काम निगम अपने स्तर पर कर रहा है। हालांकि, अभी ग्रेटर नगर निगम में कंपनी काम कर रही है।
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फायदे का गणित : शहर गंदा ही रहा और निगम का खजाना हो गया साफ
निगम ने कंपनी को 50 फीसदी दिया और कंपनी ने वेंडर्स को 60 फीसदी देकर हर माह सवा करोड़ बनाए, 55 माह में कंपनी ने ठेका सबलेट कर 50 करोड़ रुपए से अधिक कमाए, कई वेंडर्स को नहीं दिए पूरे पैसे
जयपुर
Published: January 24, 2022 09:44:02 am
जयपुर. घर-घर कचरा संग्रहण करने वाली कंपनी बीवीजी का ध्यान शहर की सफाई पर कम और पैसा कमाने पर ज्यादा रहा। इसके लिए निगम के अधिकारियों का भी समय-समय पर पूरा साथ मिला। तभी तो कंपनी ने न सिर्फ अनुबंध की शर्तों को तोड़कर थर्ड पार्टी को काम बांट दिया, बल्कि बिना कुछ किए ही सालाना एक से सवा करोड़ रुपए कमाती रही। यही वजह है कि पांच वर्ष से कंपनी बिना पूरा पैसा मिले हुए भी काम करती रही। बीवीजी कंपनी ने कचरे में कमाई का रास्ता निकाल लिया और इसी से निगम का खजाना साफ होता रहा। राजधानी में काम शुरू करने से अब तक बीवीजी ने ऐसा कर अब तक 50 करोड़ रुपए से अधिक कमा चुकी है।
दरअसल, कंपनी ने जयपुर नगर निगम से घर-घर कचरा संग्रहण का काम लेने के बाद ठेका दूसरे वेंडर्स को सबलेट कर दिया। निगम से एक टन कचरा उठाने के 1800 रुपए लिए गए हैं तो वेंडर्स को महज 1000 रुपए प्रति टन का अनुबंध किया गया। निगम में बीवीजी कंपनी जो बिल पेश करती उसका 50 फीसदी सामान्य तौर पर भुगतान कर दिया जाता। इसमें से कंपनी अपने वेंडर्स को 60 फीसदी भुगतान कर देती।
ऐसे समझें कमाई का गणित – बीवीजी कंपनी शहरभर से 1500 टन कचरा प्रतिदिन उठाती है। प्रतिदिन करीब 1800 रुपए निगम ने रेट निर्धारित कर रखी है। ऐसे में प्रतिदिन का खर्चा 27 लाख रुपए हो जाता है। महीने में यह आठ करोड़ रुपए बैठ जाता है। इसमें से निगम से 50 फीसदी यानी करीब चार करोड़ रुपए का भुगतान हो जाता है।
– बीवीजी अपने वेंडर्स को औसतन 1000 रुपए प्रति टन का भुगतान करती है। ऐसे में प्रतिदिन 15 लाख और महीने का 4.5 करोड़ रुपए हो जाता है। इसमें से बीवीजी 60 फीसदी यानी 2.7 करोड़ रुपए का भुगतान कर देती है। ऐसा कर कंपनी को एक से सवा करोड़ रुपए तक का सीधा फायदा हो जाता है।
इसलिए विवाद पहुंचा कोर्ट में श्री गरुणा मैनेजमेंट सर्विस प्रा.लि. ने वर्ष 2017 से 2019 तक बीवीजी के साथ काम किया। इस समयावधि का बीवीजी पर 4.88 करोड़ रुपए बकाया है। इसके लिए कंपनी के निदेशक रिषिकांत यादव बीवीजी से लेकर नगर निगम के आला अधिकारियों को कई बार लिख चुके हैं। लेकिन, अब तक कोई कार्रवाई नहीं हई।
ठेका सबलेट के बावजूद कार्रवाई नहीं गौर करने वाली बात यह है कि जब निगम को पता चला कि बीवीजी ने काम को दूसरों को दे दिया है, इसके बाद भी कंपनी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि, यह शर्तों का उल्लंघन है। बीवीजी और नगर निगम के अनुबंध पर गौर करें तो उसमें काम को सबलेट करने का अधिकार नहीं है।
हैरिटेज में काम खत्म, ग्रेटर का मामला कोर्ट में अनुबंध की अनदेखी के चलते हैरिटेज नगर निगम प्रशासन ने पिछले महीने कंपनी से करार खत्म कर लिया। कचरा उठाने के काम निगम अपने स्तर पर कर रहा है। हालांकि, अभी ग्रेटर नगर निगम में कंपनी काम कर रही है।
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