Pegasus Spyware : अमेरिका का कुख्यात वॉटरगेट कांड क्या था, जिससे हो रही ‘पेगासस स्नूपगेट’ की तुलना h3>
हाइलाइट्स
- पेगासस स्नूपगेट की हो रही है अमेरिका के कुख्यात वॉटरगेट कांड से तुलना
- पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने पेगासस स्नूपगेट को वॉटरगेट से भी खतरनाक बताया
- वॉटरगेट कांड डेमोक्रेटिक पार्टी की जासूसी से जुड़ा था, राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को देना पड़ा था इस्तीफा
नई दिल्ली
पेगासस स्पाईवेयर के जरिए कथित तौर पर कई पत्रकारों, ऐक्टिविस्टों और कुछ विपक्षी नेताओं की जासूसी के खुलासे के बाद विपक्ष सरकार पर हमलावर है। राज्यसभा में तो गुरुवार को टीएमसी सांसद ने इस मसले पर बयान दे रहे आईटी मिनिस्टर के हाथ से पेपर छीन लिया और उसके टुकड़े-टुकड़े कर हवा में उछाल दिया। अब टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पेगासस जासूसी मामले को अमेरिका के उस कुख्यात ‘वॉटरगेट’ से भी खतरनाक बताया है, जिसने तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की कुर्सी ले ली थी। आइए समझते हैं कि ममता ने क्या आरोप लगाए हैं और क्या था ‘वॉटरगेट’ कांड।
पेगासस मामला महा-आपातकाल: ममता बनर्जी
बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट के जजों, पत्रकारों, नेताओं और अन्य की जासूसी कराने का प्रकरण अमेरिका में रिचर्ड निक्सन के शासनकाल में सामने आए ‘वॉटरगेट’ प्रकरण से भी अधिक खतरनाक है। उन्होंने कहा कि स्पाईवेयर के दुरुपयोग के खिलाफ नागरिक समाज के लोगों, छात्रों और पत्रकारों को उठ खड़ा होना चाहिए। बनर्जी ने कहा कि स्पाईवेयर लगाने वालों के पास प्रशांत किशोर और उनके बीच हुईं चुनाव रणनीति बैठकों के बारे में भी विस्तृत जानकारी थी।
ममता ने कथित जासूसी को ‘महा-आपातकाल’ करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी की अगुआई वाली सरकार ने सभी निष्पक्ष संस्थानों का राजनीतिकरण कर दिया है। ममता बनर्जी ने कहा, ‘पेगासस, वॉटरगेट स्कैंडल से भी अधिक खतरनाक है, यह महा-आपातकाल है।’ दरअसल, पेगासस के जरिए जिन लोगों की कथित तौर पर जासूसी का शक है, उनमें ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी और हालिया पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी के लिए काम करने वाले पेशेवर चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का भी नाम है।
क्या था वॉटरगेट स्कैंडल?
70 के दशक में अमेरिका में सामने आए इस जासूसी कांड से वहां सियासी भूचाल आ गया था। यहां तक कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को इस्तीफा देना पड़ा था। मामला डेमोक्रेटिक पार्टी की जासूसी कराने से जुड़ा था, जिसका खुलासा जून 1972 में हुआ था। निक्सन ने चुनाव जीतने के लिए विपक्षी दल की जासूसी कराई, ताकि उन्हें पता चल सके कि डेमोक्रेटिक पार्टी की चुनाव रणनीति और तैयारियां क्या हैं।1969 में वह अमेरिका के राष्ट्रपति बने। बेहद महत्वकांक्षी निक्सन ने अपने 4 साल के कार्यकाल के आखिरी समय में वो कर दिया जिसे वॉटरगेट कांड के रूप में दुनिया जानती है। उन्होंने चुनाव जीतने के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी की तैयारियों को जानने के लिए अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल किया। उन्होंने कुछ लोगों को डेमोक्रेटिक पार्टी की नेशनल कमिटी के ऑफिस यानी कि वॉटरगेट अपार्टमेंट-होटल कॉम्प्लेक्स की जासूसी का काम सौंपा। वॉटरगेट कॉम्पलेक्स 6 इमारतों का एक समूह है।
डेमोक्रेटिक पार्टी के ऑफिस में लगाई गई थी खुफिया डिवाइस
इन लोगों ने वॉटरगेट कॉम्प्लेक्स में एक खुफिया डिवाइस लगा दी, जिसके जरिए वहां की बातचीत को खुफिया तरीके से सुना जा सकता था। इस डिवाइस के जरिए रिचर्ड निक्सन के खास लोग डेमोक्रेटिक पार्टी की हर खुफिया जानकारी को पता कर लेते थे। इस बीच उस डिवाइस ने चुनाव से एक साल पहले ही अचानक काम करना बंद कर दिया। जिसके बाद उसे ठीक करने के लिए एक स्पेशल टीम बनाई गई।
Mamata Banerjee on Pegasus: फोन दिखाकर ममता बोलीं- मैंने तो प्लास्टर करवा लिया, अब क्या करेगी सरकार
पकड़ी गई निक्सन की खुफिया टीम
यह टीम 17 जून, 1972 की रात को डिवाइस को ठीक करने के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी की नेशनल कमिटी के ऑफिस में घुसी। अभी वे डिवाइस के तारों को सही ही कर रहे थे कि मौके पर पहुंची पुलिस ने इन सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया। सेंधमारों की टीम में 5 लोग शामिल थे, जिन्हें गिरफ्तार किया गया। इसके बाद यह खबर अमेरिका के सभी समाचारपत्रों में वॉटरगेट स्कैंडल के नाम से छपी।
पुलिस की तफ्तीश में खुली निक्सन की चाल की पोल
इस विवाद को लेकर रिचर्ड निक्सन को खासी आलोचना का सामना करना पड़ा। शुरुआत में तो रिचर्ड निक्सन का नाम सामने नहीं आया लेकिन जैसे-जैसे पुलिस की तफ्तीश बढ़ी, वैसे-वैसे रिपब्लिकन पार्टी के राजनेताओं के कनेक्शन सामने आने लगे। मई, 1973 को अमेरिकी सीनेट में वॉटरगेट कांड को लेकर सुनवाई शुरू हुई। जिसके बाद जब निक्सन को लगा कि अपनी पार्टी की सहयोगियों के कारण वे भी फंस जाएंगे तो उन्होंने सभी आरोपियों के इस्तीफे मांग लिए।
दूसरी बार भी चुनाव जीते, पर लग गया महाभियोग
इस बीच अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हुए, जिसमें वॉटरगेट के साए को पीछे छोड़ते हुए रिचर्ड निक्सन ने फिर से जीत हासिल की। 30 अक्टूबर, 1973 को निक्सन के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया। जिसके बाद निक्सन के ऊपर कोर्ट के काम में दखल देने, राष्ट्रपति की शक्तियों का दुरुपयोग करने और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सामने गवाही देने न आने के लिए उन पर आरोप तय किए गए।
दबाव में कार्यकाल के बीच दिया इस्तीफा
6 फरवरी 1974 से निक्सन के ऊपर महाभियोग पर सुनवाई शुरू की गई। जब निक्सन के देखा कि उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा है और उन्हें बेइज्जत कर राष्ट्रपति पद से हटा दिया जाएगा तो उन्होंने 8 अगस्त, 1973 को टीवी पर लाइव कार्यक्रम के दौरान अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। अमेरिका के इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी मौजूदा राष्ट्रपति को अपने कार्यकाल के दौरान ही इस्तीफा देना पड़ा।
वॉटरगेट स्कैंडल के बाद आखिरकार रिचर्ड निक्सन को अमेरिकी राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा था
हाइलाइट्स
- पेगासस स्नूपगेट की हो रही है अमेरिका के कुख्यात वॉटरगेट कांड से तुलना
- पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने पेगासस स्नूपगेट को वॉटरगेट से भी खतरनाक बताया
- वॉटरगेट कांड डेमोक्रेटिक पार्टी की जासूसी से जुड़ा था, राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को देना पड़ा था इस्तीफा
पेगासस स्पाईवेयर के जरिए कथित तौर पर कई पत्रकारों, ऐक्टिविस्टों और कुछ विपक्षी नेताओं की जासूसी के खुलासे के बाद विपक्ष सरकार पर हमलावर है। राज्यसभा में तो गुरुवार को टीएमसी सांसद ने इस मसले पर बयान दे रहे आईटी मिनिस्टर के हाथ से पेपर छीन लिया और उसके टुकड़े-टुकड़े कर हवा में उछाल दिया। अब टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पेगासस जासूसी मामले को अमेरिका के उस कुख्यात ‘वॉटरगेट’ से भी खतरनाक बताया है, जिसने तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की कुर्सी ले ली थी। आइए समझते हैं कि ममता ने क्या आरोप लगाए हैं और क्या था ‘वॉटरगेट’ कांड।
पेगासस मामला महा-आपातकाल: ममता बनर्जी
बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि पेगासस स्पाईवेयर का इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट के जजों, पत्रकारों, नेताओं और अन्य की जासूसी कराने का प्रकरण अमेरिका में रिचर्ड निक्सन के शासनकाल में सामने आए ‘वॉटरगेट’ प्रकरण से भी अधिक खतरनाक है। उन्होंने कहा कि स्पाईवेयर के दुरुपयोग के खिलाफ नागरिक समाज के लोगों, छात्रों और पत्रकारों को उठ खड़ा होना चाहिए। बनर्जी ने कहा कि स्पाईवेयर लगाने वालों के पास प्रशांत किशोर और उनके बीच हुईं चुनाव रणनीति बैठकों के बारे में भी विस्तृत जानकारी थी।
ममता ने कथित जासूसी को ‘महा-आपातकाल’ करार दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी की अगुआई वाली सरकार ने सभी निष्पक्ष संस्थानों का राजनीतिकरण कर दिया है। ममता बनर्जी ने कहा, ‘पेगासस, वॉटरगेट स्कैंडल से भी अधिक खतरनाक है, यह महा-आपातकाल है।’ दरअसल, पेगासस के जरिए जिन लोगों की कथित तौर पर जासूसी का शक है, उनमें ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी और हालिया पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में टीएमसी के लिए काम करने वाले पेशेवर चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का भी नाम है।
क्या था वॉटरगेट स्कैंडल?
70 के दशक में अमेरिका में सामने आए इस जासूसी कांड से वहां सियासी भूचाल आ गया था। यहां तक कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को इस्तीफा देना पड़ा था। मामला डेमोक्रेटिक पार्टी की जासूसी कराने से जुड़ा था, जिसका खुलासा जून 1972 में हुआ था। निक्सन ने चुनाव जीतने के लिए विपक्षी दल की जासूसी कराई, ताकि उन्हें पता चल सके कि डेमोक्रेटिक पार्टी की चुनाव रणनीति और तैयारियां क्या हैं।1969 में वह अमेरिका के राष्ट्रपति बने। बेहद महत्वकांक्षी निक्सन ने अपने 4 साल के कार्यकाल के आखिरी समय में वो कर दिया जिसे वॉटरगेट कांड के रूप में दुनिया जानती है। उन्होंने चुनाव जीतने के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी की तैयारियों को जानने के लिए अपनी पूरी ताकत का इस्तेमाल किया। उन्होंने कुछ लोगों को डेमोक्रेटिक पार्टी की नेशनल कमिटी के ऑफिस यानी कि वॉटरगेट अपार्टमेंट-होटल कॉम्प्लेक्स की जासूसी का काम सौंपा। वॉटरगेट कॉम्पलेक्स 6 इमारतों का एक समूह है।
डेमोक्रेटिक पार्टी के ऑफिस में लगाई गई थी खुफिया डिवाइस
इन लोगों ने वॉटरगेट कॉम्प्लेक्स में एक खुफिया डिवाइस लगा दी, जिसके जरिए वहां की बातचीत को खुफिया तरीके से सुना जा सकता था। इस डिवाइस के जरिए रिचर्ड निक्सन के खास लोग डेमोक्रेटिक पार्टी की हर खुफिया जानकारी को पता कर लेते थे। इस बीच उस डिवाइस ने चुनाव से एक साल पहले ही अचानक काम करना बंद कर दिया। जिसके बाद उसे ठीक करने के लिए एक स्पेशल टीम बनाई गई।
Mamata Banerjee on Pegasus: फोन दिखाकर ममता बोलीं- मैंने तो प्लास्टर करवा लिया, अब क्या करेगी सरकार
पकड़ी गई निक्सन की खुफिया टीम
यह टीम 17 जून, 1972 की रात को डिवाइस को ठीक करने के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी की नेशनल कमिटी के ऑफिस में घुसी। अभी वे डिवाइस के तारों को सही ही कर रहे थे कि मौके पर पहुंची पुलिस ने इन सभी लोगों को गिरफ्तार कर लिया। सेंधमारों की टीम में 5 लोग शामिल थे, जिन्हें गिरफ्तार किया गया। इसके बाद यह खबर अमेरिका के सभी समाचारपत्रों में वॉटरगेट स्कैंडल के नाम से छपी।
पुलिस की तफ्तीश में खुली निक्सन की चाल की पोल
इस विवाद को लेकर रिचर्ड निक्सन को खासी आलोचना का सामना करना पड़ा। शुरुआत में तो रिचर्ड निक्सन का नाम सामने नहीं आया लेकिन जैसे-जैसे पुलिस की तफ्तीश बढ़ी, वैसे-वैसे रिपब्लिकन पार्टी के राजनेताओं के कनेक्शन सामने आने लगे। मई, 1973 को अमेरिकी सीनेट में वॉटरगेट कांड को लेकर सुनवाई शुरू हुई। जिसके बाद जब निक्सन को लगा कि अपनी पार्टी की सहयोगियों के कारण वे भी फंस जाएंगे तो उन्होंने सभी आरोपियों के इस्तीफे मांग लिए।
दूसरी बार भी चुनाव जीते, पर लग गया महाभियोग
इस बीच अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हुए, जिसमें वॉटरगेट के साए को पीछे छोड़ते हुए रिचर्ड निक्सन ने फिर से जीत हासिल की। 30 अक्टूबर, 1973 को निक्सन के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया। जिसके बाद निक्सन के ऊपर कोर्ट के काम में दखल देने, राष्ट्रपति की शक्तियों का दुरुपयोग करने और हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सामने गवाही देने न आने के लिए उन पर आरोप तय किए गए।
दबाव में कार्यकाल के बीच दिया इस्तीफा
6 फरवरी 1974 से निक्सन के ऊपर महाभियोग पर सुनवाई शुरू की गई। जब निक्सन के देखा कि उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा है और उन्हें बेइज्जत कर राष्ट्रपति पद से हटा दिया जाएगा तो उन्होंने 8 अगस्त, 1973 को टीवी पर लाइव कार्यक्रम के दौरान अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। अमेरिका के इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी मौजूदा राष्ट्रपति को अपने कार्यकाल के दौरान ही इस्तीफा देना पड़ा।
वॉटरगेट स्कैंडल के बाद आखिरकार रिचर्ड निक्सन को अमेरिकी राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा था