राहुल न तो ममता हैं और न कांग्रेस टीएमसी… क्‍या 100 साल पुरानी पार्टी की नाव पार लगा सकेंगे PK?

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राहुल न तो ममता हैं और न कांग्रेस टीएमसी… क्‍या 100 साल पुरानी पार्टी की नाव पार लगा सकेंगे PK?


राहुल न तो ममता हैं और न कांग्रेस टीएमसी… क्‍या 100 साल पुरानी पार्टी की नाव पार लगा सकेंगे PK?

नई दिल्‍ली
क्‍या चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर डूबती कांग्रेस की नैया पार लगा सकेंगे? इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष ने हमारे सहयोगी ‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ में एक दिलचस्‍प लेख लिखा है। उन्‍होंने लेख की शुरुआत की है नवजोत सिंह सिद्धू से। कांग्रेस आलाकमान के घटते दबदबे की ओर इशारा करते हुए सागरिका ने लिखा है कि सिद्धू को कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी ने प्रदेश पार्टी प्रमुख नियुक्‍त किया। इंदिरा गांधी का समय होता तो शायद यह मुमकिन नहीं था। तब राज्‍य के नेता अपनी ताकत को इस तरह नहीं दिखा सकते थे। पार्टी में रहने की एकमात्र शर्त उसके साथ वफादारी होती थी। कारण है कि उस समय इंदिरा ही पार्टी का चेहरा थीं। उन्‍हीं के नाम पर कांग्रेस को वोट मिलते थे।

लेख में कहा गया है कि अब की स्थिति 1970 जैसी नहीं है। अभी कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्‍व काफी कमजोर हो गया है। आज सिद्धू जैसे पार्टी में बहुत लेट एंट्री करने वाले कद्दावर मुख्‍यमंत्री पर खुलकर हमला करते हैं। इस हिमाकत का उन्‍हें ‘पुरस्‍कार’ भी मिल जाता है। पंजाब में जो कुछ भी हुआ, वह न तो यह दिखाता है कि कांग्रेस मजबूत है, न यही कि आलाकमान का पार्टी पर कमांड है। एक के बाद एक संकट से घिर रही 100 साल पुरानी पार्टी को इसी कारण 44 साल के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ बातचीत शुरू करनी पड़ी है।

गांधी परिवार के साथ प्रशांंत की बैठकें
गांधी परिवार के साथ प्रशांत किशोर की बैठकों ने अटकलों का बाजार गरम कर दिया है। लेकिन, लेख में सवाल उठाया गया है कि क्‍या प्रशांत पार्टी को मौजूदा संकट से उबार पाएंगे? पार्टी में दो दशकों से कांग्रेस वर्किंग कमेटी में कोई चुनाव नहीं हुआ है। पार्टी में चुनाव अटके हुए हैं। इसकी कमान एक परिवार के हाथ में रही है जो अब चुनाव नहीं जीत सकता है।

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लेख के अनुसार, कांग्रेस लगातार दो आम चुनाव बुरी तरह से हारी है। बीजेपी के दबदबे के आगे वह उभरने में नाकाम रही है। काडर गायब हो गया है। स्‍थानीय नेताओं की अनदेखी की जाती रही है। हर एक लोकतंत्र को विपक्ष की जरूरत होती है। लेकिन, कांग्रेस के रिवाइवल के बिना भारत में विपक्ष में दोबारा जान पड़ने के आसार कम हैं।

तमाम दलों के साथ काम कर चुके हैं पीके
लेख में प्रशांत के राजनीतिक कौशल को सराहा गया है। लेकिन, साथ-साथ मौजूदा कांग्रेस और उसके आलाकमान की स्थितियों का भी हवाला दिया गया है। मसलन, कहा गया कि किशोर ने तकरीबन सभी राजनीतिक दलों के साथ काम किया है। 2014 में नरेंद्र मोदी के कैंपेन से लेकर 2015 में बिहार में नीतीश कुमार, 2017 में पंजाब में अमरिंदर सिंह, 2019 में आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी और 2021 में ममता बनर्जी तक को उन्‍होंने सलाह दी है।

इनमें से ज्‍यादातर कैंपेन स्‍थानीय दलों से जुड़े थे। इसमें काडर की भी बड़ी भूमिका थी। उदाहरण के लिए जनता को जोड़ने के लिए आंध्र में जगन रेड्डी ने पदयात्रा की थी। ममता बनर्जी पहले से ही बंगाल में बेहद लोकप्रिय रही हैं। किशोर की सेवाएं लेने से पहले ही वह दो बार बड़े बहुमत से चुनाव जीत चुकी थीं।

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यूपी चुनाव में फेल रहे थे प्रशांत
घोष ने लिखा कि राहुल न तो ममता हैं और न कांग्रेस टीएमसी। पंजाब संकट ने दिखाया है कि कांग्रेस में हर स्‍तर पर नेतृत्‍व है। इसके अलावा राहुल की ममता जैसी करिश्‍माई छवि नहीं है। यूपी और बिहार में पार्टी का वजूद करीब खत्‍म हो चुका है। सच तो यह है कि 2017 में यूपी चुनाव में किशोर कांग्रेस को उबार पाने में फेल साबित हो चुके हैं। राहुल और अखिलेश के लिए उनका कैंपेन ‘यूपी के लड़के’ बुरी तरह फ्लॉप साबित हुआ था।

लेख में कहा गया है कि कांग्रेस की सिर्फ रीब्रांडिंग कर देने भर से काम नहीं चलने वाला है। 250 से ज्‍यादा जिले हैं जहां पार्टी की जिला समितियां तक नहीं हैं। ऐसी और भी कई कमजोरियां हैं जो कांग्रेस को दूर करनी हैं। अंत में लेख में कहा गया है कि कांग्रेस को दिल्‍ली केंद्रित ‘हाई कमांड’ मॉडल से तौबा करना चाहिए जो जमीनी हकीकत से दूर है। बिना राजनीतिक विकल्‍प के मोदी सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर माहौल तैयार करने से कुछ ज्‍यादा हासिल नहीं होने वाला है।

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