उत्तरप्रदेश की राजनीति में दलितों की कैसी भूमिका है ? ( What is the role of Dalits in the politics of Uttar Pradesh? )
भारत एक लोकतांत्रिक देश है. जिसमें नेता जनता द्वारा चुने जाते हैं. समाज के हक की आवाज संसद तक पहुँचाने के लिए कोई भी राजनीति के सहारे ऐसा कर सकता है. ऐसे ही राज्यों में भी चुनाव के द्वारा नेता चुने जाते हैं. इसके साथ ही हमारे संविधान ने सभी तबको का ध्यान रखते हुए तथा सभी की पहुंच राजनीति तक हो सके. इसके लिए आरक्षण की व्यवस्था भी की है. जिसके कारण सभी को समान प्रतिनिधित्व मिल सके. उत्तरप्रदेश की राजनीति में दलितों की भूमिका को अच्छे से समझने के लिए सबसे पहले हम ये जान लेते हैं कि दलित किसे कहा जाता है ?
दलित किसे कहा जाता है ?
दलित शब्द की बात करें, तो यह अंग्रेजी के डिप्रेस्ड क्लास शब्द का हिंदी अनुवाद है. इस आधार पर दलित शब्द का अर्थ होता है, वह तबका या समाज जिसको शोषित किया गया हो या उसकी आवाज को दबाया गया हो. सही तरीके से देखा जाए तो यह शब्द बहुत बड़ा होता है. इसकी कोई सीमित परिभाषा नहीं दी जा सकती है क्योंकि शोषित वर्ग को निर्धारित करना इतना आसान नहीं है. लेकिन आमतौर पर देखा जाता है कि इस शब्द का प्रय़ोग उन समुदाय के लिए किया जाता है, जिनको पहले लोग अछूत मानते थे. दलित वर्ग लगभग सभी धर्मों में पाया जाता है. भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार 16.6 फिसदी आबादी दलित समुदाय में शामिल है.
उत्तरप्रदेश की राजनीति में दलितों की भूमिका-
उत्तरप्रदेश की राजनीति में दलितों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है. भारत की आजादी के बाद1950 से लेकर 1990 तक की बात करें, तो उत्तरप्रदेश की राजनीति में दलितों की भूमिका कई दौर से गुजरी है. दलितों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिला और राजनीतिक संस्थाओं में आरक्षण मिला. इसके साथ ही भूमि सुधारों और कल्याणकारी कार्यक्रमों से दलित जातियां लाभान्वित हुईं और दलित जातियों के आर्थिक उत्थान ने उन्हें राजनीतिक रूप से सशक्त बना दिया. जिसके कारण राजनीति में उनकी भागीदारी बढ़ी. उत्तरप्रदेश में आजादी के तुरंत बाद दलितों के एक अभिजात्य वर्ग ने बाबा साहेब अम्बेडकर के विचारों से प्रभावित होकर रिपब्लिकन पार्टी के नेतृत्व में थोडे समय के लिए ही सही लेकिन लोगों को आगे आने के लिए प्रेरित किया.
इसके बाद के समय में 1980 के दशक के मध्य से जाति आधारित ध्रुवीकरण बहुजन समाज पार्टी के नेतृत्व में शुरू हुआ. इस पार्टी की स्थापना कांशी राम ने की. उत्तर प्रदेश में 1993 में पहली बार बसपा ने संविद सरकार बनाई फिर 1995 और 1997 में बहुजन समाज पार्टी ने अपनी सरकार बनाई.1995 की बात करें, तो बसपा की नेता मायावती को मुख्यमंत्री चुना गया. मायावती का उत्तरप्रदेश की राजनीति में एक बहुत बड़ा नाम है. 2007 में बहुमत के साथ सरकार बनाने में इन्होंने सफलता हासिल की. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा की हालत बेहद खराब हो गई थी, उसे महज 17 सीटें ही मिली थी.
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चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण ने मायावती के दलित राजनीति पकड़ को चुनौती दी है. मायावती को भी दलित बंटवारे का भय नजर आ रहा है. लेकिन इसका परिणाम जो भी हो. लेकिन जहां तक उत्तरप्रदेश की राजनीति की बात है, तो उसमें दलित समुदाय की एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है. दलित समुदाय की भूमिका की चर्चा के बिना उत्तरप्रदेश की राजनीति को सही से समझ माना असंभव सा लगता है.
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