एक तीर से तीन शिकार… पीएम मोदी ने यूं ही गहलोत को मंत्रिमंडल से हटाकर नहीं बनाया कर्नाटक का गवर्नर h3>
हाइलाइट्स:
- मोदी कैबिनेट के विस्तार से पहले थावर चंद गहलोत की हुई छुट्टी
- कर्नाटक के राज्यपाल बनाए गए पीएम मोदी के काफी करीबी माने जाने वाले गहलोत
- 72 वर्षीय गहलोत विवादों से दूर रहने वाले बीजेपी के अग्रणी दलित चेहरों में शुमार हैं
नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अटकलों को धता बताने और अपने फैसलों से अक्सर चौंकाने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने मंत्रिमंडल विस्तार से ठीक पहले ऐसा फैसला किया है जिसमें उनकी यही छवि देखी जा सकती है। आज राष्ट्रपति भवन से जारी आदेश में आठ राज्यों में नए राज्यपाल की नियुक्ति की गई है। इनमें सबसे चौंकाने वाला नाम केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत का है। बीजेपी के कद्दावर दलित चेहरा थावर चंद गहलोत कर्नाटक के राज्यपाल बनाए गए हैं। ध्यान रहे कि राष्ट्रपति व्यावहारिक तौर पर प्रधानमंत्री की सलाह पर ही किसी राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति करते हैं।
पीएम मोदी ने फिर फेंक दी गुगली
पीएम मोदी का ताजा फैसला इसलिए चौंकाने वाला माना जा रहा है क्योंकि एक तरफ कैबिनेट एक्सपेंशन की बात हो रही है तो दूसरी तरफ गहलोत जैसे बड़े चेहरे की मंत्रिमंडल से छुट्टी कर दी गई है। तो क्या उनकी जगह किसी और दलित चेहरे की खोज की जा चुकी है? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि गहलोत उन शख्सियतों में शामिल नहीं हैं जो विवादों के कारण चर्चा में रहे हों। कैबिनेट मिनिस्टर के रूप में उनका रिपोर्ट कार्ड भी अच्छा है। इसी कारण से मोदी ने उन्हें दुबारा अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था। गहलोत ने समाज कल्याण एवं अधिकारिता मंत्री के तौर पर पिछड़े और वंचित तबकों एवं दिव्यांगों के लिए कई योजनाएं लेकर आए। उन्हें पीएम मोदी का काफी करीबी माना जाता है।
एक की छुट्टी, तीन की नियुक्त
थावर चंद गहलोत राज्यसभा कोटे से मंत्री हैं। उन्हें पहली बार 2012 में फिर 2018 में मध्य प्रदेश से राज्यसभा भेजा गया। गहलोत बीजेपी पार्ल्यामेंट्री बोर्ड के भी सदस्य हैं। कहा जा रहा है कि पीएम मोदी ने गहलोत को राज्यपाल बनाकर एक तीर से तीन शिकार कर लिए हैं। राज्यपाल का पदभार संभालते ही गहलोत न राज्यसभा सांसद रह जाएंगे, न केंद्रीय मंत्री और न ही बीजेपी संसदीय बोर्ड के सदस्य। इस तरह गहलोत के गवर्नर बनते ही तीन वैकेंसी हो जाएगी। निश्चित तौर पर पीएम मोदी ने गहलोत को गवर्नर बनाने का फैसला करते वक्त इस बिंदु पर भी विचार किया होगा। स्वाभाविक है कि अब गहलोत के जाने के बाद तीन अलग-अलग नेताओं को अलग-अलग जगहों पर फिट करके संतुष्ट किया जा सकेगा।
कभी राष्ट्रपति पद के लिए हुई थी गहलोत के नाम की चर्चा
मोदी-शाह की जोड़ी वाली बीजेपी में थावर चंद गहलोत की कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति पद के लिए जब किसी दलित चेहरे की तलाश हो रही थी तब थावर चंद गहलोत के नाम की भी चर्चा चली थी। हालांकि, अंतिम रूप से मुहर रामनाथ कोविंद के नाम पर लगा था। उनके कद की पहचान इस बात से भी की जा सकती है कि जब तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का निधन हो गया तो गहलोत को ही संसद के उच्च सदन का नेता बनाया गया।
जब गहलोत के लपेटे में आ गए थे योगी आदित्यनाथ
विवादों से दूर रहने वाले मृदुभाषी थावर चंद गहलोत की छवि सिद्धांतों पर अटल रहने वाली भी है। यही वजह है कि जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अनुसूचित जातियों की लिस्ट में 17 अन्य जातियों को जोड़ दिया तो गहलोत ने इसकी आलोचना की और वो भी बेलाग-लपेट। राज्यसभा में जब बीएसपी सांसद सतीश चंद्र मिश्रा ने यह मुद्दा उठाया तो गहलोत ने साफ-सुथरे शब्दों में कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला संविधान के अनुकूल नहीं है। मुख्यमंत्रियों में सबसे कड़क और ताकतवर छवि वाले योगी आदित्यनाथ के लिए यह टिप्पणी सामान्य नहीं थी। लेकिन जब बात संवैधानिक प्रक्रिया के पालन और अनुसूचित जाति (SC) की भलाई की आई तो गहलोत ने अपनी ही पार्टी के सबसे कद्दावर मुख्यमंत्री के खिलाफ सदन के पटल पर मुंह खोलने से बिल्कुल नहीं हिचके।
मजदूर से मंत्री तक का सफर
दरअसल, गहलोत की राजनीतिक परवरिश का ही नतीजा है कि उनकी शख्सियत में विनम्रता और सख्ती का संतुलित समिश्रण आ गया है। 18 मई, 1948 में मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित नागदा तहसील के गांव रुपेटा में पैदा हुए थावर चंद गहलोत ने स्थानीय विक्रम यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने 1965-70 में ग्रासिम इंडस्ट्रीज में मजदूरी की और फिर ग्रासिम इंजीनियरिंग श्रमिक संघ के खजांची (Treasurer) बन गए। 1967 से 75 तक वो भारतीय मजदूर संघ से जुड़े केमिकल श्रमिक संघ के सचिव बने। उन्होंने उज्जैन में कई श्रमिक आंदोलनों की अगुआई की और 1975 के आपातकाल में जेल भी गए। उन्होंने 1962 से 77 के बीच तब के भारतीय जनसंघ (अब बीजेपी) के सदस्य रहे और फिर उज्जैन जिले में जनता पार्टी के उपाध्यक्ष और महासचिव बनाए गए।

कहीं इसलिए तो कर्नाटक भेजे गए गहलोत?
1980 के मध्य में बीजेपी के जब सिर्फ दो सांसद थे तब गहलोत भारतीय युवा मोर्चा के प्रमुख पद पर कार्यरत थे। 1986 में वो बीजेपी के रतलाम जिलाध्यक्ष बने। तब से उन्होंने संगठन में कई बड़े ओहदों से होते हुए मोदी सरकार में दो बार कैबिनेट मंत्री बने। अब उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया है। गहलोत ने 1996 से 2009 के बीच शाजापुर लोकसभा से लगातार लोकसभा चुनाव जीतते रहे। 2009 के चुनाव में वो कांग्रेस पार्टी के सज्जन सिंह वर्मा से हार गए थे। 2012 में वह राज्यसभा के लिए चुने गए और फिर 2018 में उनका दूसरी बार चुनाव हुआ। थावरचंद गहलोत पार्टी की तरफ से कर्नाटक में काम कर चुके हैं। उन्हें दिल्ली और कर्नाटक का प्रभारी महासचिव बनाया गया था। उन्होंने बीजेपी की अनुसूचित जाति शाखा के अध्यक्ष भी रहे। उन्हें पार्टी ने गुजरात में केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाकर भी भेजा था। वो अभी बीजेपी संसदीय बोर्ड के सदस्य भी हैं।
कर्नाटक के राज्यपाल बनाए गए थावर चंद गहलोत। (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स:
- मोदी कैबिनेट के विस्तार से पहले थावर चंद गहलोत की हुई छुट्टी
- कर्नाटक के राज्यपाल बनाए गए पीएम मोदी के काफी करीबी माने जाने वाले गहलोत
- 72 वर्षीय गहलोत विवादों से दूर रहने वाले बीजेपी के अग्रणी दलित चेहरों में शुमार हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अटकलों को धता बताने और अपने फैसलों से अक्सर चौंकाने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने मंत्रिमंडल विस्तार से ठीक पहले ऐसा फैसला किया है जिसमें उनकी यही छवि देखी जा सकती है। आज राष्ट्रपति भवन से जारी आदेश में आठ राज्यों में नए राज्यपाल की नियुक्ति की गई है। इनमें सबसे चौंकाने वाला नाम केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत का है। बीजेपी के कद्दावर दलित चेहरा थावर चंद गहलोत कर्नाटक के राज्यपाल बनाए गए हैं। ध्यान रहे कि राष्ट्रपति व्यावहारिक तौर पर प्रधानमंत्री की सलाह पर ही किसी राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति करते हैं।
पीएम मोदी ने फिर फेंक दी गुगली
पीएम मोदी का ताजा फैसला इसलिए चौंकाने वाला माना जा रहा है क्योंकि एक तरफ कैबिनेट एक्सपेंशन की बात हो रही है तो दूसरी तरफ गहलोत जैसे बड़े चेहरे की मंत्रिमंडल से छुट्टी कर दी गई है। तो क्या उनकी जगह किसी और दलित चेहरे की खोज की जा चुकी है? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि गहलोत उन शख्सियतों में शामिल नहीं हैं जो विवादों के कारण चर्चा में रहे हों। कैबिनेट मिनिस्टर के रूप में उनका रिपोर्ट कार्ड भी अच्छा है। इसी कारण से मोदी ने उन्हें दुबारा अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था। गहलोत ने समाज कल्याण एवं अधिकारिता मंत्री के तौर पर पिछड़े और वंचित तबकों एवं दिव्यांगों के लिए कई योजनाएं लेकर आए। उन्हें पीएम मोदी का काफी करीबी माना जाता है।
एक की छुट्टी, तीन की नियुक्त
थावर चंद गहलोत राज्यसभा कोटे से मंत्री हैं। उन्हें पहली बार 2012 में फिर 2018 में मध्य प्रदेश से राज्यसभा भेजा गया। गहलोत बीजेपी पार्ल्यामेंट्री बोर्ड के भी सदस्य हैं। कहा जा रहा है कि पीएम मोदी ने गहलोत को राज्यपाल बनाकर एक तीर से तीन शिकार कर लिए हैं। राज्यपाल का पदभार संभालते ही गहलोत न राज्यसभा सांसद रह जाएंगे, न केंद्रीय मंत्री और न ही बीजेपी संसदीय बोर्ड के सदस्य। इस तरह गहलोत के गवर्नर बनते ही तीन वैकेंसी हो जाएगी। निश्चित तौर पर पीएम मोदी ने गहलोत को गवर्नर बनाने का फैसला करते वक्त इस बिंदु पर भी विचार किया होगा। स्वाभाविक है कि अब गहलोत के जाने के बाद तीन अलग-अलग नेताओं को अलग-अलग जगहों पर फिट करके संतुष्ट किया जा सकेगा।
कभी राष्ट्रपति पद के लिए हुई थी गहलोत के नाम की चर्चा
मोदी-शाह की जोड़ी वाली बीजेपी में थावर चंद गहलोत की कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रपति पद के लिए जब किसी दलित चेहरे की तलाश हो रही थी तब थावर चंद गहलोत के नाम की भी चर्चा चली थी। हालांकि, अंतिम रूप से मुहर रामनाथ कोविंद के नाम पर लगा था। उनके कद की पहचान इस बात से भी की जा सकती है कि जब तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का निधन हो गया तो गहलोत को ही संसद के उच्च सदन का नेता बनाया गया।
जब गहलोत के लपेटे में आ गए थे योगी आदित्यनाथ
विवादों से दूर रहने वाले मृदुभाषी थावर चंद गहलोत की छवि सिद्धांतों पर अटल रहने वाली भी है। यही वजह है कि जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अनुसूचित जातियों की लिस्ट में 17 अन्य जातियों को जोड़ दिया तो गहलोत ने इसकी आलोचना की और वो भी बेलाग-लपेट। राज्यसभा में जब बीएसपी सांसद सतीश चंद्र मिश्रा ने यह मुद्दा उठाया तो गहलोत ने साफ-सुथरे शब्दों में कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला संविधान के अनुकूल नहीं है। मुख्यमंत्रियों में सबसे कड़क और ताकतवर छवि वाले योगी आदित्यनाथ के लिए यह टिप्पणी सामान्य नहीं थी। लेकिन जब बात संवैधानिक प्रक्रिया के पालन और अनुसूचित जाति (SC) की भलाई की आई तो गहलोत ने अपनी ही पार्टी के सबसे कद्दावर मुख्यमंत्री के खिलाफ सदन के पटल पर मुंह खोलने से बिल्कुल नहीं हिचके।
मजदूर से मंत्री तक का सफर
दरअसल, गहलोत की राजनीतिक परवरिश का ही नतीजा है कि उनकी शख्सियत में विनम्रता और सख्ती का संतुलित समिश्रण आ गया है। 18 मई, 1948 में मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित नागदा तहसील के गांव रुपेटा में पैदा हुए थावर चंद गहलोत ने स्थानीय विक्रम यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने 1965-70 में ग्रासिम इंडस्ट्रीज में मजदूरी की और फिर ग्रासिम इंजीनियरिंग श्रमिक संघ के खजांची (Treasurer) बन गए। 1967 से 75 तक वो भारतीय मजदूर संघ से जुड़े केमिकल श्रमिक संघ के सचिव बने। उन्होंने उज्जैन में कई श्रमिक आंदोलनों की अगुआई की और 1975 के आपातकाल में जेल भी गए। उन्होंने 1962 से 77 के बीच तब के भारतीय जनसंघ (अब बीजेपी) के सदस्य रहे और फिर उज्जैन जिले में जनता पार्टी के उपाध्यक्ष और महासचिव बनाए गए।
कहीं इसलिए तो कर्नाटक भेजे गए गहलोत?
1980 के मध्य में बीजेपी के जब सिर्फ दो सांसद थे तब गहलोत भारतीय युवा मोर्चा के प्रमुख पद पर कार्यरत थे। 1986 में वो बीजेपी के रतलाम जिलाध्यक्ष बने। तब से उन्होंने संगठन में कई बड़े ओहदों से होते हुए मोदी सरकार में दो बार कैबिनेट मंत्री बने। अब उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया है। गहलोत ने 1996 से 2009 के बीच शाजापुर लोकसभा से लगातार लोकसभा चुनाव जीतते रहे। 2009 के चुनाव में वो कांग्रेस पार्टी के सज्जन सिंह वर्मा से हार गए थे। 2012 में वह राज्यसभा के लिए चुने गए और फिर 2018 में उनका दूसरी बार चुनाव हुआ। थावरचंद गहलोत पार्टी की तरफ से कर्नाटक में काम कर चुके हैं। उन्हें दिल्ली और कर्नाटक का प्रभारी महासचिव बनाया गया था। उन्होंने बीजेपी की अनुसूचित जाति शाखा के अध्यक्ष भी रहे। उन्हें पार्टी ने गुजरात में केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाकर भी भेजा था। वो अभी बीजेपी संसदीय बोर्ड के सदस्य भी हैं।
कर्नाटक के राज्यपाल बनाए गए थावर चंद गहलोत। (फाइल फोटो)