Rwanda Genocide: 100 दिन में 8 लाख लोगों का सरकारी कत्लेआम, दुनिया के सबसे बड़े नरसंहार के लिए फ्रांस ने क्यों मांगी माफी

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Rwanda Genocide: 100 दिन में 8 लाख लोगों का सरकारी कत्लेआम, दुनिया के सबसे बड़े नरसंहार के लिए फ्रांस ने क्यों मांगी माफी


Rwanda Genocide: 100 दिन में 8 लाख लोगों का सरकारी कत्लेआम, दुनिया के सबसे बड़े नरसंहार के लिए फ्रांस ने क्यों मांगी माफी

किगाली
नरसंहार को मानवता के खिलाफ सबसे गंभीर अपराध माना जाता है। इतिहास के पन्नों में कई ऐसे नरसंहारों के बारे में पता चलता है, जिसे चाहकर भी भुलाया नहीं जा सकता है। इसमें से ही एक है अप्रैल 1994 में शुरू हुआ रवांडा नरसंहार। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 100 दिनों तक चले इस नरसंहार में लगभग आठ लाख लोगों का कत्लेआम किया गया। बड़ी बात यह थी कि इस घटना को अंजाम देने वाले कोई बाहरी नहीं, बल्कि उनके ही देश के लोग थे। हालांकि, इस नरसंहार के 26 साल बाद आज फ्रांस ने अपनी भूमिका के लिए माफी मांग ली है।

मैक्रों ने फ्रांस की भूमिका को लेकर मांगी माफी
रवांडा की यात्रा पर पहुंचे फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि उन्होंने यहां हुए नरसंहार में अपने देश की भूमिका को पहचाना है। इसके लिए उन्होंने गुरुवार को रवांडा की राजधानी किगाली में मृतकों की याद में बने गिसोजी नरसंहार स्मारक का दौरा कर माफी मांगी। उन्होंने कहा कि केवल वे लोग ही क्षमा कर सकते हैं जो उस रात से गुजरे हैं। मैं विनम्रतापूर्वक और सम्मान के साथ आज आपके साथ खड़ा हूं, मैं अपनी जिम्मेदारियों की सीमा को समझता हूं। यह स्मारक उस स्थान पर बना है जहां नरसंहार में मारे गए 250,000 से अधिक मृतकों को दफनाया गया है।

फ्रांस को माफी मांगने की जरूरत क्यों पड़ी?
दरअसल, कुछ महीने पहले ही रवांडा नरसंहार को लेकर फ्रांसीसी जांच पैनल की एक रिपोर्ट ने तत्कालीन फ्रांसीसी सेना की भूमिका पर सवाल उठाए थे। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि एक औपनिवेशिक रवैये ने फ्रांसीसी अधिकारियों को अंधा कर दिया था और सरकार ने लोगों के हत्याओं का पूर्वाभास न करके गंभीर और भारी अपराध किया था। जिसके बाद से फ्रांस के ऊपर इस नरसंहार को लेकर माफी मांगने का दबाव बढ़ने लगा था।

1994 में रवांडा में क्या हुआ था?
इस साल रवांडा में अप्रैल 1994 से जून 1994 के बीच के करीब 100 दिनों के अंदर करीब 8 लाख लोगों को मार डाला गया था। एक अनुमान के मुताबिक, इस नरसंहार के दौरान हर दिन करीब 10 हजार लोगों की हत्याएं की गई थी। इस नरसंहार का निशाना बना था रवांडा के अल्पसंख्यक समुदाय टुत्सी, जिसे तुत्सी के नाम से भी जाना जाता है। नरसंहार को अंजाम देने वाले भी रवांडा के बहुसंख्यक हुटू या हुतू समुदाय के लोग थे। इन्होंने केवल तुत्सी समुदाय के लोगों की हत्याएं ही नहीं कि, बल्कि हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार भी किया।

क्यों शुरू हुआ था यह नरसंहार?
रवांडा की कुल आबादी में हूतू समुदाय का हिस्सा 85 प्रतिशत है लेकिन देश पर लंबे समय से तुत्सी अल्पसंख्यकों का दबदबा रहा था। कम संख्या में होने के बावजूद तुत्सी राजवंश ने लंबे समय तक रवांडा पर शासन किया था। साल 1959 में हूतू विद्रोहियों ने तुत्सी राजतंत्र को खत्म कर देश में तख्तापलट किया। जिसके बाद हूतू समुदाय के अत्याचारों से बचने के लिए तुत्सी लोग भागकर युगांडा चले गए। अपने देश पर फिर से कब्जा करने को लेकर तुत्सी लोगों ने रवांडा पैट्रिएक फ्रंट (आरपीएफ) नाम के एक विद्रोही संगठन की स्थापना की जिसने 1990 में रवांडा में वापसी कर कत्लेआम शुरू कर दिया।

Rawanda 01

राष्ट्रपति की मौत के बाद भड़की हिंसा
इस हिंसा में दोनों ही समुदायों के हजारों लोग मारे गए। 1993 में सरकार के साथ तुत्सी विद्रोहियों ने समझौता कर लिया और देश में शांति की स्थापना हुई। लेकिन, 6 अप्रैल 1994 को तत्कालीन राष्ट्रपति जुवेनल हाबयारिमाना और बुरुंडी के राष्ट्रपति केपरियल नतारयामिरा को ले जा रहा विमान किगाली में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें सवार सभी लोगों की मौत हो गई। दोनों ही समुदायों ने इस हादसे के लिए एक दूसरे पर आरोप लगाए और शुरू हुआ इतिहास का सबसे भीषण नरसंहार।

रवांडा नरसंहार में फ्रांस की भूमिका क्या थी?
दरअसल, रवांडा लंबे समय तक फ्रांस का उपनिवेश रहा है। इसलिए आज भी इस देश में फ्रांसीसी प्रभाव बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। उस समय भी हुतू सरकार को फ्रांस का समर्थन प्राप्त था। राष्ट्रपति की मौत के बाद हुतू सरकार के आदेश पर सेना ने अपने समुदाय के साथ मिलकर तुत्सी समुदाय के लोगों को मारना शुरू किया। कहा तो यहां तक जाता है कि चर्च के हुतू पादरियों ने तुत्सी ननों तक को मार डाला था। उस समय फ्रांस ने हुतू सरकार के समर्थन में अपनी सेना भेजी लेकिन उसने नरसंहार को रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया।


कैसे खत्म हुआ यह नरसंहार?
रवांडा के वर्तमान राष्ट्रपति पॉल कागामे ने भी कुछ साल पहले आरोप लगाया था कि फ्रांस ने उन लोगों को समर्थन दिया जिन्होंने नरसंहार को अंजाम दिया था। हालांकि तब फ्रांस ने इससे इनकार किया था। 1994 में इस नरसंहार को देखते हुए पड़ोसी देश युगांडा ने अपनी सेना को रवांडा में भेजा। जिसके बाद उसके सैनिकों ने राजधानी किगाली पर कब्जा कर इस नरसंहार को खत्म किया।



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